प्रदूषित चीजों के सेवन से लीवर को खतरा
परंपरा से सीखने की आदत कुछ अवरोधों के कारण बदल जाए तो उसे फिर से पटरी पर लाने के लिए मशक्कत करनी होती है। इसमें से एक है प्रदूषित भोजन, पानी, मिट्टी और हवा।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र: परंपरा से सीखने की आदत कुछ अवरोधों के कारण बदल जाय तो उसे फिर से पटरी पर लाने के लिए मशक्कत करनी होती है। इसमें से एक है प्रदूषित भोजन, पानी, मिट्टी और हवा। यह आज के वातावरण में हर जगह सहज उपलब्ध हैं। ऐसा न हो, इसके लिए कानून की बंदिशें हैं लेकिन, जरूरतें ऐसी हैं कि बेबस होकर लोगों को प्रदूषित चीजों का उपयोग करना पड़ रहा है। एक शोध से खुलासा हुआ है कि ऐसे वातावरण में रहने व वस्तुओं के उपयोग से लीवर को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
इस शोध की ताजा स्थिति जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित उत्पाद संयंत्रों में देखी जा सकती है। इसमें मुख्य रूप से कोयला व कोयला आधारित संयंत्र व पत्थर की खदान शामिल हैं। इसके चलते जनपद के दक्षिणी हिस्से में प्रदूषण की गंभीर स्थिति हो गई है। बता दें कि इसे नियंत्रित करने के लिए एनजीटी जैसे न्यायाधिकरण को हस्तेक्षप करने पड़े हैं। कई संगठन ऐसे प्रदूषक तत्वों की कमी की लड़ाई लड़ रहे हैं, उसके बावजूद पीएफएएस जनित प्रदूषक तत्व लगातार निकल रहे हैं। ओबरा से लगायत अनपरा व शक्तिनगर का समूचा हिस्सा भयानक प्रदूषण की चपेट में है। निजी संस्थानों द्वारा लगातार किये जा रहे शोधों से यह स्पष्ट हो चला है कि यहां प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियों ने जन्म ले लिया है। इससे भी चौंकाने वाली बात तो यह है कि यहां की प्रदूषण की गंभीर स्थिति को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी स्वीकार किया है। वहीं अमेरिका के ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, जैविक रूप से नष्ट न होने वाले यौगिकों में औद्योगिक प्रक्रियाओं और उपभोक्ता उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले पर एंड पालीफ्लूसेएल्काइल सबस्टेंस (पीएफएएस) की बहुतायत है।
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सोनभद्र-¨सगरौली में जलता है कोयला - 1030 करोड़ टन (प्रतिवर्ष)
वातावरण में फैल रहे धूल के कण - 6500 टन (प्रतिवर्ष)
खनन के बाद उड़ते हैं धूल के कण - 6000 टन (अनुमानित)
क्रसर प्लांटों की संख्या - लगभग 250 क्या है पीएफएएस
पीएफएएस मानव निर्मित रसायन है, जिनका उपयोग 1950 के दशक से दुनिया भर में उद्योग और उपभोक्ता उत्पादों में किया जाता है। इन्हें जलरोधी कपड़ों, दाग प्रतिरोधी कपड़े और कालीन, कुछ सौंदर्य प्रसाधन, कुछ अग्निशामक झाग सहित तेल, पानी और तेल का प्रतिरोध करने वाले उत्पादों में उपयोग किया गया है। क्या पड़ता है इसका प्रभाव
-शिशुओं के विकास और व्यवहार में अंतर।
-गर्भधारण की क्षमता प्रभावित
-शरीर के प्राकृतिक हार्मोन प्रभावित
-कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि
-प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित
-कैंसर के खतरे में वृद्धि बोले चिकित्सक
निश्चित रूप से प्रदूषित चीजों को खाने से लीवर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उसकी कार्य क्षमता घट जायेगी। वैसे प्रकृति ने लीवर को काफी मजबूत बनाया है। उसमें स्वयं को सुरक्षित रखने की क्षमता होती है। फिर भी लगातार प्रदूषित चीजों के सेवन से दिक्कत आयेगी। खाद्य पदार्थों की सुरक्षा में लगी निगरानी एजेंसियों को सक्रिय रहना चाहिए।
-पीबी गौतम, सीएमएस, जिला चिकित्सालय, सोनभद्र।