चौपाल में दर्द के साथ छलके आंसू
1939 में स्थापित हुई थी फैक्ट्री। 13 करोड़ रुपये मासिक था टर्न ओवर। 6.50 लाख रुपये हर महीने निकलती थी पगार। 437 कर्मियों का फैक्ट्री पर बकाया है। 30 करोड़ रुपये कर्मियों के तनख्वाह के बाकी हैं। 175 कर्मचारी बकाया मांगते-मांगते स्वर्ग सिधार गए। 2000 कर्मी फैक्ट्री में करते थे काम।
सीतापुर : स्थान-एनएच-24 सीतापुर शहर की प्लाईवुड फैक्ट्री। मौका था, चुनावी चौपाल का। दैनिक जागरण की टीम ने चौपाल में शहर की प्लाईवुड फैक्ट्री का मुद्दा उठाया तो मृतक कर्मचारियों की विधवा महिलाएं दर्द बयां कर फूट-फूट कर रोने लगीं। इनकी दीन-दशा देखी नहीं जा रही थी। साथ में मौजूद अन्य कर्मियों ने कहा, उन्हें मलाल है कि उनका दर्द कभी चुनावी मुद्दा नहीं बना। लखनऊ-दिल्ली नेशनल हाईवे पर हुसैनगंज मुहल्ले में वर्ष 1939 में 150 बीघे में स्थापित 'प्लाईवुड प्रोडक्ट्स सीतापुर' 2001 से बंद है। फैक्ट्री वीरान है, बंदरों-कबूतरों का बेसरा है। एक दौर था जब हर महीने इसी फैक्ट्री से 6.50 लाख रुपये की सैलरी निकलती थी। दो हजार से अधिक कर्मियों को काम मिला था। बताते हैं, वर्ष 1962 में चाइना वार में इस फैक्ट्री का देश की फौज के लिए बड़ा योगदान रहा है। इसी फैक्ट्री ने भारतीय फौज को प्लाई के बने पुतले उपलब्ध कराए थे। संचालकों के बीच आपसी घपलेबाजी में फैक्ट्री बंद हो गई, हजारों हाथों से काम छिन गया और बकाया 30 करोड़ रुपये (मूलधन) मेहनताना आज तक नहीं मिला है। ये पैसा कुल 437 कर्मियों का है, इनमें से 175 कर्मी बकाया मांगते-मांगते स्वर्ग सिधार गए हैं। पीएमओ तक पहुंचे..
प्लाईवुड फैक्ट्री के मुद्दे को लेकर हम 2015 में दिल्ली गए, वहां पीएमओ में ज्ञापन दिया था तो शत्रु संपत्ति के संबंध में जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी गई पर हुआ कुछ नहीं। इसी के साथ मुख्यमंत्री व शासन को दर्जनों पत्र लिखे, राजनीतिक दलों को भी पत्र लिखे। फैक्ट्री में हम कॉमर्शियल दफ्तर में थे उस वक्त हमारी सैलरी 3500 थी। अन्य कर्मियों की तरह हमारा भी 7 लाख रुपये मेहनताना बाकी है।
- आर्य बंधु आर्य, पैरोकार भूखों मर रहे हैं..
फैक्ट्री में फिटर की नौकरी के दौरान ही 20 वर्ष पहले 45 साल की आयु में हमारे पति रामकृष्ण मिश्र की मृत्यु हुई थी। 1300 रुपये तनख्वाह पाते थे। दो बेटे हैं बड़ा बेटा हम से दूर रहता है। गरीबी इतनी कि भूखों मर रहे हैं। पति का फैक्ट्री पर करीब 6 लाख रुपये बतौर तनख्वाह के बाकी हैं।
- रेशम मिश्रा, आवास विकास कमाई हड़प गए फैक्ट्री संचालक..
सात साल पहले हमारे पति इकबाल की 70 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई। इसी फैक्ट्री में काम करते वक्त उनके हाथ का अंगूठा कट गया था। पति की कमाई को फैक्ट्री संचालक हड़प गए हैं। काश कहीं वो कमाई मिल जाती तो बुढ़ापे में रोटी की व्यवस्था हो जाती।
- जन्नतुन, मलुही सरांय मुद्दा बने तो बात है..
एशिया प्रसिद्ध प्लाईवुड फैक्ट्री बंद होने से सिर्फ लोग बेरोजगार ही नहीं हुए, बल्कि जिले के विकास की रफ्तार पर बड़ा असर पड़ा है। फिर भी जन प्रतिनिधियों ने इसे कभी मुद्दा नहीं बनाया और न ही जनहित में सदन में कभी प्लाईवुड फैक्ट्री का मुद्दा उठाया।
नाजिमी, बेवा इंतजार अली-रहिमाबाद जन प्रतिनिधि करें कोशिश..
फैक्ट्री का महीने में 12-13 करोड़ रुपये का टर्न ओवर था। फैक्टी बंद हुए 18 साल हो गए हैं आज भी इसमें बेशकीमती बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हैं। जन प्रतिनिधि चाहें तो एक बार ये फैक्ट्री फिर से जीवित हो सकती है और कर्मियों का बकाया मिल सकता है।
- मुन्नी देवी, ककरहिया जो समस्या समझे उसी को वोट..
कई चुनाव में हम वोट करते आए हैं पर, इस बार निर्णय लिया है कि जो उम्मीदवार हमारी समस्या समझे और पति जाहिद अली की बकाया पगार दिलाने का वादा करेगा। हमारा वोट उसी को रहेगा। वोट हम जरूर करेंगे, ये हमारा अधिकार है।
- बदरुन्निशां, रहिमाबाद