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अनदेखी ने चुरा ली ज्योति शाहआलमपुर की 'दिव्य ज्योति'

चित्र-16 एसआइटी-01- नंबर गेम 34.50 हेक्टेयर में है झील प्राकृतिक धरोहर से खिलवाड़ मनमोहक झील का बिगाड़ दिया सौंदर्य

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 10:46 PM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 06:10 AM (IST)
अनदेखी ने चुरा ली ज्योति शाहआलमपुर की 'दिव्य ज्योति'
अनदेखी ने चुरा ली ज्योति शाहआलमपुर की 'दिव्य ज्योति'

सिधौली (सीतापुर) : बुजुर्ग बताते हैं कि 15-20 बीस साल पहले ज्योति शाहआलमपुर गांव के मनमोहक ²श्य को देखने के लिए राजधानी से लोग आते थे। ज्योति शाहआलमपुर गांव के उत्तर में पूरब-पश्चिम दिशा में करीब डेढ़ किमी लंबी इस झील में उगे कमल के फूलों और पानी पर पड़ने वाली उगते सूर्य की सतरंगी किरणें कुछ ऐसा ²श्य उकेरती थीं, कि आकर्षण हर किसी का मन मोह लेता था। पर अब ये सब गुजरे जमाने की बात हो गई है। पिछले 10 वर्षों से अब तक इस झील का स्वरूप बहुत कुछ बदल चुका है। इसीलिए अब यहां मेहमान पक्षी भी बहुत कम आते हैं। झील में मछली पालन से दिन-रात नावें चलती रहती हैं। इससे पक्षियों के ठहराव में बाधा होती है। इस झील में गर्मियों में भी सौ-डेढ़ सौ बीघे में पानी रहता है। झील के उत्तर में किनारे कब्जे हैं।

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झील की भौगोलिक स्थित

लखनऊ-दिल्ली हाईवे से कमलापुर-मास्टरबाग मार्ग के बीच में वैकुंठपुर चौराहा है। इस चौराहे से बाए तरफ चिरैयापुरवा संपर्क मार्ग पर डेढ़ किमी दूरी पर ज्योति शाहआलमपुर गांव है। हाईवे से ज्योति शाहआलमपुर की दूरी पांच किमी है। झील के उत्तर में ज्योति शाहआलमपुर, पश्चिम-उत्तर कोने पर चिरैया पुरवा गांव है। झील से आधा किमी दूर उत्तर में नसीरपुर गांव है। झील का पट्टा करना ही गलत

ज्योति शाहआलमपुर के प्रधान प्रतिनिधि हंसराम यादव के मुताबिक, झील में 10-12 साल से मछली पालन हो रहा है। पट्टा बैकुंठपुर के मोटल्ल उर्फ श्यामलाल के नाम था, इनकी मृत्यु के बाद बेटे राजू के नाम है। लेकिन मछली पालन अन्य लोग कर रहे हैं। झील का पट्टा ही नहीं किया जाना चाहिए था। पट्टा होने के बाद से झील पर परिदों को आवागमन कम हो गया है। वैसे हम चाहते हैं कि इस झील का सुंदरीकरण हो, ये प्राकृतिक धरोहर है। इसे सहजना आसपास गांव के सभी लोगों की है। वर्षाकाल में लोग झील में सिघाड़ा की फसल डालते हैं।

पिछले साल मुक्त कराए थे कब्जे

क्षेत्रीय लेखपाल संतोष सिंह ने बताया कि, झील के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लोगों ने फसलें बोई थीं। इन फसलों की पिछले साल नीलामी कराकर कब्जा मुक्त कराया गया था। उन्होंने कहा, ये सही है कि झील में मत्स्य पालन व नावें चलने से पक्षियों के ठहराव में बाधा होती है। प्राकृतिक सुंदरता भी प्रभावित होती है।


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