मिठाई किसी दुकान की हो डब्बा तो सावित्री का ही होगा
जीवन में संकट आने या परिस्थितियां अचानक विपरीत हो जाने पर अक्सर लोग हार मान कर बैठ जाते हैं या सब कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ देते हैं। लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो टूटने की बजाय डटकर मुसीबत का सामना करते हैं।
सिद्धार्थनगर : जीवन में संकट आने या परिस्थितियां अचानक विपरीत हो जाने पर अक्सर लोग हार मान कर बैठ जाते हैं या सब कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ देते हैं। लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो टूटने की बजाय डटकर मुसीबत का सामना करते हैं। हिम्मत व हौसले की बदौलत फिर से उठ खड़े होते हैं। भड़रिया गांव की 40 वर्षीय सावित्री ऐसे ही चंद लोगों में से हैं। उन्होंने परिस्थितियों से हार मानकर बैठने की जगह संघर्ष किया। मिठाई का डब्बा बनाने का काम शुरू किया। आज वह अपने काम की बदौलत पहचानी जाती हैं।
पन्द्रह वर्ष पहले तक घर का खर्च पति सुभाष गुप्ता उठाते थे। उन्हें फालिज का अटैक आया तो सारी जमापूंजी इलाज में खर्च हो गई। पति बच तो गए, लेकिन दिव्यांग हो गए। अब पति के साथ परिवार की जिम्मेदारी सावित्री पर आ गई। पहले तो उन्होंने मजदूरी की सोची, लेकिन बच्चे और पति को संभालने की जिम्मेदारी के चलते मिठाई का डब्बा बनाने का काम खुद शुरू किया। अपने सात बच्चों के साथ मिलकर कदम बढ़ाया। बच्चे पढ़ाई के बाद मां का सहयोग करते हैं। उनके माध्यम से बने डिब्बे पहले स्थानीय बाजार में ही जाते थे। लेकिन अब डुमरियागंज, पथरा, मिठवल, इटवा, गैंसड़ी, पचपेड़वा, उतरौला बलरामपुर तक से आर्डर मिल रहे हैं। स्थिति यह है कि आप इन क्षेत्रों में मिठाई किसी भी दुकान से खरीदें डब्बा आपको सावित्री के हाथों से बना ही मिलेगा। सावित्री ने बताया कि वह आठवीं तक पढ़ी हैं। पाठ्यक्रम में पुस्तक कला भी एक विषय था। मुझे इसमें रुचि थी। जब पति बीमार हुए और जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। हमने यह कुटीर उद्योग अपनी जमा पूंजी से प्रारंभ किया। आज इस काम से प्रति माह 15 हजार रुपये तक मिल जाते हैं, जिससे बच्चों की परवरिश, पति की दवाई और घर खर्च आराम से चल जाता है।
लखनऊ से मंगाती हैं कच्चा माल
मिठाई का डब्बा तैयार करने के लिए दफ्ती, रंगीन पेपर व स्टीकर वह लखनऊ से मंगाती हैं। सावित्री ने बताया कि अधिकतर आर्डर सादे डब्बे के मिलते हैं, लेकिन अब कुछ लोग दुकान के नाम से भी डब्बा बनवाने लगे हैं। उनके नाम का स्टीकर व अन्य जरूरी सामान वह मंगवाकर, वह डब्बा समय पर मुहैया कराती हैं।
70 हजार तक हर महीने मिलता है आर्डर
कोविड संक्रमण के बीच आर्डर कम मिल रहे हैं। फरवरी महीने तक 65 से 70 हजार रुपये का आर्डर मिल रहा था। अगर 70 हजार का आर्डर रहता था तो 45 से 50 हजार रुपये का सामान मंगाना पड़ता है। डब्बे की बिक्री साइज व नग के हिसाब से की जाती है। एक किग्रा साइज का 100 डब्बा वह 530 रुपये में उपलब्ध करातीं हैं।