श्री कृष्ण के प्रेम में मीरा ने सर्वस्व गंवाया
रासलीला मंचन के पांचवीं सांध्य शुक्रवार को भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई की भक्ति चरित लीला का सजीव मंचन किया। श्री विशाखा रमण बिहारी रासलीला मंडल संस्थान वृंदावन के कलाकारों द्वारा लीला मंचन में दिखाया।
जासं, दुद्धी (सोनभद्र) : रासलीला मंचन के पांचवीं सांध्य शुक्रवार को भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई की भक्ति चरित लीला का सजीव मंचन किया। श्री विशाखा रमण बिहारी रासलीला मंडल संस्थान वृंदावन के कलाकारों द्वारा मंचन किया गया। मीराबाई के बाल मन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि यौवन काल से लेकर मृत्यु तक मीरा ने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना।
मंचन के जरिए मीरा से जुड़े मार्मिक प्रसंग दिखाए गए। बचपन में एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। इस दौरान मीरा अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है। इस पर मीराबाई की माता ने श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ इशारा कर कह दिया कि वही तुम्हारे दूल्हा हैं। यह बात उनके बाल मन में एक गांठ की तरह बंध गई। मीराबाई का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में राणा सांगा के पुत्र भोजराज से कर दिया गया। इस शादी के लिए पहले तो मीराबाई ने मना कर दिया। पर जोर देने पर वह फूट-फूटकर रोने लगी और विदाई के समय कृष्ण की वहीं मूर्ति अपने साथ ले गई, जिसे उसकी माता ने उनका दूल्हा बताया था। मीराबाई ने लोक लज्जा और परंपरा को त्याग कर अनूठा प्रेम और भक्ति का परिचय दिया। विवाह के दस बरस बाद उनके पति का देहांत हो गया। मीराबाई के कृष्ण प्रेम को देखते हुए लोक लाज की वजह से मीराबाई के ससुराल वालों ने उन्हें मारने के लिए कई चालें चली पर सब विफल रहीं। मीरा बाई ने भक्ति को एक नया आयाम दिया है, एक ऐसा स्थान जहां भगवान ही इंसान का सब कुछ होता है। दुनिया के सभी लोभ उसे मोह से विचलित नहीं कर सकते। एक अच्छा खासा राजपाट होने के बाद भी मीराबाई वैरागी बनी रहीं। द्वारिका में भगवान द्वारिकाधीश रणछोड़ जी के विग्रह में विलीन होकर भगवान श्रीकृष्ण के परम धाम चली गई।
रासलीला आयोजन समिति के अध्यक्ष त्रिलोकी नाथ सोनी, संयोजक श्यामसुंदर अग्रहरि, संरक्षक आलोक अग्रहरि सहित तमाम सहयोगी कार्यकर्ता कार्यक्रम को सफल बनाने में लगे रहे साथ ही सुरक्षा व्यवस्था की कमान स्थानीय पुलिस जवान संभाले रहे।