पर्यावरण के 'सारथी' ला रहे हरियाली
सीतापुर प्रकृति का न करें हरण आओ बचाएं पर्यावरण.. जी हां इसी सोच के साथ शहर के चौबे टोला निवासी रंजना श्रीवास्तव ने पर्यावरण को बचाने के लिए चार वर्ष पहले 2015 में सीतापुर प्रगति संस्थान के नाम से संस्था की शुरुआत की थी लेकिन धीरे-धीरे संस्था का दायरा बढ़ता गया।
सीतापुर : प्रकृति का न करें हरण, आओ बचाएं पर्यावरण.. जी हां, इसी सोच के साथ शहर के चौबे टोला निवासी रंजना श्रीवास्तव ने पर्यावरण को बचाने के लिए चार वर्ष पहले 2015 में 'सीतापुर प्रगति संस्थान' के नाम से संस्था की शुरुआत की थी, लेकिन धीरे-धीरे संस्था का दायरा बढ़ता गया। पर्यावरण को बचाने के लिए रंजना हर वर्ष सैकड़ों पेड़ लगाती हैं। खासकर इस पुण्य के काम में भागीदारी निभाने के लिए बारिश के मौसम का वह इंतजार करती हैं। चार वर्षों से लगातार पौधे लगाए जा रहे हैं। इस वर्ष भी 1700 सौ पौधे लगाकर उन्होंने सराहनीय भूमिका निभाई है। यही नहीं, पौधे लगाने के बाद उनकी सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड भी लगाया जाता है, जिससे वे हमेशा हरे-भरे बने रहें।
संस्था की अध्यक्ष रंजना श्रीवास्तव कहती हैं कि शुरुआती दौर में संस्था को बढ़ाने के लिए कई दुश्वारियां भी झेलनी पड़ीं, लेकिन वक्त के साथ सबकुछ संभल गया। आज संस्था में सनी निषाद, फैजान अहमद, रियाज अहमद, श्याम, महेंद्र समेत बीस वालंटियर जुड़ चुके हैं, जिनकी मदद से पर्यावरण को बचाने की पहल को आगे बढ़ाया जाता है। वे पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन प्रदूषण को मानती हैं। इसके लिए संस्था के नाम से ही प्रदूषण जांच केंद्र खुलवा रखा है, जिसमें निश्शुल्क वाहनों की जांच कराकर वे पर्यावरण की सारथी बन रही हैं। इस बार उन्होंने एक नया फार्मूला तैयार किया है। इस प्लान में उन्होंने गेस्ट हाउस संचालकों से संपर्क साधना अभी से शुरू कर दिया है। संचालकों से उन्होंने अपील की है कि सहालग या ऐसे ही अगर उनके गेस्ट हाउस में कोई कार्यक्रम, शादी समारोह, मुंडन संस्कार होते हैं और जो भी कूड़ा-कचरा होता है तो उसे जलाकर प्रदूषण न फैलाएं बल्कि उनकी संस्था को सूचना दें। जानकारी पाकर उनके वालंटियर मौके पर पहुंचेंगे और कूड़े को एकत्रित कर कबाड़ी को देंगे। इसके बाद ये कूड़ा रिसाइकिल (गला) दिया जाएगा। इस नई सोच के पीछे रंजना की मंशा है कि ऐसा करने से गंदगी नहीं होगी और प्रदूषण भी काफी कम होगा। वह कहती हैं कि, पेड़-पौधे इंसान से लेकर पशु-पक्षियों की जिदगी के अहम हिस्से हैं, अगर ये न हों तो सांस लेना भी दूभर हो जाएगा। पर्यावरण सरंक्षण के लिए उनकी ऐसी कोशिशें आगे भी जारी रहेंगी।