कृष्ण-सुदामा का मित्रता देख भावुक हुए दर्शक
जासं, दुद्धी (सोनभद्र) : तहसील परिसर में चल रहे श्री रासलीला मंचन के नवें दिन बुधवार की रात श्रीकृष्ण व सुदामा के मित्रता की मनोहारी लीला का सजीव मंचन देख कर उपस्थित उपस्थित दर्शक भाव विभोर हो गये। मंचन का शुभारंभ श्रीकृष्ण व सुदामा के बाल्य काल से हुई। गुरुकुल में शिक्षा पाने के लिए दोनों गुरु संदीपनी के आश्रम में गये। एक
जासं, दुद्धी (सोनभद्र) : तहसील परिसर में चल रहे श्री रासलीला मंचन के नौवें दिन श्रीकृष्ण व सुदामा के मित्रता की मनोहारी लीला का सजीव मंचन देख कर उपस्थित उपस्थित दर्शक भाव विभोर हो गए। मंचन का शुभारंभ श्रीकृष्ण व सुदामा के बाल्य काल से हुई। गुरुकुल में शिक्षा पाने के लिए दोनों गुरु संदीपनी के आश्रम में गए। एक बार गुरु द्वारा दी गई सबक याद न कर पाने के कारण उन्हें जंगल से लकड़ी लाने को जाना पड़ा।
वन जाते समय गुरुमाता ने दो मुट्ठी चने दी और कहा कि ये श्रीकृष्ण व सुदामा के लिए है जिसे तुम दोनों भूख लगने पर खा लेना। अलग-अलग वन क्षेत्रों में लकड़ी लेने के लिए दोनों सखा निकल गए, तभी सुदामा को भूख लगी और उन्होंने अपने हिस्से के चने खा लिए फिर भी उनकी भूख समाप्त नहीं हुई तो उन्होंने श्रीकृष्ण के हिस्से का भी चना खा लिए। इधर श्रीकृष्ण वन से लकड़ी लेकर आए तो उन्होंने सुदामा से अपने वट के चने मांगे तो सुदामा ने उन्हें पूरी बात बताई की। तब श्रीकृष्ण ने बताया कि जो दूसरों के हिस्से का खा लेता है वो दरिद्र हो जाता है। मुखारघोष के बाद श्रीकृष्ण को इसका अफसोस होने पर वे दरिद्रता दूर करने का उपाय भी सुदामा को बताया। दरिद्रता का दंश झेल रहे सुदामा को पत्नी ने मित्र द्वारिकाधीश से मुलाकात करने का सुझाव पर सुदामा द्वारिका जाने के लिए राजी हुए। पत्नी द्वारा दिए चावल को लेकर वे द्वारिका के लिए निकल पड़े। थके हारे सुदामा को बीच रास्ते मे नींद आने पर वे सो गए। उनकी आंख खुली तो अपने को द्वारिका में पाकर प्रभु की इच्छा को नमन किया। महल में जाने का प्रयास किया तो द्वारपालों ने उन्हें रोक लिया। सुदामा ने कहा कि मैं श्रीकृष्ण से मिलने जा रहा हूं मेरा नाम सुदामा हैं। द्वारपालों द्वारा मित्र सुदामा के आने की खबर सुन लीलाधारी सब काम छोड़ कर नंगे पांव दौड़ते हुए मुख्य गेट पर पहुंच सुदामा को गले से लगाकर राज महल के राज ¨सहासन पर बैठाया। श्रीकृष्ण की तीनों पटरानियां जल लेकर पैर धोने को खड़ी हैं ¨कतु भगवान ने अपने आंखों के जल से ही उनके पैर धो दिए। सुशीला भाभी द्वारा दी गयी भेंट रूपी चावल लेकर उसे खाया और खाने के बाद एक मुट्ठी पर एक लोक, दूसरी मुट्ठी पर दूसरे लोक की सुख संपदा दे दी। जैसे ही तीसरी मुट्ठी खाने चले माता रुक्मिणी ने हाथ पकड़ लिया। कहा कि हे प्रभु ये आप क्या कर करे हैं। दो मुट्ठी में दो लोक दे दिया, तीसरी मुट्ठी में तीसरा लोक देंगे तो हम सब कहां जाएंगे। इसके बाद श्रीकृष्ण व पूरी द्वारिका सुदामा के आव भगत में लग गई। इसके साथ लीला का विश्राम हो गया।