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ऊर्जांचल में 101 किलो प्रति किमी जमी है धूल की परत

जागरण संवाददाता सोनभद्र ऊर्जांचल में प्रदूषण फैलाने के मामले में अभी तक औद्योगिक कंपनियों ।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 05:20 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 05:20 PM (IST)
ऊर्जांचल में 101 किलो प्रति किमी जमी है धूल की परत
ऊर्जांचल में 101 किलो प्रति किमी जमी है धूल की परत

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : ऊर्जांचल में प्रदूषण फैलाने के मामले में अभी तक औद्योगिक कंपनियों के चिमनियों को ही प्रमुख माना जाता रहा है लेकिन सच यह है कि यहां धूल का प्रदूषण भी कम नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से कराई गई जांच में इस बात का पता चला है कि इलाके में एक किलोमीटर की परिधि में 101 किलो ग्राम धूल की परत जमी है। हवा चलने पर वाहनों के साथ यही धूल लोगों के फेफड़े को छलनी कर रहा है। 75 माइक्रान से छोटे कण वाली धूल के बारे में जानकारी मिलते ही प्रशासनिक अमले में हलचल मच गई। धूल पर नियंत्रण के लिए लोक निर्माण विभाग को पानी का छिड़काव कराने व इलाके की कंपनियों पर और सख्ती का निर्देश दिया गया है।

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सर्दी के मौसम में जब तापमान में गिरावट आती है तो धूल कण अधिक ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाते। ऐसी स्थिति में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा बढ़ जाता है। कई बार तो एयर एंडेक्स 300 के पार पहुंच जाता है। इस वर्ष चिकित्सकों ने अनुमान जताया कि अगर प्रदूषण का स्तर बढ़ा तो कोरोना संक्रमण भी बढ़ सकता है क्योंकि कोरोना भी फेफड़े के संक्रमण से जुड़ा होता है। इसलिए इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गत दिनों अनपरा के औड़ी मोड़ से शक्तिनगर तक 18 किमी के बीच 17 स्थानों से धूल का सैंपल लिया। इस सैंपल की जांच की गई तो पता चला कि 75 माइक्रान से छोटे कण की मात्रा एक किलो मीटर में करीब 101 किलोग्राम है। यानी हवा या वाहनों के चलने से धूल उड़ती है तो प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा बढ़ जाएगा। जो फेफड़े के संक्रमण को बढ़ाने में मददगार होगा। जांच रिपोर्ट में पता चला है कि औड़ी मोड़ के पास करीब 250 किलो ग्राम तक धूल की परत जमी है। यानी औसत 101 किलोग्राम का आया है। सड़क निर्माणाधीन है इस लिए लोक निर्माण विभाग को इस मार्ग पर नियमित पानी का छिड़काव करने, धूल कम उड़े इसके लिए बेहतर कार्ययोजना बनाकर कार्य करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही इलाके की औद्योगिक कंपनियों को कहा गया गया है कि कोयले के परिवहन, वाहनों के संचालन में सतर्कता बरती जाए। धूल से मानवजीवन पर गहरा असर

जगह-जगह जमी धूल जब उड़ती है तो पर्यावरण प्रदूषित होता है। साथ ही इस मार्ग पर चलने वालों के सेहत पर भी गहरा असर पड़ता है। सबसे ज्यादा नुकसान अस्थमा व सांस के मरीजों को होता है। जिला अस्पताल के चिकित्सक डा. एसएस पांडेय बताते हैं कि धूल से अस्थमा के मरीज और जिनको एलर्जी है उनकी तो सीधे तौर परेशानी होती है, उनके साथ ही एक सामान्य व्यक्ति भी रोज-रोज धूल का सामना करने पर बीमार पड़ सकता है। धूल मिट्टी की वजह से आंखों में एलर्जी व इन्फेक्शन हो सकता है। ब्रोंकाइटिस या हमेशा सर्दी जुकाम की समस्या हो सकती है। धूल से त्वचा में खुजली होने का भी डर बना रहता है। औड़ी मोड़ से शक्तिनगर के बीच कई स्थानों पर जमी धूल का सैंपल लिया गया था। उसकी जांच में पता चला है कि 101 किलोग्राम प्रति किलोमीटर धूल है। यह 75 माइक्रान से कम है। यानी यह धूल उड़ने पर पर्यावरण के साथ ही मनुष्य के लिए भी काफी खतरनाक है। धूल कम उड़े इसके लिए पीडब्ल्यूडी व क्षेत्र की कंपनियों को जरूरी निर्देश व सुझाव दिया गया है।

- इं. राधेश्याम, क्षेत्रीय अधिकारी- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड


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