खनन क्षेत्र में बंदिश के बाद भी मानक ताख पर
कहने को तो पर्यावरण संरक्षण को लेकर एनजीटी बहुत सख्त हो गई है। जिसके कारण सोनांचल में अधिकांश खदान व क्रशर प्लांट बंद हो गए। लेकिन डाला से गुजरते वक्त ऐसा एहसास नहीं होता। इसके पीछे मूल कारण खनिज व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनदेखी के चलते क्रशर संचालक प्रकृति के सौंदर्य को नष्ट करने पर तुले हुए है। आलम यह है कि विभागीय लोग बगैर सीमांकन व चहारदीवारी के ही क्रशर प्लांटों को अनापत्ति प्रमाण जारी कर दिया गया है
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : कहने को तो पर्यावरण संरक्षण को लेकर एनजीटी बहुत सख्त हो गई है। जिसके कारण सोनांचल में अधिकांश खदान व क्रशर प्लांट बंद हो गए। लेकिन डाला से गुजरते वक्त ऐसा अहसास नहीं होता। इसके पीछे मूल कारण खनिज व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनदेखी के चलते क्रशर संचालक प्रकृति के सौंदर्य को नष्ट करने पर तुले हुए है। हाल यह है कि विभागीय स्तर से बगैर सीमांकन व चहारदीवारी के ही क्रशर प्लांटों को अनापत्ति प्रमाण जारी कर दिया गया है।
क्रशर प्लांट के संचालन के लिए छह मानकों को पूरा करना जरूरी है। क्रशर प्लांट मालिक के पास कम से कम लगभग चार बीघा भूमि होनी चाहिए। प्लांट की जमीन के चारों तरफ आठ फीट ऊंची की चहारदीवारी होनी चाहिए। चारों ओर हरति पट्टिका होनी चाहिए ताकि प्लांट से उड़ रही धूल बाहर न जाने पाए। इसके अलावा कार्य के दौरान पानी का फव्वारा भी देना होता है ताकि धूल न उड़े। इसके साथ ही खनिज विभाग के भंडारण की अनुमति पत्र होना चाहिए। पत्थर आयात और निर्यात के लिए लीज से अनुबंध होना चाहिए। इसके बाद क्रशर प्लांट संचालन का मानक पूरा होता है, लेकिन ऐसा अधिकांश क्रशर प्लांटों नहीं किया है। फिर भी उनको खनिज विभाग व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, जबकि सही मायने में प्लांटों की जांच की जाए तो वर्तमान समय में जिले भर में कुछ को छोड़ कर अधिकांश क्रशर प्लांट अवैध तरीके से चल रहे हैं।
क्रशर प्लांटों से उड़ रहे धूल से स्थानीय के साथ-साथ राहगीर भी परेशान हो गए हैं। राहगीरों की कौन कहे अगल-बगल रहने वाले लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। बावजूद इसके प्रशासन ऐसे क्रशर प्लांटों को बंद करने की जहमत नहीं उठा रहा है। रोक के बावजूद सड़क मार्ग से कोल परिवहन
जिले में प्रदूषण न बढ़ने पाए इसके लिए सड़क मार्ग से कोल परिवहन मनाही है। बावजूद इसके ऊर्जांचल में बड़े पैमाने पर कोयले का परिवहन सड़क से होता है। वह भी खुलेआम। हाल यह है कि उसी सड़क से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ ही खनन विभाग व अन्य अधिकारी भी गुजरते हैं। लेकिन इसपर ध्यान शायद ही कोई देता हो। इसका नतीजा होता है कि प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है।