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ऊर्जांचल में भी बहने लगी होली की बयान

जासं अनपरा (सोनभद्र) बसंत के आवरण में होली की मद-मस्त की रंगत जोर पकड़ने लगी है। सड़कों पर अब ऐसे चेहरे देखे जाने लगे हैं जिनके कपड़े किसी आत्मीय जनों द्वारा डाले गये रंगों से सराबोर रहते हैं। गौरतलब हो कि ऋतुराज बसंत आगमन के साथ ही मौसम में जहां गुलाबी बयार बहने लगती है वहीं मद-मस्त मौसम के बीच पड़ने वाला होली का

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Mar 2020 04:49 PM (IST)Updated: Fri, 06 Mar 2020 04:49 PM (IST)
ऊर्जांचल में भी बहने लगी होली की बयान
ऊर्जांचल में भी बहने लगी होली की बयान

जागरण संवाददाता, अनपरा (सोनभद्र) : बसंत के आवरण में होली की मद-मस्त की रंगत जोर पकड़ने लगी है। सड़कों पर अब ऐसे चेहरे देखे जाने लगे हैं जिनके कपड़े किसी आत्मीय जनों द्वारा डाले गए रंगों से सराबोर रहते हैं। गौरतलब हो कि ऋतुराज बसंत आगमन के साथ ही मौसम में जहां गुलाबी बयार बहने लगती है वहीं मद-मस्त मौसम के बीच पड़ने वाला होली का पर्व भी अपने ढंग में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बाजारों में रंगों की दुकानें सजने के साथ ही होली गीत जगह-जगह बजने लगे हैं। होलिका जलाने के लिए उसके आकार को भी प्रतिदिन बढ़ाया जा रहा है। हंसी मजाक, प्रेम और भाईचारे के प्रतीक इस त्योहार पर हर कोई उल्लास एवं उमंग के साथ एक विलक्षण मादकता तथा पवित्र सात्विकता का अनुभव करते हैं।

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विडंबना है कि दिव्य प्रेरणाओं से भरा यह पर्व अश्लीलता एवं अशुद्ध चितन का परिचायक बनता जा रहा है। त्योहार का स्वररूप बदलने के कारण संभ्रांत लोगों का दिन-प्रतिदिन इस त्योहार से मोह भंग हो रहा है। इसे मनाने के तौर तरीकों में फैल रही तमाम विकृतियों से लोग अब घरों में कैद रहने को विवश हो गए हैं। फिर भी समाज का एक तबका ऐसा है जो रंग एवं गुलाल को फिजुल नहीं मानता है, तथा डाले गए रंगों का वह बुरा नहीं मानता, बल्कि इसे आत्मीय जनों द्वारा रंगों के रुप में उस पर उड़ेले गये प्यार की संज्ञा देता है। औद्योगिक कालोनियों सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों में होली से सम्बंधित गीतों के कैसेट तथा शाम ढलते ही ढोलकों की थाप और झांझ की झंकार के बीच फागुनी लोक गीतों की बोली सुनी जाने लगी है। चारों तरफ होली की मस्त बयार में लोग-बाग झूमते नजर आ रहे हैं। बहरहाल आधुनिक चकाचौंध की आंधी में आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रेम और भाई-चारे के प्रतीक इस होली के त्योहार को हम अपनी प्राचीन परम्परा को कायम रख कर सौहार्द के वातावरण से मनाये। कोई ऐसा कार्य हुड़दंग के जोश में न किया गया जाए, जिससे कटुता कायम हो, यही हमारी प्राचीन संस्कृति रही है।


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