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..जब नक्सलियों के गढ़ में घुसकर जवानों ने किया वार

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 22 जवानों की हत्या के बाद नक्सलियों के प्रति लोगों में उबाल है। सोशल साइटों पर नक्सलियों के इस कायराना हमले की चौतरफा निदा हो रही है। उनकी हत्या के बाद जवानों में भी आक्रोश व गुस्सा है और नक्सलियों के घर में घुसकर उनका सिर कलम करने के उतारू हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Apr 2021 10:56 PM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 10:56 PM (IST)
..जब नक्सलियों के गढ़ में घुसकर जवानों ने किया वार
..जब नक्सलियों के गढ़ में घुसकर जवानों ने किया वार

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 22 जवानों की हत्या के बाद नक्सलियों के प्रति लोगों में उबाल है। सोशल साइटों पर नक्सलियों के इस कायराना हमले की चौतरफा निदा हो रही है। उनकी हत्या के बाद जवानों में भी आक्रोश व गुस्सा है और नक्सलियों के घर में घुसकर उनका सिर कलम करने के उतारू हैं। इस तरह का माहौल 26 फरवरी 2003 को विजयगढ़ युवराज शरदचंद्र पद्मशरण शाह व उनके दो कर्मियों की हत्या के बाद जिले में भी देखने को मिला था। इसकी गूंज लखनऊ व दिल्ली तक सुनाई दी थी। इसी के बाद केंद्र सरकार ने नक्सली गतिविधियों के सफाए के लिए जनपद ही नहीं, पड़ोसी चंदौली में भी सीआरपीएफ की तैनाती कर दी।

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नक्सली वारदातों के बढ़ने से सोनांचल में फैली दहशत को कम करने के लिए जवानों ने जान हथेली पर रखकर उनके गढ़ में घुसकर वार करने का फैसला किया। इसी का नतीजा था कि जनपद में नामजद 216 नक्सलियों में से 13 को मार गिराया था। 63 नक्सली समर्पण करने के लिए बाध्य हुए थे जबकि 140 नक्सलियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। चार राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश की पुलिस से सामंजस्य बैठाकर नक्सली गिरोह पर जवानों का हमला व सीमावर्ती दुरूह क्षेत्रों में पुलिस द्वारा शिविर लगाकर ग्रामीणों के बीच दोस्ताना हाथ बढ़ाना रंग लाया था। वर्ष 1997 के बाद मांची थाना क्षेत्र के रामपुर गांव निवासी रमाशंकर जायसवाल की हत्या, जनपद के पलपल, नेवारी, पल्हारी, कोदई, गड़वान, बैजनाथ में तेंदू पत्ता के फड़ों को आग के हवाले करना, नगवां ब्लाक के पनौरा के शौकत अली व उसके भतीजे गुलजार अली की बंदूक लूट जैसी वारदातों को नक्सिलयों ने अंजाम देकर दहशत फैला दी थी। वर्ष 1998 में सुकृत पुलिस चौकी क्षेत्र के नागनार हरैया गांव में बिहारी लाल की हत्या, वर्ष 2000 में थरपथरा व 2001 में पन्नूगंज थाना क्षेत्र के मगरदह गांव में मुठभेड़ जैसी घटनाओं ने प्रदेश सरकार को हिला दिया था। बैजनाथ गांव में चौकीदार घरपत्तू को बंधक बनाकर घर फूंकने, एसओजी टीम में शामिल रहे एक कांस्टेबल के पिता लल्लन यादव की हत्या करने, खोराडीह में पीएसी कैंप से शस्त्र लूटकांड व 2002 में सोमा गांव में पुलिस व पीएसी बल पर फायरिग की घटना को नक्सलियों ने अंजाम दिया। 26 फरवरी 2003 को विजयगढ़ युवराज शरदचंद्र पद्मशरण शाह व उनके दो कर्मियों की हत्या की गूंज लखनऊ व दिल्ली तक भी सुनी गई। इसी के बाद सोनभद्र व चंदौली जनपद में सीआरपीएफ की तैनाती का केंद्र सरकार ने फैसला किया। दोनों जिलों में सीआरपीएफ की 148वीं बटालियन की एक कंपनी मौजूद थी। सोनभद्र जिले के कनछ, सिलहट व मांची एवं चंदौली जनपद के नौगढ़, चंद्रप्रभा व भैसौड़ा में एक-एक कंपनी की तैनाती की गई थी। सीआरपीएफ के जवानों ने चार राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश से घिरे सोनभद्र में न केवल नक्सलियों के मंसूबे पर पानी फेरा बल्कि सिविल पुलिस के सहयोग से उन्हें गिरफ्तार व मार गिराने में भी कामयाब रहें। घुसपैठ की बनी रहती है आशंका

जनपद चार राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। बिहार, छत्तीसगढ़ व झारखंड में नक्सली बड़ी घटना को अंदाम देकर दहशत फैलाने का काम करते रहते हैं। इन राज्यों से जिले की सीमा के लगने की वजह से उनके घुसपैठ की आशंका बनी रहती है। यहीं वजह है कि सीआरपीएफ हटने के बाद उनकी जगह पीएसी ने ले ली है। हर दिन सीमावर्ती जगंलों, पहाड़ों व गांव को खंगालने के साथ ही तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। ताकि नक्सली बिहार, झारखंड या छत्तीसगढ़ में बड़ी वारदात को अंजाम देकर सोनांचल की धरती को अपना ठिकाना न बना सके। नक्सलियों के सफाए के बाद सीआरपीएफ की विदाई

नक्सलवाद से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) के जवानों को 22 नवंबर 2020 को वापस बुला लिया गया। पुलिस अधीक्षक अमरेंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि जिले में चिह्नित नक्सली या तो गिरफ्तार हो चुके हैं या फिर मुठभेड़ में मारे गए हैं। कईयों ने समर्पण किया है। नक्सलवाद की काली छाया छटने के कारण सीआरपीएफ को हटाया गया है।


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