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ख्वाबों की उड़ान को धरातल पर उतरने का इंतजार

सिद्धार्थनगर : गौरवशाली अतीत को अपने आंचल में समेटे हुए यह माटी सदियों से विकास को तरस रह

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Dec 2017 12:06 AM (IST)Updated: Fri, 22 Dec 2017 12:06 AM (IST)
ख्वाबों की उड़ान को धरातल पर उतरने का इंतजार
ख्वाबों की उड़ान को धरातल पर उतरने का इंतजार

सिद्धार्थनगर : गौरवशाली अतीत को अपने आंचल में समेटे हुए यह माटी सदियों से विकास को तरस रही है। साल दर साल यहा माटी ख्वाबों में ऊंची उड़ान तो भरती है, पर धरातल पर यह कहीं नहीं दिखता। दिखती है तो केवल उड़ती हुई धूल और उसमें हिचकोले खाती रोडवेज की खटारा बसें। कहने को तो हम रेल सेवा से भी जुड़े हुए हैं, पर दिल्ली अभी हमारे लिए बहुत दूर है। यहां वादे तो बहुत किए जाते हैं, पर इरादों की कसौटी पर वह ढेर हो जाते हैं। कोई सपनों की रेल चलाने की बात करता है, तो कोई ख्वाबों में ही लोगों को अंतरिक्ष की सैर करा देता है। अंत में हाथ लगती है तो केवल मायूसी। शायद इस माटी के लिए यही नियति बन चुकी है।

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दो दशक बाद भी शिलान्यास तक सिमटी परियोजना

बीते साल की बात करें तो उपलब्धियों के नाम पर झोली खाली है। ख्वाबों की उड़ान भी अभी धरातल पर नहीं उतर सकी है। यह इस माटी का वह सपना है, जिसे वह पिछले दो दशकों से संजोए हुए है। 22 मई 1997 को जनपद प्रवास के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने महादेवा कुर्मी में हवाई पट्टी का शिलान्यास किया था। इस उपलब्धि पर नागरिक फूले नहीं समा रहे थे। वह यह सोचकर आह्लादित हो रहे थे कि कम से कम बैठना नहीं नसीब तो वायुयान को वह करीब से देख तो सकेंगे। पिछले बीस बरस से यह परियोजना सिर्फ शिलान्यास तक सिमटी हुई है। स्वदेश दर्शन योजना के तहत यहां एअर स्ट्रिप के निर्माण के लिए धन अवश्य स्वीकृत हुआ है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में वायुयान न सही, पर छोटे हेलीकाप्टर से सफर का सपना साकार हो सकता है।

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जनपदवासियों के लिए दिल्ली दूर

कहने को जिला ब्राड गेज से जुड़ा हुआ है। करीब 62 किमी रेल लाइन हमारे हिस्से में है। इस रूट पर उसका, नौगढ़, अहिरौली, चिल्हिया, परसा, महथा, शोहरतगढ़ व बढ़नी सहित करीब नौ स्टेशन है। इनमें से नौगढ़ व बढ़नी डी-श्रेणी में आते हैं। यहां यात्री सुविधाओं का घोर अकाल है। बाकी की हालत आप खुद ही समझ सकते हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी दिल्ली हमारे लिए बहुत दूर है। बीता साल जनपद के लिए निराशाजनक रहा है। न तो किसी नई ट्रेन की सौगात मिली है, न ही यात्री सुविधाओं में कोई इजाफा हुआ है। कपिलवस्तु को रेल सेवा से जोड़ने की परियोजना भी मूर्त रूप नहीं ले सकी है। यहां से हम केवल लखनऊ, गोरखपुर व मुंबई आसानी से जा सकते हैं, पर हमारे लिए दिल्ली अभी दूर है। देश की राजधानी दिल्ली जाने के लिए केवल एक ट्रेन है हमसफर। वह भी सप्ताह में एक बार ही जाती है। इसके अलावा कोलकाता, चेन्नई, बंगलौर सहित देश के अन्य महानगर हमारी पहुंच से बहुत दूर हैं।

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नहीं तैयार हो सका वा¨शग पिट

बढ़नी में निर्माणाधीन वा¨शग पिट भी इस साल तैयार नहीं हो सका, जबकि इसे 2015-16 में ही पूरा होना था। अगले साल भी इसके पूरा होने की उम्मीद कम ही है। कयास लगाया जा रहा था कि इसके निर्माण से कस्बा जंक्शन के रूप में विकसित होगा, साथ ही ट्रेनों का संचलन भी बढ़ेगा, पर यह उम्मीद भी धरी की धरी रह गई। इसका निर्माण पूरा होने के बाद यहां कई नई ट्रेनों की सौगात मिलने की उम्मीद है।

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भूतल परिवहन भी खस्ताहाल

भूतल परिवहन के मामले में यह जिला पूरी तरह फिसड्डी है। बीते साल में एक एनएच की सौगात मिलने की उम्मीद थी। यह पूरा तो नहीं हो सकी, हां जनपद की तकदीर पर ग्रहण जरूर लगा दिया। इससे उड़ते धूल के गुबार में हिचकोले खाती रोडवेज की खटारा बसें जनपद को शर्मसार करती हैं। रोडवेज के बेड़े को भी आधुनिकीकरण का इंतजार है। 46 बसों के बेड़ें में महज छह बसें नई हैं, जो इस साल की पहली तिमाही में मिली थी। यह भी एक लाख किमी से ऊपर चल चुकी हैं। इसके अलावा आधा दर्जन बसें ऐसी हैं, जो अपनी मियाद पूरी कर चुकी हैं। वर्ष 2018 में इनके नीलाम होने की उम्मीद है। इसके अलावा यह विभाग कर्मचारियों की कमी से भी जूझ रहा है। 46 बसों का संचालन सुनिश्चित करने के लिए करीब 100 चालकों व इतने ही परिचालकों की आवश्यकता है। इसके सापेक्ष 79 कंडक्टर व 81 चालक उपलब्ध हैं। इसमें से केवल 40 ही नियमित हैं। संविदा कर्मियों के भरोसे काम चल रहा है। कर्मचारी सेवानिवृत्त होते रहे, पर भर्ती नहीं हुई। लोड फैक्टर में भी मामूली इजाफा हुआ है। एआरएम अजय प्रताप ¨सह ने बताया कि वर्ष 2016 में जो लोड फैक्टर 55 था, वह इस साल बढ़कर 56 हो गया है। यह भी बताया कि अगले साल कार्यालय से करीब आधा दर्जन कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इससे दुश्वारियां और बढ़ने की उम्मीद है।

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ठहर गए जनरथ के पहिए

जनपद को प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जोड़ने व लोगों के सफर को आरामदायक बनाने के लिए अवध डिपो ने यहां से जनरथ वातानुकूलित सेवा प्रारंभ की थी, जो माह भर बाद भी ठप हो गई। एआरएम के अनुसार सड़कों की खराबी व आय न होने के कारण ही यह सेवा बंद की गई है। जिले में एक मात्र जनरथ सेवा बांसी तक सीमित है। प्रयाग डिपो की यह बस बांसी से ही लौट जाती है।

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कपिलवस्तु के लिए महज एक बस

तथागत की क्रीड़ास्थली तक जाने के लिए रोडवेज की महज एक ही बस है, जो दिन में एक चक्कर लगाती है। जबकि वहां विश्वविद्यालय की स्थापना भी हो चुकी है। हजारों की संख्या में प्रतिदिन लोगों का आना-जाना लगा रहता है। बावजूद इसके यहां आवागमन का कोई समुचित इंतजाम नहीं है। डग्गामार वाहनों से सफर करना यहां लोगों की मजबूरी बन चुकी है।

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रात आठ बजते ही कैद हो जाता है जनपद

सड़क परिवहन के मामले में रात के आठ बजते ही जनपदवासी कैद होकर रह जाते हैं। इसके बाद आपको जनपद से बाहर जाने के लिए सड़क मार्ग पर कोई साधन नहीं मिलेगा। आपातकालीन स्थिति में लोगों को निजी या किराए के वाहन का सहारा लेना पड़ता है।

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प्रयास के बावजूद माटी उदास

ऐसा भी नहीं कि इस जनपद में परिवहन सेवाओं की बेहतरी के लिए माननीयों ने प्रयास नहीं किया। पर या तो वह नाकाफी साबित हुए या परवान नहीं चढ़ सके। क्षेत्रीय सांसद जगदंबिका पाल लगातार रेल व सड़क सेवाओं की बेहतरी के लिए प्रयास करते रहते हैं। एलटीटी व हमसफर सहित बढ़नी में निर्माणाधीन वा¨शग पिट उनके प्रयासों की ही देन है। पर यह काफी नहीं है। अभी इस रूट पर और ट्रेनों की जरूरत है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने भी जनपद प्रवास के दौरान जिले को बुद्ध सर्किट में शामिल करने एवं एअर टैक्सियों के संचलन की बात कही, पर अभी नागरिकों को इसके धरातल पर उतरने का इंतजार है।

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नए साल से उम्मीदें

नए साल से जनपदवासियों को कई सौगात मिलने की उम्मीद है। बहुप्रतीक्षित एनएच-233 के पूर्ण होने की संभावना प्रबल है। इससे सड़क परिवहन के मामले में जिले की स्थिति बेहतर होने की संभावना है। इसके अलावा सांसद के प्रयासों से रूट पर कुछ नई ट्रेनों का संचलन भी संभव है। स्वदेश दर्शन योजना के तहत अवमुक्त बजट से निर्मित होने वाली एअर स्ट्रिप यदि पूरी हुई तो केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा का एअर टैक्सियां उतारने का ख्वाब भी परवान चढ़ सकता ह


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