बिजली उत्पादन से हो रहे प्रदूषण को कम करने की कवायद
बढ़ते तकनीकि युग में बिजली से महत्वपूर्ण कुछ नही है। जिसके कारण बिजली की मांग में लागातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। लेकिन प्रदूषण की रोकथाम के लिए केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कई मानक तय करने का बड़ा असर बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है।
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : बदलते दौर में बिजली से महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। इस कारण बिजली की मांग में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है लेकिन प्रदूषण की रोकथाम के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कई मानक तय करने का बड़ा असर बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है। पर्यावरण के नए मापदंडों के अनुसार 25 साल से अधिक पुराने ताप बिजली घरों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडीएस) प्रणाली लगाना अनिवार्य कर दिया गया है, अन्यथा इन बिजली घरों को बंद करना पड़ेगा। ऐसे में उत्पादन निगम प्रदेश की सबसे पुरानी इकाइयों से हो रहे प्रदूषण को कम करने की दिशा में काम कर रहा है। प्रदूषण संबंधी कारणों से कई इकाइयों की बंदी से सतर्क हुए निगम ने कई पुरानी इकाइयों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन प्रणाली लगाने का निर्णय लिया है। गतवर्ष ही छह नान रिहीट (गर्म करने का बाद चलने वाली) इकाइयों को बंद करने के बाद उत्पादन निगम अब कई अन्य इकाइयों से हो रहे प्रदूषण को कम करने की तैयारी शुरू कर दी है। नान रिहीट इकाइयों में कोयले की खपत ज्यादा होती है जिससे प्रदूषण ज्यादा होने के साथ ऊर्जा का ह्रास भी ज्यादा है। छह इकाइयों में लगेगी एफजीडीएस प्रणाली
पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के निर्देश पर उत्पादन निगम ने हरदुआगंज की 250 मेगावाट वाली दो इकाइयों, परीछा के 210 एवं 250 मेगावाट वाली दो-दो इकाइयों में एफजीडीएस की स्थापना एवं परामर्शी सेवा पर होने वाले व्यय 145.90 करोड़ की कार्ययोजना का अनुमोदन प्रदान किया है। ऐसे में कुल लागत 145.90 करोड़ के 80 फीसद 116.72 करोड़ का प्रबंध संस्थागत वित्त से तथा 20 फीसद 29.18 करोड़ की राशि शासकीय अंशपूजी से वित्त पोषित किए जाने का अनुमोदन निदेशक मंडल ने प्रदान किया है। निदेशक मंडल के अनुमोदन के बाद बंदी की संभावना झेल रहीं इकाइयों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। कारण कि पुराने बिजली घरों की फिक्स कास्ट नगण्य होने से इनकी उत्पादन लागत बहुत कम आती है जिसका लाभ आम जनता को सस्ती बिजली के रूप में मिलता है। कई इकाइयों को लेकर ¨चता
पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मानकों को देखते हुए अब कई इकाइयों को लेकर ¨चता व्यक्त की जा रही है। खासकर प्रदेश को सबसे ज्यादा सस्ती बिजली देने वाली कई इकाइयों की ¨चता भी ट्रेड यूनियनों को सताने लगी है। अभियंता संघ के क्षेत्रीय सचिव अदालत वर्मा ने बताया कि हरदुआगंज की 60 मेगावाट वाली पांचवीं इकाई, ओबरा तापीय परियोजना की 50 मेगावाट वाली पहली और दूसरी इकाई, सौ मेगावाट वाली आठवीं इकाई, पनकी तापीय परियोजना की 110 मेगावाट वाली तीसरी और चौथी इकाई को गत वर्ष बंद कर दिया गया। अब ओबरा ब तापघर की 200 मेगावाट वाली पांच इकाइयां, अनपरा अ ताप घर की 210 मेगावाट की तीन और ब तापघर की 500 मेगावाट वाली दो इकाइयां भी बंदी की संभावना झेल रही हैं। कहा कि प्रदेश को सबसे सस्ती बिजली देने वाली इन इकाइयों को भी बचाने का प्रयास किए जाने की जरूरत है।