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धान की कटाई से पहले अलर्ट रहने का निर्देश

पराली के धुएं से जहरीला होते वातावरण को स्वच्छ बनाने के लिए केंद्र ने सभी राज्यों को अलर्ट रहने का निर्देश दिया है। अब किसानों को धान या गेहूं की पराली जलाने से रोका जाएगा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 09:35 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 09:35 PM (IST)
धान की कटाई से पहले अलर्ट रहने का निर्देश
धान की कटाई से पहले अलर्ट रहने का निर्देश

सोनभद्र: पराली के धुएं से जहरीला होते वातावरण को स्वच्छ बनाने के लिए केंद्र ने सभी राज्यों को अलर्ट रहने का निर्देश दिया है। अब किसानों को धान या गेहूं की पराली जलाने से रोका जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को धन भी मुहैया कराया है। हालांकि जनपद के उपकृषि निदेशक ने ऐसा कुछ आदेश आने के सवाल पर अनभिज्ञता जतायी।

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दरअसल, वातावरण में घुलते प्रदूषक तत्वों को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को अलर्ट किया है। दिल्ली के साथ ही देश के दर्जनों शहर प्रदूषण की गंभीर स्थिति में है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तो ¨सगरौली सहित जनपद के अनपरा व ओबरा को प्रदूषण की भयंकर स्थिति की सूची में रखा है। यहां के वातावरण में कोयला से निकलने वाले रसायनों के साथ दूसरे वे तत्व शामिल हैं जिसके चलते स्थिति गंभीर बनी हुई।

जिले का सीमावर्ती हिस्सा धान के कटोरा के नाम से मशहूर हैं। इस क्रम में जनपद का उत्तरी हिस्सा जो मूल रूप से मैदानी है और उपजाऊ भूमि से आच्छादित है। यहां पर बड़े पैमाने पर धान व गेहूं की फसल उत्पादित की जाती है। यहां पर हर साल लगभग एक लाख से अधिक हेक्टेयर जमीन पर धान व गेहूं की फसल उत्पादित की जाती है। इतने बड़े हिस्से में हर साल लाखों टन पराली निकलती है। एक जानकारी के मुताबिक पराली से सबसे अधिक ग्रीन हाउस गैस कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसके जलने से जमीन में मौजूद 5.5 किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलो फास्फोरस, 25 किलो पोटैशियम, 1.2 किलो सल्फर तथा 50 से 70 छोटे तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। खुले में एक टन पराली जलाने से हवा में 70 फीसद कार्बन डाई आक्साइड, सात फीसद कार्बन मोनोआक्साइड, दो फीसद नाइट्रोजन आक्साइड तथा 0.66 फीसद मीथेन गैस पैदा होती है। उपकृषि निदेशक दिनेश कुमार गुप्त ने कहा कि आदेश की जानकारी अभी नहीं है। लेकिन इसकी पूरी जानकारी ली जाएगी। बता दें कि धान की फसल कटाई का समय 20 सितम्बर से 15 नवंबर तक है। यहां बड़े दायरे में धान की फसल उत्पादित की जाती हैं।

इससे बचने के क्या हैं उपाय

वहीं पराली को जलाने की बजाय उसे खेतों में बिछाकर मिट्टी में मिलाने के लिए चौपर, मलचर, हैप्पी सीडर, रोटावेटर, उलटावा हल आदि मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिए। देश की कुछ प्रदेश सरकारें तो इन मशीनों पर सब्सिडी भी दे रही हैं। वैसे, ऐसे हानिकारक गैसों पर रोक लगाने के लिए किसानों को स्वत: भी जागरूक होने की जरूरत है।


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