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लैंको के चलते प्रदेश में गहराएगा बिजली संकट

लैंको के कोयला संकट का असर प्रदेश की बिजली व्यवस्था पर भी दिखना शुरू हो गया है। 1200 मेगावाट की इस परियोजना से केवल 300 मेगावाट बिजली ही बनाई जा रही है। खास बात यह है कि ये उत्पादन भी संभवत: दो या तीन दिन ही हो सकेगा।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Oct 2018 05:32 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 09:25 PM (IST)
लैंको के चलते प्रदेश में गहराएगा बिजली संकट
लैंको के चलते प्रदेश में गहराएगा बिजली संकट

जासं, अनपरा (सोनभद्र) : लैंको के कोयला संकट का असर प्रदेश की बिजली व्यवस्था पर भी दिखना शुरू हो गया है। 1200 मेगावाट की इस परियोजना से केवल 300 मेगावाट बिजली ही बनाई जा रही है। खास बात यह है कि ये उत्पादन भी संभवत: दो या तीन दिन ही हो सकेगा। क्योंकि लैंको के पास कोयले का स्टाक लगभग समाप्त होने वाला है और अगर तत्काल लैंको को कोयला नहीं मिला तो चालू एक इकाई को भी बंद करना पड़ेगा। लैंको के पास मंगलवार को दोपहर तक 4000 टन कोयला स्टाक में था।

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पूरी क्षमता से उत्पादन शुरू

लैंको के कोयला संकट का ही असर है कि प्रदेश के सभी बिजली घरों को पूरी क्षमता से उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है। प्रदेश की सात सरकारी परियोजनाओं और 13 निजी उत्पादन कंपनियों सहित जल विद्युत गृहों से भी पूरी क्षमता से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। इसके बावजूद उत्पादन निगम को आपात कटौती कर हालात संभालने पड़ रहे हैं।

18000 मेवा पहुंची मांग

मंगलवार को दोपहर में ही प्रदेश में बिजली की मांग का आंकड़ा 15000 मेगावाट को पार कर गया। पीक आवर में बिजली की मांग 18000 मेगावाट पहुंच गई। प्रदेश भर की सभी परियोजनाओं को मिलाकर 8000 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है जबकि पीक आवर में 10000 मेगावाट बिजली केंद्र से खरीदी जा रही है।

1200 मेवा है क्षमता

लैंको परियोजना 1200 मेगावाट की है, जिससे वर्तमान में केवल 300 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है। जिसका असर प्रदेश भर की बिजली व्यवस्था पर भी देखने को मिल रहा है। दरअसल, लैंको प्रदेश सरकार को बेहद कम दर पर बिजली मुहैया कराती है। जबकि अन्य प्राइवेट उत्पादन कंपनियों के रेट बेहद अधिक हैं। जिनसे वर्तमान में बिजली खरीदी जा रही है। इसका असर अंत में बिजली उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा।

क्यों हुआ कोयला संकट

दरअसल, लैंको के सारे वित्तीय अधिकार बैंकों के कुछ समूह के पास हैं। लैंको प्रबंधन धन संबंधी कोई भी फैसला स्वयं नहीं कर सकता, न ही किसी को धन दे सकता है। इसलिए काफी समय से कोयला कंपनियों को समय से भुगतान नहीं हो पा रहा है। इसका असर उत्पादन पर पड़ रहा है। पिछले तीन महीने में यह पांचवीं बार है, जब कोयले की कमी के कारण लैंको को उत्पादन घटाना पड़ा है।


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