सूर्यकुंड तीर्थ में दीपदान के अद्भुत दृश्य देखने को उमड़ी भीड़
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सीतापुर : कस्बे के लिए सोमवार की अनोखी शाम थी। सूर्यकुंड तीर्थ में दीपदान की छटा कल्पनाओं को साकार कर रही थी। तीर्थ में दीपों की रोशनी वाला अद्भुत दृश्य देख हर कोई चकित सा था। इस दीपदान में कई हजार श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और भगवान गौरी-शंकर से कामना की। मौका था, कार्तिक पूर्णिमा मेला महोत्सव (गंगा स्नान पर्व) का।
इससे पहले देर शाम महोत्सव शुभारंभ के बाद भगवान गौरी-शंकर का भव्य श्रृंगार हुआ। फिर ढोल-नगाड़ों, शंख-घंटा घड़ियाल के साथ-साथ बैंड-बाजों की तीव्रतम ध्वनि के बीच महाआरती हुई। इस अलौकिक ²श्य को देखने को हजारों श्रद्धालु मौजूद रहे। इस महोत्सव का आयोजन नगर पंचायत व सामाजिक एवं सांस्कृतिक सेवा समिति द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। उद्घाटन सत्र के संयोजक सुभाष जोशी ने बताया, सेवा समिति की तरफ से 5100 दीपों का दान किया गया है।
पूर्णिमा मेला का ये है इतिहास
हरगांव राजा विराट की नगरी थी। इसका वास्तविक नाम हरिग्राम था। मान्यता है कि, ऋषियों-मुनियों के अनुरोध पर श्रापित राजा हरिश्चंद्र ने अष्टकोणीय सूर्यकुंड तीर्थ का निर्माण कराया था। इसी में स्नानकर श्राप से मुक्त हुए थे। तभी से कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थ पर देव दीपावली मनाई जाती है और मेला लगता है। महोत्सव में होंगे ये कार्यक्रम
12 नवंबर : मथुरा-वृंदावन के कलाकारों द्वारा रासलीला, रात 7.30 बजे से।
22 नवंबर : फूलों की होली व रासलीला समापन।
23 व 24 नवंबर : बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम रात 7 बजे से।
25 नवंबर : कवि सम्मेलन रात 9 बजे से।
26 नवंबर : कुल हिदू मुशायरा रात 9 बजे से।
27 नवंबर : भोजपुरी व अवधी संगीत सम्मेलन रात आठ बजे से।
28 नवंबर : जवाबी कव्वाली रात नौ बजे से।
29 नवंबर : ऑर्केस्ट्रा संगीत रात नौ बजे से।
30 नवंबर : दिल्ली-लखनऊ के कलाकार रात नौ बजे से ऑर्केस्ट्रा संगीत प्रस्तुत करेंगे। बोले श्रद्धालु, अलौकिक मेला है..
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वाकई अद्भुत है कार्तिक मेला। कल्पनाओं से परे है ये मेला। पहली बार आया हूं। भगवान का श्रृंगार, महाआरती और फिर तीर्थ में दीपदान से मन प्रफुल्लित हो गया है।
- रामनरेश दीक्षित, श्रद्धालु-नैमिषारण्य चित्र-11 एसआइटी-44-
कई वर्षों से इस मेले में आ रहे हैं। पहले दिन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और फिर दूसरे दिन महागौरी-शंकर का पूजन के बाद वापस घर लौट जाते हैं।
- लक्ष्मी नारायण मिश्र, श्रद्धालु-गोला