चुनउवा नजदीक त आवै दा, देखा केतना पैतरा बदलन नेताजी
शनिवार का दिन सुबह के करीब सात-साढ़े सात का समय हो रहा था। नगर का सबसे ज्यादा व्यस्त रहने वाला स्वर्ण जयंती चौक अभी ठीक से जगा भी नहीं था तभी अनिल कुमार की दुकान पर जैसे-तैसे बाल संवारते बड़ा सा मुंह खोलकर जम्ताई लेते एक सज्जन पधारे।
शनिवार का दिन, सुबह के करीब सात-साढ़े सात का समय हो रहा था। नगर का सबसे ज्यादा व्यस्त रहने वाला स्वर्ण जयंती चौक अभी ठीक से जगा भी नहीं था तभी अनिल कुमार की दुकान पर जैसे-तैसे बाल संवारते, बड़ा सा मुंह खोलकर जम्हाई लेते एक सज्जन पधारे। अनिल जरा चाय पिलाना यार..। जब तक अनिल उधर से कोई जवाब देता तब तक पीछे से एक सिकुड़े हुए कुर्ते वाले एक नेताजी आए, और बोल पड़े अनिल जरा बढ़ाकर ही बनाना। पहले से बैठे सज्जन के कंधे पर हाथ फेरते हुए..तनी उधर चला भाई। अब क्या दोनों के बीच शुरू हो गई हाल-चाल और चुनावी चकल्लस।
थोड़ी देर में जब अखबार वाले ने अनिल के ठेले पर अखबार रखा तो उसे उठाने के लिए दोनों एक साथ उठे। हालांकि हाथ लगा एक के ही। चुकी चौराहा था, चाय पीने गए थे, समय भी गुजारना था, तो दोनों ने चार-चार पन्ने बांट लिए। एक ने महासमर पेज पढ़कर गठबंधन की बात शुरू की तो दूसरे ने राजनीतिक दलों के सांठ-गांठ की। तब तक करीब आधे घंटे का समय बीत गया, चाय भी हाथ में आ गई और दोनों का साथ देने के लिए चार-छह सज्जन और आ गए। अब इनके बीच जब चुनावी चर्चा शुरू हुई तो पास की दुकान पर खड़े लोग बस मुंह ही देखते रहे। इसमें कोई स्थानीय नेता को टिकट दिलाकर जीत के मुहाने तक लेकर पहुंचता तो कोई सांसद बनने के बाद उससे काम की अपेक्षा भी करने लगता। इसके साथ ही पिछले सांसद के कार्यों, विधायकों की स्थिति आदि पर चर्चा शुरू हुई। एक-एक कर सभी के कार्यों की समीक्षा शुरू हो गई। कोई पानी की समस्या को लेकर अपनी बात रख रहा था तो कोई सड़क पर लेकिन साधो, सभी अपनी बातों को मजबूती से रख रहे थे। इसी में एक ने कहा कि पहले देखा के आवत बा। इसी बीच जब दल बदलने वालों की चर्चा शुरू हुई तो पहले से बैठे सज्जन ने तपाक से कहा, चुनउवा नजदीक त आवै दा, देखा केतना पैतरा बदलन नेताजी लोग। इनकी बात पर सभी ने 90 डिग्री पर गर्दन घुमाते हुए हामी भरी और उठकर शरीर तोड़कर लंबी सांस लेते हुए आगे बढ़ गए।
-एक नागरिक..।