प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू, जलाशयों की बढ़ी रौनक
तापमान में कमी के साथ प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। ओबरा डैम सहित रेणुकापार के कई जलस्त्रोतों में नये पक्षियों का आगमन देखा जा रहा है।
जागरण संवाददाता , ओबरा (सोनभद्र) : तापमान में कमी के साथ प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। ओबरा डैम सहित रेणुकापार के कई जलस्त्रोतों में नए पक्षियों का आगमन देखा जा रहा है। वैसे तो नीलकंठ, ¨कगफिशर, बगुला सहित तमाम पक्षी यहां वर्ष भर मौजूद रहते हैं लेकिन सर्दियों में नये प्रवासी पक्षियों के आगमन के बाद तमाम जलस्त्रोत पक्षियों की आवाज से गुलजार हो जाते हैं। फिलहाल ¨रग नेक्ड डक नामक पक्षी कई बड़े जलाशयों में दिखने लगे हैं। गोली आंखों वाले यह पक्षी एक गोताखोर बतख हैं जो आमतौर पर ताजे पानी के तालाबों और झीलों में पाए जाते हैं।
अपनी गर्दन को 360 डिग्री पर घुमाने वाले यह बतख कहां से आते हैं इसके बारे में स्थानीय जानकारों को कोई जानकारी नही हैं। लेकिन माना जाता है कि यह ठंडे प्रदेशों से आती हैं क्योंकि इस दौरान ये प्रजनन भी करते हैं। ओबरा डैम के साथ विजुल नदी के कई हिस्सों में इन बतखों अपना घोसला बनाकर प्रजनन की तैयारी शुरू कर दी हैं। ओबरा डैम के किनारे पर यह बहुतायत में प्रवास कर रहे हैं। धूप होने पर यह किनारों से निकल कर डैम के अंदरूनी हिस्सों तक पहुंच जाते हैं। फिर शुरू होती है इनकी जल क्रीढा। अगले दो माह में इनकी संख्या में गुणोत्तर वृद्धि होती है। बतख प्रजाति के पक्षियों का आगमन आकर्षण का विषय बना हुआ है। हजारों की संख्या में पहुंचे ¨रग नेक्ड डक नामक पक्षी ओबरा डैम की शोभा बने हुए हैं। शीतकालीन प्रवास पर आते हैं
गोली आंखों वाले यह पक्षी एक गोताखोर बतख हैं जो आमतौर पर ताजे पानी के तालाबों और झीलों में पाए जाते हैं। अपनी गर्दन को 360 डिग्री पर घुमाने वाले यह बतख कहां से आते हैं इसके बारे में स्थानीय जानकारों को कोई जानकारी नहीं है। ओबरा डैम के तटवर्ती चैना टोला के ग्रामीण राम वृक्ष बताते हैं कि यह सर्दी के मौसम में यहां आते हैं। माता प्रजाति के पक्षी बसंत ऋतू में यह डैम में मौजूद सरपतों में अंडे देती हैं। इन पक्षियों को आदिवासी काफी श्रद्धा के तौर पर देखतें हैं। बताया कि इस बार कोहरा कम हुआ है इसलिए ये पक्षी पिछले वर्ष की अपेक्षा कम दिखाई पड़ रहे हैं। मछलियां हैं मुख्य आहार
वैसे तो ये बतखें छोटी मछलियों पर ज्यादा निर्भर होती हैं लेकिन यहां मौजूद कीड़े मकोड़े भी खाते रहते हैं। यह बतख गोताखोरी कर गहराई में मौजूद कीड़े मकोड़े भी खाते रहते हैं। खासकर डूबे हुए झाड़ियों के आसपास मडराने वाले कीड़ों, घोघों पर इनकी काफी निर्भरता है। बेहद शांत प्रकृति ये बतख जरा सी आहट पर तुरंत दूर उड़ जाते हैं। वर्तमान में तापमान में कमी के कारण कई मछलियां पानी में काफी नीचे चली जाती हैं। हालांकि गोताखोरी में निपुण ¨रग नेक्ड डक गहराई में जाकर अपना शिकार पकड़ लेते हैं।