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कर्म का शुद्ध अर्थ है आराधना

गीता जयंती के अवसर पर रविवार को राब‌र्ट्सगंज के जयप्रभा मंडपम में गीता के आलोक में कर्म विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने कहा कि गीता के अनुसार कर्म का शुद्ध अर्थ आराधना है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए जो क्रिया महापुरुष संपादित करते रहे हैं गीता उसी कर्म की अनुशंसा करती है। गीता में लिखा है कि यज्ञ को कार्य रूप देना ही कर्म है और यह यज्ञ कोई भौतिक यज्ञ नहीं है। यह अन्न आदि का अग्नि में हवन नहीं है बल्कि गीता जिस यज्ञ का समर्थन करती है वह श्वास का प्रश्वास में और प्रश्वास का श्वास में हवन करने से है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 04:48 PM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 09:32 PM (IST)
कर्म का शुद्ध अर्थ है आराधना
कर्म का शुद्ध अर्थ है आराधना

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : गीता जयंती के अवसर पर रविवार को राब‌र्ट्सगंज के जयप्रभा मंडपम में गीता के आलोक में कर्म विषय पर गोष्ठी हुई। इसमें वक्ताओं ने कहा कि गीता के अनुसार कर्म का शुद्ध अर्थ आराधना है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए जो क्रिया महापुरुष संपादित करते रहे हैं, गीता उसी कर्म की अनुशंसा करती है। गीता में लिखा है कि यज्ञ को कार्य रूप देना ही कर्म है और यह यज्ञ कोई भौतिक यज्ञ नहीं है। यह अन्न आदि का अग्नि में हवन नहीं है, बल्कि गीता जिस यज्ञ का समर्थन करती है वह श्वास का प्रश्वास में और प्रश्वास का श्वास में हवन करने से है।

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गीता जयंती समारोह समिति द्वारा आयोजित गोष्ठी का शुभारंभ अपर जिलाधिकारी योगेंद्र बहादुर सिंह ने यथार्थ गीता के प्रणेता स्वामी अड़गड़ानंद जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया। उन्होंने कहा कि अर्जुन की तरह ²ढ़ निश्चय वाला व्यक्ति ही गीता के पथ पर चल सकता है। अध्यक्षता करते हुए डा. बी सिंह ने कहा कि ईश्वर तक की दूरी तय करने की प्रक्रिया ही कर्म है। कवि जगदीश पंथी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि गीतोक्त कर्म निश्चित परिणाम देता है। मात्र गीतोक्त कर्म ही परिणाम की गारंटी देता है। कथाकार रामनाथ शिवेंद्र ने समाजशास्त्रीय अध्ययन पर बल देते हुए कर्म की व्याख्या की। डा. जीपी निराला, भोलानाथ मिश्रा, रामजनम, धनुषधारी राम चौबे, राजू तिवारी को गीता के प्रचार प्रसार के लिए सम्मानित किया गया। डा. अर्जुन दास केसरी, पारसनाथ मिश्र, डा. रमाशंकर त्रिपाठी, बालेश्वर सिंह यादव आदि ने संबोधित किया। संयोजक डा. कुसुमाकर ने स्वागत किया और संचालन भोलानाथ मिश्रा ने किया। इसमें चंद्रकांत शर्मा, ईश्वर विरागी, धनंजय पाठक, उमाकांत मिश्र, प्रसन्न पटेल, डा. सुधीर मिश्रा, प्रभाकर श्रीवास्तव आदि थे।


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