पत्थर खनन के लिए नए क्षेत्रों की खोज शुरू
पत्थर खनन के लिए नए क्षेत्रों की खोजबीन के लिए खनन निदेशालय की पांच सदस्यीय टीम ने बुधवार को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र का दौरा किया। टीम ने बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र के बिल्ली में रकबा संख्या 4949 व 447
जागरण संवाददाता, ओबरा/डाला : पत्थर खनन के लिए नए क्षेत्रों की खोजबीन के लिए खनन निदेशालय की पांच सदस्यीय टीम ने बुधवार को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र का दौरा किया। टीम ने बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र के बिल्ली में रकबा संख्या 4949 व 4478 सहित डाला क्षेत्र के रकबा 7536 के आसपास के क्षेत्रों का अवलोकन किया। टीम द्वारा अन्य क्षेत्रों के भी निरीक्षण की संभावना है। धारा 20 के प्रकाशन के बाद बिल्ली-मारकुंडी के शेष बची उपयुक्त भूमि को खोजकर खनन के नए अवसर प्रदान कराने को लेकर टीम पूरी रिपोर्ट बनाकर जल्द ही खनन निदेशालय को सौंप देगी। भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय की निदेशक डा. रोशन जैकब के निर्देश पर पहुंची टीम ने कई हिस्सों को चिह्नित किया। बिल्ली-मारकुंडी में ई-निविदा सह ई-नीलामी प्रणाली के माध्यम से खनन परिहार (परमिट) पर दिए जाने के लिए उपलब्ध उपखनिज के क्षेत्रों के चिह्नांकन से खनन क्षेत्र की खराब स्थिति में सुधार की गुंजाइश है। इस दौरान पांच सदस्यीय टीम में ज्येष्ठ खान अधिकारी एसके सिंह, अमित कौशिक, खान अधिकारी केके राय, सहायक भू वैज्ञानिक आरपी सिंह, दाऊद अंसारी के साथ उप जिलाधिकारी यमुनाधर चौहान, जिला खनन अधिकारी महबूब खां, डॉ. विजय कुमार मौर्या, कानूनगो अमरेश सिंह, खनन निरीक्षक जीके दत्ता, सर्वेयर संतोष पाल, क्षेत्रीय लेखपाल राजेश मिश्रा, ओबरा लेखपाल ओमप्रकाश चतुर्वेदी, मानचित्रकार लक्ष्मीकांत यादव आदि उपस्थित रहे। बढे़गी रोजगार की संभावना
पिछले कुछ वर्षों से कई तकनीकी समस्याओं सहित खनन लायक भूमि की कमी के कारण बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में खनन 80 फीसद से ज्यादा कम हुआ है। कभी 50 हजार से ज्यादा मजदूरों को सीधे रोजगार देने वाले खनन क्षेत्र में वर्तमान में सन्नाटे की स्थिति है। खनन निदेशालय की नए क्षेत्र खोजने की मुहिम से भारी संख्या में पुन: रोजगार की संभावना पैदा होगी। खासकर धारा 20 के प्रकाशन के बाद 50 के करीब नई खदानें शुरू हो सकेंगी। दरअसल, इससे पूर्व भी लगभग दो दशक पहले खनन के लिए नए क्षेत्र खोजने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। वर्ष 2002 में खनन विभाग ने ग्राम पंचायत बिल्ली मारकुंडी, सिन्दुरिया एवं वर्दियां में स्थित 108 हेक्टेयर वन भूमि के हस्तांतरण का प्रयास शुरू किया था। लेकिन तकनीकी दिक्कतों की वजह से यह प्रस्ताव वर्ष 2005 में भारत सरकार के वन मंत्रालय द्वारा रद कर दिया गया था।