कामगारों के वापसी की राह में ट्रेन टिकट बनी रोड़ा
लॉकडाउन के दौरान अपने घर परिवार में लौटे प्रवासी कामगारों के वापसी का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। जिस उम्मीद के सहारे कामगार गांव-घरों में लौटे थे वह पूरा नहीं हुआ। स्थानीय स्तर पर उन्हें रोजगार नहीं मिला
सिद्धार्थनगर : लॉकडाउन के दौरान अपने घर परिवार में लौटे प्रवासी कामगारों के वापसी का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। जिस उम्मीद के सहारे कामगार गांव-घरों में लौटे थे, वह पूरा नहीं हुआ। स्थानीय स्तर पर उन्हें रोजगार नहीं मिला। जिसके चलते वापसी मजबूरी हो गई है। लेकिन वापसी की राह में ट्रेनों का कम संचालित होना बाधक बना हुआ है। अधिकतर कामगार मुंबई लौटना चाहते हैं, लेकिन काउंटर पर उन्हें टिकट नहीं मिल रहा है और ट्रैवेल एजेंट उनसे टिकटों के नाम पर मनमाना पैसा वसूल रहे हैं। मुंबई लौटने की तैयारी में जुटे कुछ कामगारों से जागरण से हुई बातचीत।
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मुंबई में स्क्रेप का कारोबार करते थे। लाकडाउन के दौरान काम बंद हो गया तो घर लौट आए। सोचा था यहां कुछ काम मिल जाएगा, लेकिन कोई काम नहीं मिला इसलिए लौटना पड़ रहा है। दो दिन से बढ़नी और बस्ती रेलवे काउंटर का चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन टिकट नहीं मिला।
नियाज कादरी
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पुणे में रहकर इंटीरियर डेकोरेशन का काम करते थे। लाकडाउन में घर लौटे, लेकिन यहां भी दो महीने लगभग बैठना पड़ा। इसी सप्ताह एक आर्डर मिला है इसलिए वापस जाना है, लेकिन ट्रैवेल एजेंट ने चार हजार रुपए में एक टिकट स्लीपर का दिया।
मुकीम
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मुंबई में रहकर फ्लैटों में वायरिग का काम करते थे। जिस मालिक के अंडर में काम करते थे वह अब वापस बुला रहा है। एक सप्ताह से ट्रेन के टिकट के लिए परेशान हैं। बुकिग काउंटर पर लाइन लगने के बाद भी टिकट नहीं मिल रहा। अब प्राइवेट एजेंट के मार्फत मंहगे रेट पर टिकट निकलवाना पड़ेगा।
लड्डन
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लाकडाउन में काम न मिलने के चलते मुंबई से घर लौट आए थे, लेकिन यहां कोई काम नहीं मिला। पेंटिग का काम करते थे। अब पुणे में एक काम मिला है, लेकिन वापस लौटने के लिए ट्रेन का टिकट नहीं मिल रहा है।
मनीष गोंड
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जांच कर होगी कार्रवाई
एसडीएम त्रिभुवन ने कहा कि तहसील क्षेत्र के ऐसे एजेंटों की जांच होगी जो टिकटों की कालाबाजारी कर रहे हैं। उन पर कार्रवाई भी होगी।