आजादी के 72 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं का टोटा
आजादी के 72 वर्षो बाद भी घोरावल तहसील क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लोग आज भी काला पानी जैसा जीवन जीने को विवश हैं। तहसील क्षेत्र के दक्षिण की तरफ स्थित कोरट, रेजुल, शिल्पी व कुड़ारी समेत दर्जनों गांवों में कोलिया घाट मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। आज भी कोलिया घाट मार्ग पहाड़ी चढ़ने को किसी खतरनाक खेल से कम नही समझा जाता। जहां एक ओर सड़क, पानी, बिजली और शिक्षा मूलभूत आवश्यकताएं विकास की कड़ी है। जिसको लेकर सरकार बराबर गंभीरता जताती है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : आजादी के 72 वर्ष बाद भी घोरावल तहसील क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लोग अब भी काला पानी जैसा जीवन जीने को विवश हैं। तहसील क्षेत्र के दक्षिण की तरफ स्थित कोरट, रेजुल, शिल्पी व कुड़ारी समेत दर्जनों गांवों में कोलिया घाट मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। आज भी कोलिया घाट मार्ग पहाड़ी चढ़ने को किसी खतरनाक खेल से कम नहीं समझा जाता। जहां एक ओर सड़क, पानी, बिजली और शिक्षा मूलभूत आवश्यकताएं विकास की कड़ी हैं।
जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी इस मार्ग के विकास में अवरोधक है। आगामी लोकसभा चुनाव में यह क्षेत्र के लिए प्रमुख मुद्दा रहेगा। पूर्व की प्रदेश सरकार ने सोन नदी पर शिल्पी व कुड़ारी मार्ग पर पुल बनाना शुरू किया। निर्माण की गति को देख लग रहा है कि अगले दस वर्ष तक यह पूर्ण नहीं हो पाएगा। इस पुल के निर्माण होने से मध्य प्रदेश का घोरावल तहसील से सीधे जुड़ाव हो जाएगा। इससे व्यापार समेत आवागमन व पर्यटन का विकास होगा साथ ही राजस्व में वृद्धि होगी। तहसील को एमपी से जोड़ता है मार्ग
कोलिया घाट घोरावल तहसील क्षेत्र व मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रमुख व्यापारिक मार्ग है। जहां से मध्यप्रदेश तक के लोग अपने रोजाना जरूरतों के समान खरीदने व अनाज बेचने घोरावल बाजार आते हैं। जिसमें कोलिया घाट सड़क की दुर्गम चढ़ाई चढ़ कर मुख्य सड़क पर पहुंचना किसी जोखिम से कम नही होता है।
विकास में है बाधक
कोलिया घाट मार्ग न बनने के कारण आसपास के गांवों का विकास भी नहीं हो पा रहा है। अति दुरूह क्षेत्र के कोरट, शिल्पी व रिजुल समेत आधा दर्जन ग्राम सभाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। इस क्षेत्र के एक तरफ सोन नदी तो दूसरी तरफ पहाड़ से गुजरने वाले दुर्गम रास्ते हैं। कोलिया घाट मार्ग क्षेत्रवासियों के लिए लाइफ लाइन की तरह है। स्थानीय निवासी अधिवक्ता सचिदानंद चौबे ने बताया कि यहां का विकास कोलियाघाट सड़क के न बन पाने से चिकित्सा, शिक्षा व रोजगार में पिछड़ गया है। वन विभाग बन रहा रोड़ा
लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कोलिया घाट सड़क मार्ग निर्माण में करीब 1700 मीटर वन क्षेत्र भी पड़ता है। वन क्षेत्र में पड़ने के कारण एक साथ इतनी दूरी की सड़क नहीं बन पा रही है। बताया कि वन क्षेत्र में सड़क बनाने का प्रपोजल दिया गया लेकिन इस पर कोई जवाब नहीं मिल सका है। पूर्व जिलाधिकारी अमित कुमार ने भी कई बार प्रयास किया लेकिन बात नहीं बन सकी।