तापमान के साथ बढ़ने लगी बिजली की डिमांड
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जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : मौसम में आये बदलाव के साथ ही बिजली की मांग में बढोत्तरी होने लगी है। तापमान में वृद्धि के कारण पीक आवर में बिजली की मांग 17 हजार मेगावाट से ज्यादा हो गई है। फिलहाल तापमान के 37 डिग्री से ज्यादा हो जाने के कारण मांग में वृद्धि बढ़ी है। चालू अप्रैल माह के पहले दिन से ही मांग में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। वहीं शनिवार की शाम से सोमवार की सुबह तक प्रदेश के दक्षिणी सीमावर्ती इलाकों में बारिश की वजह से मांग में आंशिक कमी रही लेकिन दोपहर में पुन: तापमान के बढ़ने से मांग में वृद्धि हो गई। हालांकि मांग के सापेक्ष उपलब्धता बनी रहने के कारण फिलहाल बिजली का संकट नहीं है, लेकिन तापमान के अप्रैल के दूसरे सप्ताह में 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने पर मांग 18 हजार मेगावाट से ज्यादा होने की उम्मीद जताई जा रही है।
गत पीक आवर के दौरान बिजली की अधिकतम मांग 16732 मेगावाट के करीब रही। इससे पहले दो अप्रैल को अधिकतम मांग 17004 मेगावाट, चार अप्रैल को 17290 मेगावाट, पांच अप्रैल को 17074 मेगावाट तथा छह अप्रैल को 17282 मेगावाट रही। सोमवार को उत्पादन निगम की चालू इकाइयों से 4235 मेगावाट उत्पादन जारी था। जिसमें अनपरा परियोजना से 2296 मेगावाट, हरदुआगंज से 548.97 मेगावाट, ओबरा से 460 मेगावाट तथा परीछा 929 मेगावाट उत्पादन हो रहा था। उधर निजी इकाइयों से 5971 मेगावाट उत्पादन हो रहा था।
जल विद्युत उत्पादन हुआ मुश्किल
प्रदेश के जल विद्युत गृहों के उत्पादन में जलाशयों के जलस्तर की कमी की मार पड़नी शुरू हो गई है। मुख्य तौर पर रिहंद जलाशय के 840.9 फीट तक नीचे आ जाने के कारण पिपरी और ओबरा जल विद्युत घरों की इकाइयों से उत्पादन ठप स्थिति में है। पीक आवर में ही इकाइयों से मुख्यालय के आदेश पर उत्पादन कराया जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश का जल विद्युत उत्पादन औसतन मात्र दो मिलियन यूनिट तक ही रह गया है। रविवार को यह घटकर 1.6 मिलियन यूनिट ही रह गया। केवल खारा जल विद्युत घर से ही 48 मेगावाट उत्पादन हो रहा है। रिहंद जलाशय का जलस्तर अब न्यूनतम से मात्र आठ फीट ही ज्यादा रह गया है। अभी मानसून आने में लगभग 70 दिनों से ज्यादा समय शेष रहने के कारण रिहंद जलाशय के स्तर को तापीय परियोजनाओं के लिए संतुलित रखा जा रहा है। माना जाता है कि 835 फिट जलस्तर होने पर जलाशय की गाद भी पानी के साथ आने लगती है जिससे इकाइयों की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है।