'महबूब' की मेहनत से संवर रही बुनकरों की किस्मत
500 से अधिक बुनकरों को मिल रहा है रोजगार। कारखाने में काम कर रहे हैं 30 से 40 बुनकर।
सीतापुर : करीब पांच वर्ष पहले छोटी शुरुआत करने वाले महबूब, अब 500 से अधिक बुनकरों को रोजगार दे रहे हैं। दो महीने बाद 100 और बुनकर महबूब के कारखाने में काम पा जाएंगे। जिसकी रूपरेखा तय हो चुकी है। इस काम में एक जिला एक उत्पाद योजना उनका सहारा बनेगी। महबूब, बिसवां कस्बे में दरी कारखाने का संचालन कर रहे हैं। लॉकडाउन से पहले कारखाने में 60 से 70 बुनकर काम करते थे।
अनलॉक प्रथम में रियायत मिलने के बाद उनके कारखाने में 30 से 40 कारीगर काम कर रहे हैं। इसके अलावा आसपास गांवों के करीब 400 बुनकर उनके लिए काम करते हैं। ये बुनकरों को कच्चा माल देते है और दरी लेकर एक्सपोर्ट करते हैं। बनारस, भदोही, पानीपत, दिल्ली और मुंबई के एक्सपोर्टर बिसवां में बनी दरी को अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, इंडोनेशिया आदि देशों में पहुंचा देते हैं।
15 गांवों के बुनकर पा रहे है रोजगार
बिसवां के आसपास स्थित करीब 15 गांवों के बुनकर महबूब से जुड़े हुए हैं। चौकी, सकरापुर, बन्नी खरेला, टेवला, शंकरपुर, महराजनगर आदि गांवों के बुनकर अपने घरों में दरी तैयार करते हैं और उसे महबूब को देते हैं। इसके अलावा आसपास गांवों के कई बुनकर उनके कारखाने में भी काम करते हैं। काम के दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव के सभी उपायों पर अमल भी किया जाता है।
एक महीने बाद, मिलेगा 100 अन्य बुनकरों को रोजगार
महबूब ने एक जिला-एक उत्पाद योजना का लाभ लेकर एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम किया है। ये प्रोजेक्ट एक महीने बाद शुरू हो जाएगा। काम शुरू होते ही करीब 100 अन्य बुनकरों को रोजगार मिल जाएगा। गांवों के बुनकर भी इस काम से जुड़ेंगे।
घर भेजते हैं कच्चा माल, खरीदते है दरी
लॉकडाउन के बाद महबूब ने गांवों के बुनकरों को दिया जाने वाला कच्चा माल उनके घर पहुंचाना शुरू कर दिया है। दरी तैयार होने पर, उसे भी अपनी गाड़ी से मंगवा लेते हैं। महबूब कहते हैं कि, कच्चा माल सूरत, कोलकाता, भदोही, पानीपत, अहमदाबाद आदि जगहों से मंगाया जाता है। बाद में दरी को एक्सपोर्टर के पास पहुंचा देते हैं। जहां से दूसरे देशों में बेची जाती है।