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छह साल से जनपद में वनाधिकार कानून ठंडे बस्ते में

जनपद के जंगलों में निवास करने वाले वनवासियों को वन भूमि पाने के लिए अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है। पिछले छह वर्षों के दौरान एक भी व्यक्ति को इस कानून का लाभ नहीं मिला है। विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो जनपद में तीन लाख 7

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 05:50 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 05:50 PM (IST)
छह साल से जनपद में वनाधिकार कानून ठंडे बस्ते में
छह साल से जनपद में वनाधिकार कानून ठंडे बस्ते में

जागरण संवाददता, सोनभद्र : जनपद के जंगलों में निवास करने वाले वनवासियों को वन भूमि पाने के लिए अभी लंबी लड़ाई लड़नी होगी। गत छह वर्षों के दौरान एक भी व्यक्ति को इस कानून का लाभ नहीं मिला है। विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो जनपद में तीन लाख 78 हजार 442 अनुसूचित जनजाति के लोग निवास करते हैं। इनमें सबसे अधिक गोंड़ व दूसरे स्थान पर खरवार समाज के लोग हैं। इसमें गोंड़ जाति की संख्या एक लाख 40 हजार के आसपास है तो वहीं खरवारों की संख्या करीब एक लाख के करीब है।

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वनाधिकार कानून के तहत जनपद के 11 हजार 251 वनवासियों को भूमि आवंटित की गई है जबकि 53 हजार 520 आवेदन अस्वीकृत कर दिये गये हैं। पूर्व जिलाधिकारी पनधारी यादव के समय में जिले में सबसे अधिक वनाधिकार कानून के तहत वनभूमि आवंटित की गयी, इसके बाद एक भी व्यक्ति को इस कानून के तहत वनभूमि आवंटित नहीं की गयी है। यू कहें कि वर्ष 2011-12 के बाद कानून के तहत भूमि पर हक पाने के लिए आवेदन तो आये लेकिन किसी को भी इस पर अधिकार नहीं मिला। निरस्त आवेदनों की पुन: जांच की उठी थी मांग

वनाधिकार कानून के तहत जनपद में निरस्त किये गये करीब 54 हजार आवेदनों की पुन: जांच की मांग की गयी थी। जिस पर तत्कालीन सरकार ने जांच का आदेश दिया था, लेकिन उस जांच में क्या हुआ यह बताने वाला कोई नहीं है। जिले में भारी संख्या में आदिवासी व वनवासी समुदाय के लोग जंगलों में रहते हैं, वनभूमि होने के कारण अक्सर इन्हें वन विभाग द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। वनाधिकार कानून लागू होने के बाद इनकी उम्मीदों को पंख लगा था, लेकिन कानून का पालन करने वाले लोगों की हीलाहवाली के कारण इसका शत-प्रतिशत लाभ इन्हें नहीं मिल सका। 769 सामुदायिक दावे हुए वैध

जिले के तीनों तहसीलों में 769 सामुदायिक दावे पेश किये गये थे। जिसे जिला प्रशासन ने वैध मानते हुए वन भूमि हस्तांतरित कर दिया था। सबसे अधिक दावे दुद्धी तहसील से आये थे। यहां से 513 सामुदायिक दावे पेश किये थे, इसके बाद राब‌र्ट्सगंज तहसील से 256 आवेदन किये गये थे। तत्कालीन जिलाधिकारी ने सभी दावों को वैध मानते हुए 769 सामुदायिक दावेदारों को वनभूमि आवंटित कर दिया था। इसके बाद से आजतक इस कानून के तहत कोई भी भूमि आवंटित नहीं किया गया। इन जनजातियों को मिलता है लाभ

वनाधिकार कानून के तहत जिले के अनुसूचित जनजातियों को वनभूमि का लाभ मिलता है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक जिले में करीब तीन लाख 78 हजार 442 जनजातियों की संख्या रही है। इसमें सर्वाधिक संख्या गोंड़ की है। इसके बाद पठारी, राजगोंड़, खरवार, खेरबार, परहिया, बैगा, पनिका, अगरिया, चेरो, भुईया, भूनिया आदि प्रमुख हैं। अभी नया हूं, समझने में लगेगा समय

अभी मैं जिले में नया हूं। वनाधिकार कानून के तहत वनभूमि आवंटन में क्या समस्या आ रही है, इस पर जल्द ही बैठक कर आगे की रणनीति बनाई जायेगी। जिलाधिकारी से भी वार्ता की जायेगी।

-कृष्णानंद तिवारी, जिला समाज कल्याण अधिकारी।

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तहसीलवार आंकड़ें कुल आवेदन निस्तारित निरस्त

सदर तहसील 27034 7010 2024

दुद्धी तहसील 32371 3664 28707

घोरावल तहसील 5366 577 4779 सामूहिक आवंटन

राब‌र्ट्सगंज - 256 आवेदन, स्वीकृत 256

दुद्धी - 513 आवेदन, स्वीकृत 513


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