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अश्वशाला में तीन घोड़ों की मौत, कई बीमार

सीतापुर: पुलिस अश्वशाला में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। देखरेख व इलाज के अभाव में करीब सा

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 11:55 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 11:55 PM (IST)
अश्वशाला में तीन घोड़ों की मौत, कई बीमार
अश्वशाला में तीन घोड़ों की मौत, कई बीमार

सीतापुर: पुलिस अश्वशाला में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। देखरेख व इलाज के अभाव में करीब सात माह के भीतर तीन बेशकीमती घोड़ों की मौत हो चुकी है। अब कई बीमार चल रहे हैं। यहां के जिम्मेदार इस कदर लापरवाह हैं कि स्वयं घोड़ों की दौड़ भी नहीं कराते। ऐसे में कई घोड़े बेकाम होते जा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि सात माह के भीतर तीन घोड़े बीमारी की जद में आकर मौत के मुंह में समा चुके हैं। इनमें हवा से बातें करने वाला सार्थक, सुडौल डेविड और खूबसूरत घोड़ा बाली शामिल हैं। इनकी मौत के पीछे बीमारी कम, देखरेख का अभाव ज्यादा रहा। इनकी मौत के बाद शमशेर, दीपिका, मदन व बादल भी देखरेख के अभाव में बीमार व बेकाम हो रहे हैं। घोड़ी कविता और गौरी भी अब पूरी तरह फिट नहीं कहीं जा सकतीं। ज्यादातर घोड़े अनफिट होने के कारण इनको विभागीय प्रतियोगिता में भी नहीं भेजा जा पा रहा है। सूत्र बताते हैं कि इन घोड़ों की देखभाल का जिम्मा मुख्य आरक्षी संजय ¨सह, आरक्षी विष्णु तिवारी व संजय दुबे देखते हैं। इन लोगों को ही घोड़ों को दौड़ाने, चलाने, दुल्की चलाने की जिम्मेदारी है। लेकिन यह जिम्मेदारी खुद नहीं निभा रहे, बल्कि घोड़ों की सेवा करने वालों से यह काम लिया जा रहा है। कुछ घोड़े जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते अब सवारी ही नहीं ले रहे हैं। मजदूरों से घास मंगा रहे ग्रास कटर

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विभागीय अफसरों व जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते घोड़ों को घास देने वाले भी मजे मार रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि पुलिस अश्वशाला के तीन सरकारी ग्रास कटर खुद काम नहीं कर रहे, बल्कि मजूदारों को दो सौ रूपये प्रतिदिन दिहाड़ी देकर उनसे घास मंगा लेते हैं। यहां के तीन सरकारी ग्रास कटरों को प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन 40 किलो घास लाना होता है, लेकिन वह लोग मजदूरों से कमा करा कर खुद नहीं आते। ऐसे में घोड़ों को सही घास भी नहीं मिल पाती। कई माह पूर्व बीमारी से घोड़ों की मौत हुई थी। सात घोड़े कमेटी द्वारा निष्प्रयोज्य घोषित कर दिए गए हैं। बाकी सबकुछ ठीक है। घोड़े बीमार होने पर फौरन डाक्टरों को बुला कर इलाज कराया जाता है।

ज्ञानेश्वर तिवारी, डीआइजी पीटीसी


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