सोनांचल में सुरक्षित रेल यात्रा दूर की कौड़ी
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : रेल से यात्रा करने वालों की सुरक्षा के लिए रेलवे प्रशासन तमाम कवा
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : रेल से यात्रा करने वालों की सुरक्षा के लिए रेलवे प्रशासन तमाम कवायद कर रहा है। ऐसे में प्रशासनिक अमला बड़े-बड़े वादे भी करता है कि हम सुरक्षित यात्रा करवा रहे हैं, लेकिन सोनांचल में रेल यात्रा के सुरक्षित होने का अंदाजा यहां होने वाले हादसों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। यहां गत कुछ वर्षों में कई मानवरहित रेलवे क्रा¨सगों पर हादसे हो चुके हैं। इतना ही नहीं, सोनांचल में कई बार रेल पटरियों के टूटने ओर चटकने का मामला प्रकाश में आ चुका है।
जिले में रेलवे की व्यवस्थाओं पर गौर करें तो जिले में दौड़ने वाली रेल गाड़ियां रेलवे के दो जोन से संबंधित होती हैं। चोपन से मीरजापुर की तरफ से उत्तर मध्य रेलवे और चोपन से रेणुकूट दुद्धी की ओर पूर्व मध्य रेलवे द्वारा गाड़ियों का संचालन होता है। इसी के अनुसार यातायात व अन्य व्यवस्थाएं भी की जाती हैं। इन दोनों क्षेत्रों को मिलाकर जिले में कुल दस मानवरहित क्रा¨सग हैं। अभी फिलहाल यहां एक-एक गार्ड की तैनाती की गई है। इन सभी मानवरहित क्रा¨सग को मानव सहित क्रा¨सग बनाने के लिए प्रस्ताव रेलवे की तरफ से शासन को दिया गया है।
कइयों की जा चुकी है जान
जिले में मानवरहित क्रा¨सग को पार करने में कइयों की ¨जदगी जा चुकी है। वर्ष 2014 में करमा थाना क्षेत्र मदैनिया गांव के पास रेलवे क्रा¨सग से एक आटो सवारियों को लेकर गुजर रहा था। इसी दौरान ट्रेन आ गई और आटो के पार होते-होते टकरा गई हैं। इससे उसमें सवार एक व्यक्ति व चालक की मौत हो गई थी। इसी तरह वर्ष 2003 में चोपन-गढ़वा रेलमार्ग पर सलईबनवा स्टेशन के पास ¨नगा गांव में रेलवे पुल से नाला क्रास करते समय एक दर्जन ग्रामीण ट्रेन की चपेट में आ गये थे। इसमें से तीन की मौके पर ही मौत हो गई थी। वर्ष 2006 में कड़िया के पास भी क्रा¨सग पर ट्रेन की चपेट में आने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
कई बार टूटी पटरियों से गुजर चुकी है ट्रेन
जिले में जिस तरह से हादसे मानव रहित क्रा¨सगों पर हो चुके हैं उसी तरह से कई बार रेलवे ट्रैक के टूटने या चटकने की वजह से बड़ा हादसा होते-होते टल चुका है। इसी साल 30 नवंबर को अगोरी के पास रेलवे पटरी चटक गई थी। उसके पहले ही मूरी एक्सप्रेस गुजरी थी। उधर से वाराणसी की तरफ जाने वाली इंटरसिटी चोपन में खड़ी थी उसे वहीं पर रोककर पटरी की मरम्मत की गई। इसी तरह सात दिसंबर को दुद्धी रेलवे स्टेशन के पास टूटी हुई पटरी से डाउन ¨सगरौली-पटना ¨लक एक्सप्रेस गुजर गई थी। हालांकि यहां संयोग अच्छा था कि कोई हादसा नहीं हुआ। इसी तरह सात सितंबर को फफराकुंड व ओबरा डैम रेलवे स्टेशन के बीच कड़िया के समीप शक्तिपुंज एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी। हालांकि इसमें किसी की जान नहीं गई।
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ट्रैक के मामले में बेहतर पहल
सोनभद्र : रेल यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए केंद्रीय स्तर से बेहतर प्रयास किया जा रहा है। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक पूरे देश में पावर डिक्टेटर जीपीएस के तहत इंस्टालेशन के तहत कार्य चल रहा है। इस कार्य के तहत ट्रेन के पायलट के कैप पर एक सिग्नल लगेगा। यह सिग्नल 500 मीटर पहले ही ट्रैक की स्थिति बता देगा। यह कोहरा से बचाव में कार्य करेगा। पटरियों पर पटाखा आदि रखकर भी सिग्नल का पता किया जाता है। साथ ही कुछ अन्य तकनीकियों के माध्यम से भी ट्रैक की जांच की जाती है।
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साठ किलोमीटर के रेलमार्ग में एक भी रेलवे क्रा¨सग नहीं
ओबरा के रेणुकापार के 60 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र से गुजरने वाले चोपन-¨सगरौली रेलमार्ग पर रेलवे ने एक भी क्रा¨सग नहीं बनाया है। जिसके कारण इतनी दूरी तक चार पहिया सहित भारी वाहनों के गुजरने की कोई व्यवस्था नहीं है। यही नहीं दोपहिया वाहनों को भी रेलमार्ग को पार करने के लिए जान जोखिम में डालना पड़ता है। इसके बावजूद आजतक रेलवे ने इतने बड़े मार्ग पर एक भी क्रा¨सग या ओवरब्रिज बनाने की नहीं सोची। हालात यह है की कई बड़े नालों पर बने ओवरब्रिज के नीचे से ही सूखे मौसम के दौरान वाहन जा पाते हैं, लेकिन मानसून के दौरान ये वैकल्पिक मार्ग खतरनाक हो जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान दो बार रेल-रोको आन्दोलन के साथ तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री के आश्वासन के बावजूद अभी तक एक भी जगह पर रेलवे क्रा¨सग नहीं बनाया गया। मानसून की बारिश के दौरान फफराकुंड, करमसार, कररी, जुर्रा, खाडर, खैराही, चोरपनिया, धनबहवा, अमरसोता, बकिया, भोरार, पल्सो एवं कड़िया पश्चिम, बैरपुर ग्राम पंचायत के कई टोलों तक बड़े वाहन नहीं पहुंच पाते हैं। रेलवे की निरंकुशता का आलम यह है की रेलमार्ग को क्रास करने वाले मार्ग पर प्रतिरोधक खम्भे लगा दिए गए हैं। रेलमार्ग को पार करते हुए सैकड़ो बार दोपहिया चालक घायल हो चुके हैं। भारी वाहनों के लिए पार होने की कोई व्यवस्था नहीं हो पाने का सीधा असर विकास कार्यक्रमों पर पड़ता है।
दर्जनों स्थान हैं संवेदनशील
चोपन-¨सगरौली रेलवे मार्ग पर दर्जनों ऐसे स्थान हैं जहां से पटरियों को पार करना जान-जोखिम में डालने जैसा है। रेणुका पार का पूरा क्षेत्र पहाड़ी बाहुल्य क्षेत्र है इसलिए ज्यादातर जगहों पर पहाड़ियों को काटकर रेलवे लाइन बनायी गयी है। इस मार्ग पर तीव्र घुमाव भारी संख्या में है। ओबरा डैम रेलवे स्टेशन तथा फफराकुंड के बीच अरंगी और कडिया, फफराकुंड तथा करैला रोड स्टेशन के बीच खैराही, अदराकुदर, मिर्चाधुरी, तेढ़ीतेन, बैरपुर सहित दर्जन भर ऐसी जगहें हैं जहां से सदियों से आदिवासी आते रहतें हैं, लेकिन इन जगहों पर 30 मीटर के करीब जब ट्रेन आ जाती है तब जाकर ट्रेन दिखाई पड़ती है जो दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बनती है।
पटरियों की हालत खराब
बीते सितम्बर में हुए शक्तिपुंज एक्सप्रेस हादसे ने जहां भौगोलिक रूप से काफी कठिन पहाड़ी क्षेत्रों वाले चोपन-¨सगरौली रेलमार्ग पर रेल संचालन को लेकर ¨चता बढ़ाई है वहीं रेलवे ट्रैक के निर्माण में प्रयोग होने वाली सामग्री की गुणवत्ता पर पूर्व मध्य रेलवे के जीएम देबल कुमार गायेन द्वारा सवाल उठाये जाने से कई प्रश्न¨चह्न लग गया है। पटरियों के मैटेरियल की संभावित खराबी सामने आने के बाद इस रेलमार्ग पर सुरक्षित यात्रा को लेकर भी सवाल खड़े हो गये हैं। इस मामले ने देश में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले मंडलों में तीसरे स्थान के धनबाद मंडल के इस रेलखंड की उपेक्षा को भी सामने लाया है। सालाना 11 हजार से ज्यादा राजस्व देने वाले धनबाद मंडल के इस रेलखंड में पिछले कुछ वर्षों के दौरान दोहरीकरण एवं विद्युतीकरण सहित आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चलाई जा रही है। लेकिन पटरियों की गुणवत्ता पर उठे सवाल ने घटनाओं की पुनरावृत्ति की खतरनाक संभावना पैदा कर दी है।
पेट्रो¨लग बन रही समस्या
चोपन से ¨सगरौली के बीच पेट्रो¨लग की हालत अत्यंत खराब है। पेट्रो¨लग में कर्मचारियों की भारी कमी की वजह से तरीकों की हालत लगातार खराब होते जा रही है। सूत्रों की मानें तो नवंबर से मार्च तक ही पेट्रो¨लग ठीक से होती है। केवल एक कर्मचारी को छह किलोमीटर रेलमार्ग की पेट्रो¨लग करनी होती है। इस रेलखंड में जिस तरह की पद्धति है उसमें यह दूरी उक्त कर्मचारी के लिए लगभग 12 किलोमीटर हो जाती है। उक्त कर्मचारी को लगभग 15 किलो का भार लेकर रोजाना रेलवे ट्रैक का निरीक्षण करना होता है। जिसमें उसे जोड़ बोल्ट को कसते हुए फिश प्लेट और ज्वाइंट क्रा¨सग को ग्रीस करना पड़ता है। एक कीमैन को लगभग 80 पेंडोल चेक करना पड़ता है।इसमें भी पीडब्लूआइ स्तर के अधिकारियों का व्यवहार भी कीमैन के प्रति अपेक्षित नही रहता है। पूर्व में हुआ घटना में ऐसे कई पहलु हैं जिसपर काम करने की आवश्यकता है।
आंकड़ा..
जिले में रेलवे के कुल जोन : 02
कुल रेलगाड़ियों की संख्या : 30
मालगाड़ियां चलती हैं : 20
यात्री गाड़ियां चलती हैं : 10
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2014 में करमा के पास हुआ था हादसा
2003 में सलईबनवा के पास हादसा हुआ था।
2006 में कड़िया के पास कट गए थे तीन तीन लोग
2017 में कड़िया के पास पटरी से उतरी थी शक्तिपुंज एक्सप्रेस
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