18वीं सदी के दंश से उबर नहीं पा रहा गांव
मिठवल ब्लाक के ग्राम पंचायत बनकटा के टोला किशुन पुरवा आज भी 18वीं सदी के दंश से उबर नही पा रहा है। विकास की आपाधापी के दौर में भी राप्ती नदी के तट पर दूर-दराज में स्थित यह छोटा सा पुरवा अब भी विकास की वाट जोह रहा है।
सिद्धार्थनगर : मिठवल ब्लाक के ग्राम पंचायत बनकटा के टोला किशुन पुरवा आज भी 18वीं सदी के दंश से उबर नही पा रहा है। विकास की आपाधापी के दौर में भी राप्ती नदी के तट पर दूर-दराज में स्थित यह छोटा सा पुरवा अब भी विकास की वाट जोह रहा है। आलम यह है कि बरसात के मौसम में आज भी लोग रोजमर्रा की जरूरत को पूरा करने के लिए लकड़ी की नाव में बैठकर पास के बाजारों में आते जाते हैं। यहां के निवासियों का कहना है तमाम बार छोटे बड़े सभी जनप्रतिनिधियों से कहने के बावजूद हमारी सुनने वाला कोई नहीं है।
गांव की तस्वीर कुछ यूं है। राप्ती नदी व पथरा ताल के मध्य बने तटबंध से उत्तर की ओर एक पगडंडी राह निकलती है। जिस पर कदम रखते खड़ंजा तो दिखता है पर कुछ ही कदम चलने के बाद खत्म हो जाता है। फिर कच्ची पगडंडी राह गांव की तरफ ले जाने लगती है, जो गांव के प्राथमिक विद्यालय पर पहुंचा देती है। प्राथमिक विद्यालय का गेट टूट कर जमीन पर पड़ा है। और अंदर जाने पर शौचालय गंदगी से पटा है, रसोईघर बिना ताला के खाली पड़ा है, दीवारों में दरारें आ गई है। विद्यालय के बरामदे का फर्श टूट गया है। दिन छुट्टी का था, बच्चे तो नहीं दिखे पर बाउंड्री के अंदर एक विशाल गड्ढा जरूर दिखा, जिस में बरसात होने पर पानी भर जाएगा जो बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है। पूरे विद्यालय परिसर में किसी प्रकार का नल नहीं लगा है। बच्चे पानी कहां पीते होंगे! शौचालय हेतु पानी कहां से आता होगा! इसका जवाब किसी के पास नहीं है। विद्यालय से निकलकर आगे बढ़ने पर गांव में बिजली के खंभे तो देखे गए पर उस पर लगे हाईमास्ट टूटे-फूटे दिखे। 35 घर के पुरवे में एक टोला अनुसूचित जाति के लोगों का भी है। जिसमें इंडिया मार्क हैंडपंप अभी तक नहीं लग सका है। गांव में पिछले पंचवर्षीय योजना में आधा दर्जन सरकारी शौचालय बने थे पर अब वह वजूद में नहीं है। इस सत्र में अभी तक किसी शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है जबकि गांव बाढ़ प्रभावित है। गांव के राजकुमार व शिवनाथ छप्पर के मकान में गुजर कर रहे हैं। उन्हें अभी तक आवास मुहैया नहीं हो सका है गांव निवासी चंद्रभान पांडे कहते हैं विकास की बात टीवी अखबार में देख कर आश्चर्य होता है। आखिर यह कहां हो रहा है हम लोग बरसात में टापू पर हो जाते हैं, बस कभी कभार बाढ़ राहत देने नेता व राजस्व राजस्व कर्मी आ जाते हैं क्या यही विकास है। इसी प्रकार विद्या प्रसाद पांडेय ने बताया की जैसे बचपन में गांव का लोकेशन था लगभग वैसे ही आज है। हां गांव के नौजवान महानगरों में जाकर मेहनत मजदूरी करके अपने अपने घरों को जरूर थोड़ा बहुत सजा लिए हैं पर सार्वजनिक सुविधा तो प्राचीन काल की है। गांव के युवा कृष्ण मुरारी कहते हैं की विकास भी पक्षपाती है, राजनेताओं की भांति दबंगों की तरफ भागता है। अब हम और नहीं सकेंगे, मिलकर आंदोलन करेंगे। इसी प्रकार का विचार शिव पलटन का भी है, उन्होंने मांग किया की हमारे गांव के संपर्क मार्ग को उच्चीकृत करके इसे पक्की सड़क के रूप में बनाया जाए तथा गांव में सभी बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाए। गांव के आलोक पांडे दीनानाथ चौधरी आदि ने भी गांव के सर्वांगीण विकास की मांग की है।
ग्राम प्रधान कुबेर ने कहा कि गांव का संपर्क मार्ग लगभग एक किमी है जो मेरे क्षमता में नहीं है। तीनों गांव के लिए 70 शौचालय की मांग की गई है, जिसमें एक दर्जन शौचालय इस गांव के हिस्से में भी आये हैं जिनका निर्माण कार्य चल रहा है। एसए बनने है। स्कूल में हैंडपंप के लिए पास प्रस्ताव भेज दिया गया है। आवास बारी बारी से उपलब्धता के अनुसार दिया जा रहा है। बाकी विकास कार्य धीरे धीरे हो रहा है।