फ्लाईऐश की नहीं बढ़ रही खपत
बढ़ते औधोगिक प्रदूषण के बीच एनजीटी के कड़े मापदण्डों ने कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए कई उपायों के लिए प्रेरित किया है । खासकर तापीय परियोजनाओं के आसपास फ्लाई ऐश के बढ़ते ढेर ने कई समस्याएं पैदा कर दी है ।ऐसे में फ्लाई ऐश के उपयोग में वृद्धि बढ़ाना आवश्यक हो गया है।खासकर सोनभद्र-¨सगरौली औधोगिक क्षेत्र में प्रतिदिन पौने तीन लाख टन से ज्यादा कोयले की खपत के कारण फ्लाई ऐश का सबसे बड़ा ढेर यह क्षेत्र बनते जा रहा
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण के बीच एनजीटी के कड़े मापदंडों ने कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए कई उपायों के लिए प्रेरित किया है। खास कर तापीय परियोजनाओं के आसपास फ्लाई ऐश के बढ़ते ढेर ने कई समस्याएं पैदा कर दी है। ऐसे में फ्लाई ऐश के उपयोग में वृद्धि आवश्यक हो गया है। खासकर सोनभद्र-¨सगरौली औद्योगिक क्षेत्र में प्रतिदिन पौने तीन लाख टन से ज्यादा कोयले की खपत के कारण फ्लाई ऐश का सबसे बड़ा ढेर यह क्षेत्र बनते जा रहा है।
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देश पर उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम अपनी तापीय परियोजनाओं से फ्लाई ऐश निकासी के लिए प्रयासरत है। इसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। तमाम परियोजनाओं से निकल रहे फ्लाई ऐश का पांच फीसद भी उपयोग नही हो पा रहा है वह भी मुफ्त मिलने पर। कोयला जलने के बाद 28 से 40 फीसद फ्लाई ऐश निकलती है जिसमें काफी हिस्सा ऐश डैम या अन्य जलस्त्रोतों में जाता है। फ्लाई ऐश के प्रभाव में जहां भारी आबादी के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है वहीं पर्यावरण को होने वाले नुकसान की सीमा भी चरम पर पहुंच चुकी है। देश में अभी फ्लाई ऐश को कूड़ा ही समझा जाता है। ताप बिजली घरों के इर्द-गिर्द इनके जमा होते टीलों और पोखरों की समस्या से निपटने के लिए पर्यावरण मंत्रालय विज्ञान एवं प्रभाव प्रौद्योगिकी विभाग एवं बिजली मंत्रालय मिलकर ढाई दशक पहले से लगे हुए हैं। इसके बावजूद इस्तेमाल का प्रतिशत लगभग 10 फीसद भी नहीं पहुंचा है। विकसित देशों में इसे दुर्लभ दौलत माना जाता है और 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से का उपयोग हो जाता है। पर्यावरण मंत्रालय फ्लाई ऐश से निबटने के लिए कानूनी प्रतिबंध कोई दो दशक पहले लगाने शुरू किए थे परंतु जमीनी सच्चाई खतरनाक संकेत दे रहे हैं।
उत्पादन निगम उपयोग बढा़ने के लिए प्रयासरत
उत्पादन निगम फ्लाई ऐश का उपयोग बढा़ने के लिए लगातार प्रयास में जुटा हुआ है। उत्पादन निगम ने एक हजार मेगावाट क्षमता के अनपरा डी के राख साइलो से निष्कासित 3500 एमटी प्रतिदिन फ्लाई ऐश के उपयोग के लिए उपयोगकर्ताओं को आमंत्रित किया है। इनमे सीमेंट, ईंट, ब्लाक्स, एग्रीगेट सहित तमाम निर्माताओं को शामिल किया गया है। इससे पहले भी उत्पादन निगम द्वारा कई बड़े सीमेंट कंपनियों सहित सड़क निर्माण के लिए फ्लाई ऐश की आपूर्ति कर रहा है। पूर्व में उत्पादन निगम ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ करार किया था। एनएचआइ से करार के बाद ओबरा तापीय परियोजना के ऐश पांड में मौजूद रख का राष्ट्रीय राजमार्ग की परियोजनाओं में प्रयोग होगा। फिलहाल एनएच 56 एवं 233 के वाराणसी सेक्शन के अंतर्गत आने वाले हिस्सों के लिए फ्लाई ऐश की आपूर्ति की जाएगी। हालांकि यह करार अभी भी फाइलों में दबी हुयी है। खपत बढ़ाने के लिए ही सोनभद्र जिला प्रशासन को सीएसआर योजना के अंतर्गत 2 नग फ्लाई ऐश आधारित ईंट बनाने की मशीन प्रदान की गई है जिसमें प्रत्येक मशीन की क्षमता 1600 ईंट प्रति घंटा निर्माण करने की है । मशीनों की कुल लागत 36 लाख रुपये है । मशीनों से ईंटों के निर्माण में 60 से 70फीसद फ्लाई ऐश का प्रयोग भी संभव होगा जो पर्यावरण संरक्षण की ²ष्टि से अत्यंत उपयोगी है। हमारा पूर्व से प्रयास रहा है कि फ्लाई ऐश का उपयोग ज्यादा से ज्यादा हो लेकिन इसके बावजूद अपेक्षित मात्रा में अभी भी फ्लाई ऐश के उपयोगकर्ता नहीं मिल पा रहे हैं। सीमेंट कम्पनी अल्ट्राटेक से ड्राई फ्लाई ऐश का अनुबंध है लेकिन उनकी क्षमता उतनी नहीं है। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को ऐश पांड में मौजूद राख उठाने का मामला भी मुख्यालय स्तर पर विचाराधीन है।बताया कि जेपी एसोसियेट की टीम द्वारा भी पिछले दिनों फ्लाई ऐश के लिए वार्ता हुयी है।बताया कि तमाम प्रयासों के बावजूद फ्लाई ऐश की खपत नही बढ़ पा रही है।
- सीपी मिश्रा, मुख्य महाप्रबंधक, ओबरा परियोजना