घर तो आ गए, अब काम की तलाश
प्रवासी श्रमिक सीमेंट तो कोई साबुन फैक्ट्री बंद होने से घर लौटा अब गांव में काम की तलाश करने का मजबूर हैं।
सीतापुर : भयापुरवा निवासी राममिलन हरियाणा में एक सीमेंट प्लांट में काम करते थे। लॉकडाउन में वह बेरोजगार हो गए। गांव तो आ गए यहां कोई पूछ नहीं रहा। बेरोजगार होकर अब काम की तलाश में हैं। मनरेगा से भी काम नहीं मिला है। सुशील कुमार गाजियाबाद की एक ब्रेड फैक्ट्री में काम करते थे। 12 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता था। लॉकडाउन में जैसे तैसे घर पहुंचे। यहां होम क्वारंटान में रहने के बाद भी राशन किट आज तक नहीं मिली। जबकि एक माह आए हो चुका है। सोनू मुंबई में पानी पूरी बेचते थे।
लॉकडाउन के समय मकान मालिक ने कमरा खाली करा लिया। पैसे की व्यवस्था कर किसी तरह घर आ गए। यहां अभी तक मनरेगा से काम नहीं मिला है। दिलीप कुमार उत्तराखंड के भगवानपुर में एक साबुन कंपनी में काम करते थे। वहां 11500 रुपये मासिक कमा लेते थे। लॉकडाउन में काम बंद होने के बाद घर चले आए। यहां दिक्कतों के बीच रह रहे हैं। अभी तक राशन किट नहीं मिली। प्रधान के पास गए तो कहा किट आएगी तब मिलेगी। मनरेगा से काम भी नहीं मिला है। ऐसे में परिवार का खर्च चलाने के लिए रोजगार की तलाश है। सोनू कश्यप लखनऊ में ऑटो चलाते थे। रोज 800 रुपये कमा लेते थे। अब गांव में रह रहे हैं, काम भी नहीं मिल रहा है। राशन किट व खाते में धनराशि का भी अता पता नहीं है। प्रधान से कहा है, केवल आश्वासन मिला है।
लेखपाल को 121 प्रवासी श्रमिकों की सूची सौंपी है। कई बार याद दिला चुके हैं। लेखपाल कहते हैं कि तहसील से मिलेगी तब वितरण करेंगे। मनरेगा में जिन लोगों ने काम के लिए आवेदन किया है, उनको काम दिलाने के लिए प्रयासरत हैं।
नशीमुन, प्रधान सरैंया भटपुरवा