मुख्यमंत्री के हाथों नियुक्ति पाकर भी छले जा रहे शिक्षक
मई माह में जनपद के परिषदीय विद्यालयों में 50 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सूबे के मुख्यमंत्री ने स्वयं अपने हाथों से वितरित किया था परंतु छह माह बीतने के बाद भी इन शिक्षकों को वेतन भुगतान नहीं होने को कौन कहे, अभी तक शैक्षणिक प्रमाणपत्रों को सम्बंधित बोर्ड में भेजा ही नहीं जा सका
सिद्धार्थनगर : मई माह में जनपद के परिषदीय विद्यालयों में 50 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सूबे के मुख्यमंत्री ने स्वयं अपने हाथों से वितरित किया था परंतु छह माह बीतने के बाद भी इन शिक्षकों को वेतन भुगतान नहीं होने को कौन कहे, अभी तक शैक्षणिक प्रमाणपत्रों को सम्बंधित बोर्ड में भेजा ही नहीं जा सका। यह खुलासा तब हुआ जब वेतन न मिलने से आक्रोशित शिक्षक शुक्रवार को बीएसए कार्यालय पहुंचे और वेतन भुगतान आदेश करने की मांग करने लगे। प्रदर्शन करते हुए शिक्षकों जिलाधिकारी से बीएसए सहित यहां तैनात बाबुओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
शिवम, दीपशिखा आदि शिक्षकों का तर्क था कि प्रदेश के अन्य जनपदों में दो प्रमाणपत्रों के सत्यापन के आधार पर वेतन भुगतान शुरू हो गया है। परंतु बेसिक शिक्षा अधिकारी राम ¨सह इस बात पर अड़े रहे कि जब तक सभी प्रमाणपत्रों का सत्यापन नहीं हो जाता तब तब वह वेतन भुगतान आदेश नहीं जारी कर सकते। जब नवनियुक्त शिक्षकों ने सत्यापन की स्थिति जाननी चाही तो बड़ी मशक्कत के बाद पता चल पाया कि अभी तो स्नातक स्तर के शैक्षिणिक प्रमाणपत्र सत्यापन के लिए ही नहीं भेजे जा सके हैं जबकि नियुक्ति हुए छह माह से अधिक का समय बीत गया है। बेसिक शिक्षा विभाग की लापरवाही का आलम तब है जब सूबे के मुख्यमंत्री ने स्वयं नियुक्तिपत्र बांटकर अच्छा संदेश दिया था। विभाग की लापरवाही से नवनियुक्त शिक्षकों के समक्ष आर्थिक तंगी बनी हुई है। बताया जाता है कि वसूली के चक्कर में यहां तैनात दो बाबू मामले को लटकाए हुए हैं। इससे विभाग की किरकिरी हो रही है। -----------
डीएम से मिली पीड़िता
मथुरा से आई शालिनी उपाध्याय और उसके पिता प्रमाण पत्र लेने के लिए पहले बीएसए से मिले। बीएसए ने बाबू के पास भेज दिया। जब बेटी और पिता संबंधित बाबू के पास पहुंच तो उसने यह कहते हुए साफ इन्कार कर दिया कि जब तक सीबीआई सत्यापन नहीं कर लेती, तब तक प्रमाण पत्र नहीं मिलेंगे। जबकि शालिनी की यहां तैनानी नहीं है। वह अपना अंकपत्र मांगने आयी थी। शालिनी का आरोप था कि सितंम्बर माह में हुई नियुक्ति में उनका चयन भी नहीं हुआ और अब मूल अंकपत्र को वापस लेने के लिए दौड़ाया जा रहा है। बाद में महिला जिलाधिकारी के पास पहुंची और अपना दुखड़ा सुनाया तब जिलाधिकारी के निर्देश पर बीएसए ने लिखित आदेश दिया। तब जाकर सम्बंधित लिपिक मूल अंकपत्र देने के लिए हामी भरा। हालांकि मूल प्रमाणपत्र को खोजने में काफी मशक्कत स्वयं उसी महिला को करना पड़ा।