आदिवासी क्षेत्र में तीरंदाजी की असीम संभावनाएं
आदिवासी अपनी सुरक्षा प्राचीन काल से ही तीर-धनुष से करते आए हैं। अब भी आदिवासियों के यहां तीर धनुष आसानी से मिल जाता है।
जासं, अनपरा (सोनभद्र) : आदिवासी अपनी सुरक्षा प्राचीन काल से ही तीर-धनुष से करते आए हैं। अब भी आदिवासियों के यहां तीर धनुष आसानी से मिल जाता है। इन्हें समुचित ढंग से प्रशिक्षित किया जाए तो ये तीरंदाजी के क्षेत्र में अपना कौशल प्रदर्शित कर जनपद का मान बढ़ा सकते हैं। उक्त उदगार अनपरा परिक्षेत्र के कुलडोमरी में सोन आदिवासी शिल्प कला ग्रामोद्योग समिति द्वारा आयोजित आदिवासी तीरंदाजी प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित करते हुए जिलाधिकारी अंकित अग्रवाल ने व्यक्त की।
जिलाधिकारी ने प्रथम विजेता राजकुमार, द्वितीय विजेता देवी प्रसाद और तृतीय विजेता भगवत को प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार देकर सम्मानित किया। रविवार को आयोजित प्रतियोगिता के सात चरण में 60 खिलाड़ियों ने शिरकत की। पारंपरिक वेश-भूषा और धनुष के संग निशाना साध रहे तीरंदाजों में से छह चक्र बाद 10 धनुर्धर शेष बचे। फाइनल राउंड में तीन धनुर्धरों को प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान के लिए चयनित किया गया। इससे पूर्व डीएम, एसडीएम डा. केएस पांडेय, अधीक्षण अभियंता एनएन त्रिपाठी, वरिष्ठ भाजपा नेता केसी जैन, मिथिलेश सिंह, जिला पंचायत सदस्य बल्केश्वर सिंह, अजित सिंह कंग आदि ने डीह बाबा के समक्ष पूजन-अर्चन कर प्रतियोगिता का शुभारंभ किया। प्रतियोगिता के आयोजक जगदीश साहनी ने कहा कि इस क्षेत्र में दर्जनों निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है, जिनका निर्माण आदिवासियों की पुश्तैनी भूमि पर ही हुआ है। लेकिन परियोजना द्वारा इनके पारंपरिक खेल या संस्कृति को बचाने में कोई प्रयास नहीं किया जाता। ऐसे में संसाधनों के अभाव में आदिवासी प्रतियोगिताओं में पीछे रह जाते हैं। संचालन भोलानाथ निषाद और अध्यक्षता जगदीश साहनी ने किया। इस अवसर पर शैलेश राय, प्रकाश यादव, प्रमोद शुक्ला, मनोज देवगन, राकेश निषाद, स्नेह लता त्रिपाठी, सुनीता देवी आदि उपस्थित रहे।
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