कोई बेच रहा सब्जियां तो कोई लगा रहा फेरी
लॉकडाउन ने सच्चाई से कराया रूबरू। बाहर से लौटे प्रवासियों ने पैसे कमाने को पकड़ लिया काम धंधा। ठेले पर सब्जियां लेकर गांव-गांव बेचने जाते हैं।
सीतापुर: महसुई गांव के पंकज कानपुर में कई वर्ष से एक कागज फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हो गया तो घर चले आए। इनके पिता कमलेश बाजारों में सब्जी बेंचने का काम करते थे। पंकज ने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया। ठेले पर सब्जियां लेकर गांव-गांव बेचने जाते हैं। पंकज ने बताया कि परिवार के अधिकांश लोग सब्जी का ही व्यवसाय करते हैं। लॉकडाउन ने काम छीन लिया तो कुछ न कुछ तो करना ही था। इसलिए पुश्तैनी कारोबार ही शुरू कर दिया है। पंकज ने कहा कि लॉकडाउन ने सच्चाई से रूबरू करा दिया है। अब तय कर लिया है कि गांव में ही रहकर सब्जी का काम करेंगे। असुवामऊ में निवासी सरोज पंजाब के लुधियाना में एक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन में बड़ी दिक्कतें उठाकर घर पहुंचे। बताया पैसे खत्म हो गए थे, फैक्ट्री वाले ने सहारा नहीं दिया। लुधियाना से दिल्ली तक पैदल आए। यहां नोएडा में मुख्यमंत्री की भेजी बसें मिलीं जो हम लोगों को लेकर आई। अन्यथा घर तक आना सपना हो गया था। सरकार ने बहुत मदद की, घर तक पहुंचाया और खाना पानी भी दिया। स्वास्थ्य परीक्षण कराकर क्वारंटाइन में रहे, राशन किट मिली। अब मनरेगा से काम भी मिल गया है। गांव में ही रहकर काम करेंगे। गांवों के आगे शहरों की चकाचौंध फीकी लगती है। सरकार को धन्यवाद
असुवामऊ के अजयपाल व सर्वेश कुमार दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन के बाद घर आए। यहां क्वारंटाइन में रहने के बाद काम की तलाश शुरू की। तभी सरकार ने मनरेगा में काम देने का निर्देश दिया। प्रधान के पास गए तो जॉब कार्ड बन गया और मनरेगा से काम कर रहे हैं। अजयपाल ने कहा कि सरकार ने बड़ी मदद की, अन्यथा ऐसे समय कौन काम व पैसे देता। गांव में जितने भी प्रवासी आए उनको क्वारंटाइन कराया। सभी को राशन वितरित किया। मनरेगा से सभी को प्राथमिकता से काम भी दिया गया है। अन्य कार्य सृजित कर लाभान्वित कराएंगे।
ओमवती अवस्थी, प्रधान असुवामऊ