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ढोल-मजीरे की ताल पर झूमा रामादल, शंखनाद से मड़रूवा निहाल

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By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Mar 2020 11:07 PM (IST)Updated: Mon, 02 Mar 2020 06:11 AM (IST)
ढोल-मजीरे की ताल पर झूमा रामादल, शंखनाद से मड़रूवा निहाल
ढोल-मजीरे की ताल पर झूमा रामादल, शंखनाद से मड़रूवा निहाल

संदना (सीतापुर) : चौरासी कोसी परिक्रमा के रामादल में शामिल परिक्रमार्थियों का जत्था रविवार की भोर देवगवां से सातवें पड़ाव मड़रूवा पहुंच गया है। रास्ते में जय श्रीराम, जय सियाराम के गगनभेदी जयकारे लगाते परिक्रमार्थियों के कारण पूरा वातावरण ईश्वर की भक्ति से गुंजायमान था। कोई शंख बजा रहा था तो कोई ढोल-मजीरे की ताल पर झूम-झूमकर प्रभु की भक्ति में रमा दिखा। इस ²श्य को देखने के लिए मार्ग किनारे आसपास के गांव वालों की भीड़ थी। लोग परिक्रमार्थियों के स्वागत में पलक-पावड़े बिछाए नजर आए। परिक्रमार्थियों पर कोई पुष्प वर्षा कर रहा था तो कोई चावल के अक्षत छोड़ रहा था। वहीं, मड़रूवा के राम तालाब पर स्नान के लिए परिक्रमार्थियों में जल्दबाजी थी। स्नान के साथ ही परिक्रमार्थियों भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य दिया और शंख बजाकर भगवान सूर्य का स्वागत किया। इस परिक्रमा में उप्र के विभिन्न जिलों के साथ ही राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रांतों के साथ ही पड़ोसी देश नेपाल के शामिल थे। भगवान सूर्य की आराधना के बाद परिक्रमार्थियों ने राम-जानकी मंदिर, लक्कड़ बाबा मंदिर में देवी-देवताओं के दर्शन कर डेरा डाला है। परिक्रमा स्थल पर कई श्रद्धालुओं ने भंडारा किया है।

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जाति-धर्म, भाषा से ऊपर उठकर है परिक्रमा

इस परिक्रमा से मनुष्य को परमतत्व की प्राप्ति होती है। सभी कष्ट, श्राप और पापों से मानव मुक्त हो जाता है। ये परिक्रमा वास्तव में जीवन को धन्य करने वाली है। इससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। परिक्रमार्थियों में जाति-धर्म, भाषा का कोई भेदभाव नहीं रहता है। ये परिक्रमा सामाजिक सछ्वाव को बढ़ावा देने वाली है। मनुष्य सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है।

इन लोगों ने दिया भंडारा

मध्य प्रदेश के भिड जिले के सुनील चौधरी तीन बसों से 150 परिक्रमार्थियों को लेकर आए हैं। ये सभी आपसी सहयोग से हर रोज प्रत्येक पड़ाव पर भंडारा भी कर रहे हैं। इसमें ब्रेड पकौड़ा, आलू बड़ा, मिर्च व पालक की पकौड़ी, दही बड़ा, माल पुआ, खीर, पूड़ी-सब्जी आदि पकवान शामिल हैं। बताया, भंडारा तैयार करने के लिए वह अपने साथ भिड से ही 10 कारीगर भी लाए हैं। ये लोग सभी पड़ाव स्थलों पर भंडारा कर रहे हैं। सुनील चौधरी ने बताया कि, भिड से छह क्विटल आटा, दो क्विटल चावल और अरहर, मूंग, उड़द, चना की दाल लाए थे। इसके बाद बेनीगंज में दो क्विटल आटा, तीन कट्टा आलू खरीदे हैं। शनिवार को मिश्रिख से सब्जी लाए थे। इसी तरह भिड के भगत सिंह कुशवाहा भी अपने साथ एक सैकड़ा से अधिक परिक्रमार्थियों को लेकर आए हैं और रोज भंडारा कर रहे हैं। रविवार को परिक्रमा मड़रूवा पड़ाव पर पहुंची तो गांव के लोगों ने भी दो स्थलों पर भंडारा कराया है।


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