..और जिदगी की 'जंग' जीत गई अरीबा
खैराबाद के भूलनपुर निवासी रेहान के घर में सात साल बाद खुशियां लौटी
अनुपम सिंह, सीतापुर
खैराबाद के भूलनपुर निवासी रेहान के घर में सात साल बाद खुशियां लौटी हैं। जो परिवार पाई-पाई को मोहताज हो, उस घर के मुखिया के सामने बारह लाख का खर्च उठाकर बेटी अरीबा का इलाज कराना मुमकिन नहीं था। मददगार के रूप में छह माह पहले आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) टीम अरीबा के विद्यालय पहुंची। यहीं से उसकी जिदगी बदल गई। दिल में सुराख और वॉल्व के निश्शुल्क ऑपरेशन के बाद अब बेटी बिल्कुल स्वस्थ है।
एक रुपया भी नहीं खर्च हुआ : रेहान
अरीबा के पिता कहते हैं, सात साल पहले उनकी पत्नी के जुड़वा बेटियां हुई, लेकिन अरीबा बचपन से इस बीमारी से जूझ रही थी। टीम की वजह से एक रुपया नहीं लगा और पूरा इलाज हो गया।
समस्या से मिली आजादी
दिल में सुराख और वॉल्व में खराबी से बच्ची शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी थी। जरा दूर चलने पर हांफने लगती थी। काफी दुबली भी हो गई थी। डॉक्टरों का कहना है कि अब इससे मुक्ति मिल जाएगी। वह जल्द ही अन्य बच्चों की तरह तंदरुस्त दिखेगी। बीमारी की जंग लड़ रही बेटी का इलाज कराने के लिए मां-बाप ने कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन मोटे खर्च से परिवार चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।
नई किरण बनकर पहुंची थी टीम
छह माह पहले खैराबाद आरबीएसके की टीम-ए माखूपुर विद्यालय पहुंची, जहां अरीबा की बीमारी के बारे में पता चला। जिला अस्पताल से जांच हुई। स्कूल का सर्टिफिकेट, सीएमओ दफ्तर से परमीशन लेकर अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में 25 सितंबर को ऑपरेशन हुआ। सात अक्टूबर को बच्ची घर आ गई। इसमें डॉ. विजय सिंह, डॉ. शिवानी टंडन, ऑप्टोमैट्रिस्ट रिचा गुप्ता, जया तिवारी की अहम भूमिका रही। डॉक्टर विजय कहते हैं कि प्राइवेट इलाज कराने पर 12 लाख का खर्च आता।