इमदाद की कौन कहे यहां को रोटी के लाले
रायबरेली : क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित गांवों में पानी कम हो गया है, लोग घरों को लौट आए हैं
रायबरेली : क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित गांवों में पानी कम हो गया है, लोग घरों को लौट आए हैं लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए रोटी के लाले हैं। जब पानी घरों में घुसा तो गृहस्थी का सामान वैसे ही छोड़ दिया है लेकिन जब लौट कर आए तो सारी गृहस्थी उजड़ी मिली है। प्रशासन ने अभी तक सहायता के लिए एक कदम आगे नहीं बढ़ाया है वहीं रोटी के साथ बीमारी भी इंसानी जान पर आफत बरपाने को तैयार है। गांव की हर आंख इस उम्मीद में है कि शायद प्रशासन उन पर रहम कर दे।
उल्लेखनीय है कि सरेनी क्षेत्र की ग्राम पंचायत भक्ता खेड़ा के सात पुरवा को अगस्त में आई बाढ़ से तबाह कर दिया। 10 हजार की आबादी प्रभावित हुई थी। लोग घरों के चारों ओर पानी भरते ही ऊंचे स्थानों पर शरण लेने के लिये अपनी आधी-अधूरी गृहस्थी समेटकर चले गए थे। पानी घटते ही अब सब फिर से अपने बसेरों में पहुंच गए हैं लेकिन हालात बेहद तकलीफदेय हैं। घर के बाहर कीचड़ फैला हुआ है तो घर के भीतर का नजारा ऐसा है कि लोग खुद अपने घर को नहीं पहचान पा रहे हैं। गृहस्थी का सारा सामान सड़ गया है। दीवारों पर काई लग गयी है तो फर्श पर पानी के धब्बे पड़ गए हैं। कच्ची जगहों पर हरा पानी जमा है तो संक्रामक रोग फैलाने के लिए तैयार है। भक्ता खेडा, पुरे सुकरू, भुल्ली का पुरवा, पूरे रामप्रसाद, बंशी का पुरवा, अहिरन का पुरवा व पूरे पुरबिहन में रहने वाले लोग खासे मेहनती हैं और दुग्ध व्यवसाय, बान व्यवसाय के अलावा लहसुन, प्याज, धनिया, मिर्चा, परवल व अन्य सब्जिया ं के अलावा तिल्ली व धान की फसल बेचकर जीवन यापन करते हैं। हाय यह बाढ़ जिसने इस साल इनकी सभी फसलों को भी नष्ट कर दिया है। किसी घर में अनाज के नाम पर एक दाना नहीं है। लोग आसपास के गांव में मांग कर अनाज जुटा रहे हैं।
जानवरों के चारे की समस्या
जानवरों के लिये बोया गया चारा धूप निकलने के बाद जहरीला हो चुका है। पशु पालकों के पास चारा तक नहीं बचा है। ऐसे में उनकी निगाह मदद को खोज रही हैं। गांवों में न तो दवा का छिड़काव किया गया और न ही पशुओं को टीके लगाये गये है।
इनका दर्द न जाने कोई
रामस्वरूप केवट व रामबाबू केवट भक्ता खेड़ा में रहते हैं। ये दोनों हर साल सब्जियां उगाकर सरेनी, भोजपुर, रानीखेड़ा व भूपगंज आदि बाजार में बेचते रहे हैं लेकिन बाढ़ की चपेट में आने से इनकी फसल पूरी तरह नष्ट हो गई है जिससे इस समय खाने के लाले हैं। क्षतिग्रस्त फसल का मुआवजा भी नहीं मिला है। हीरालाल केवट, सूरजबली केवट व रामनरेश यादव ने बताया है कि वे सभी दूध का व्यवसाय करते हैं। हर एक परिवार के पास दर्जनों दुधारू पशु हैं इनके खाने के लिये बोया गया चारा नष्ट हो गया है। जो खेतों में खड़ा है, वह भी धूप में जहरीला हो चुका है जिसे जानवार खाते ही बीमार हो जाते हैं। इन पशु पालकों का कहना है कि सरेनी स्थित पशु चिकित्सालय उनके यहां से लगभग 20 किमी दूर है। अस्पताल से अभी तक गांवों मे कोई भी टीकाकरण करने नहीं आया। जानवर बीमार होकर मरने लगे हैं। अब वे इन्हें चराने के लिये 3 किमी निसगर गांव ले जाने को मजबूर हैं। गांव के शिवकुमार, रामनाथ, रज्जन, कन्धई, रामकरन, अमरनाथ आदि किसानों का कहना है कि उनकी सैकडों बीघे फसल जलमग्न हो जाने से पूरी तरह नष्ट हो गयी है। लाखों रुपयों की क्षति हुई है। आज सभी परिवार दाने-दाने को मोहताज हैं किन्तु न तो किसी जनप्रतिनिधि या नेता ने उनकी कोई अदद की और न ही शासन या प्रशासन ही उनकी कोई सुधि ले रहा है।
क्या कहते अधिकारी
उपजिलाधिकारी सुरेश कुमार सोनी का कहना है कि हल्का लेखपाल से प्रभावित परिवारों की सूची तैयार करायी जा रही है। पीडितों को मुआवजा दिलाने का प्रयास भी किया जा रहा है।