वसीले से मांगी दुआ को अल्लाह करता है कुबूल
पैगंबर के नेक बंदों को वसीला यानी माध्यम बनाकर मांगी गई दुआ को अल्लाहपाक जरूर कबूल करता है। जिस तरह बिना रास्ते के मंजिल और बिना सीढ़ी के छत पर नहीं पहुंचा जा सकता ठीक उसी तरह खुदा तक पहुंचने के लिए अल्लाह के प्यारे रसूल और नबियों-वलियों का जरिया निहायत जरूरी है।
जासं, दुद्धी (सोनभद्र) : पैगंबर के नेक बंदों को वसीला यानी माध्यम बनाकर मांगी गई दुआ को अल्लाहपाक जरूर कबूल करता है। जिस तरह बिना रास्ते के मंजिल और बिना सीढ़ी के छत पर नहीं पहुंचा जा सकता, ठीक उसी तरह खुदा तक पहुंचने के लिए अल्लाह के प्यारे रसूल और नबियों-वलियों का जरिया निहायत जरूरी है। यह बातें मौलाना नजीरुल कादरी ने शबे बारात के मुबारक मौके पर जामा मस्जिद में शनिवार की रात आयोजित महफिले मिलाद में अपनी तकरीर में कही।कहा कि मस्जिद कोई आम जगह नहीं, बल्कि अल्लाह का घर है। इसमें सिर्फ अल्लाह व उसके रसूल और नबियों-वलियों का ही जिक्र होना चाहिए। इसके इतर इसमें कोई दूसरा जिक्र नहीं होना चाहिए। इस मौके पर कारी उस्मान, हाफिज तौहीद, हाजी सैय्यद फैजुल्लाह, रिज्वानुद्दीन, मों. कासिम, पट्टू समेत कई युवाओं ने एक से बढ़कर एक नात पेशकर लोगों को इस्लामी रंग में सराबोर किया। हजरत नसीरे मिल्लत ने शबे बारात का महत्व बताते हुए कहा कि अल्लाह को अपने बंदों का तौबा बहुत पसंद है। आज गुनाहों से माफी मांगने व म़ग़फेरत की रात है। तन्हाई में रो-रोकर परवरदिगार से अपने गुनाहों की माफी, तौबा और बख्शीश की दुआ मांगे, तो अल्लाहपाक जरूर कबूल करेगा। सैकड़ों अकीदतमंदों की मौजूदगी में हजरत ने जब बारगाहे इलाही में रूहानी दुआख्वानी की तो लोगों की आंखें आमीन कहते-कहते नम हो गई। आधी रात तक चले कार्यक्रम के बाद अकीदतमंद लोग कबिस्तान जाकर अपने मरहुमीन की कब्रों पर फातिहा पढ़ी। जो सूर्योदय तक जारी रही। महफिले की सरपरस्ती पेशइमाम हाफिज सईद अनवर व संचालन हाफिज रेजाउल मुस्तफा ने की। इस अवसर पर सदर मु.शमीम अंसारी, गुलाम सरवर, कलीमुल्लाह खान, आदिल खान, ह़फी•ा जहांगीर, मन्नू खान, मेराज अहमद आदि रहे।