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लाकडाउन में हुआ मुनाफा, संक्रमण से बचे रहना थी चुनौती

डेढ़ दशक पूर्व दवा की छोटी दुकान से व्यवसाय की शुरुआत करने वाले शाम्भवी मेडिसिस के प्रोपराइटर राजेश प्रताप सिंह ने कोरोना संकट को अवसर में बदल दिया। इस दौरान कारोबार की आगे बढ़ाया। जब लाकडाउन में सभी बाजार बंद थे वहीं प्रशासन ने दवा की दुकान खोलने की अनुमति प्रदान की थी। इससे कारोबार में फायदा हुआ।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 12:30 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 05:12 AM (IST)
लाकडाउन में हुआ मुनाफा, संक्रमण से बचे रहना थी चुनौती
लाकडाउन में हुआ मुनाफा, संक्रमण से बचे रहना थी चुनौती

सिद्धार्थनगर जेएनएन : डेढ़ दशक पूर्व दवा की छोटी दुकान से व्यवसाय की शुरुआत करने वाले शाम्भवी मेडिसिस के प्रोपराइटर राजेश प्रताप सिंह ने कोरोना संकट को अवसर में बदल दिया। इस दौरान कारोबार की आगे बढ़ाया। जब लाकडाउन में सभी बाजार बंद थे, वहीं प्रशासन ने दवा की दुकान खोलने की अनुमति प्रदान की थी। इससे कारोबार में फायदा हुआ। सालाना 20 से 22 लाख का व्यापार कर रहे हैं। पांच कामगारों को रोजगार भी दे रहे हैं। जीवनरक्षक दवा भी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी निभाई। इस दौरान सामान्य दिनों के सापेक्ष 15 से 20 फीसद तक का मुनाफा हुआ। हालांकि व्यवसाय में मुनाफे से ज्यादा जरूरी खुद को और ग्राहकों को संक्रमण से बचाना था। सुरक्षित रहते हुए व्यापार करना एक बड़ी चुनौती रही। दुकान पर आने जाने वाले ग्राहकों के लिए आरोग्य सेतु एप और मास्क पहनना जरूरी है।

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राजेश प्रताप सिंह बताते हैं कि लाकडाउन के दौरान सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिता थी। आस-पास की जगह घेर दी गई थी। गोला बनाकर दो गज की दूरी से व्यापार किया। ग्राहकों को निराश न होना पड़े, इसके लिए आनलाइन पेमेंट का सहारा लिया। गूगल पे, ़फोन पे, भीम यूपीआई, कार्ड पेमेंट आदि को उपयोग में लाया। कोविड नियमों के पालन में डिजिटल लेनदेन बहुत बड़ा सहारा बना। नकद लेनदेन से संक्रमण का खतरा बना रहता था। डिजिटल पेमेंट के माध्यम से व्यापार को आगे बढ़ाया। इस समय लोगों से सामाजिक दूरी के नियम का पालन कराना बड़ी चुनौती था। ग्राहकों की भीड़ न लगे, इसके लिए पहले से कार्ययोजना की तैयार की। इनको दुकान पर ज्यादा देर खड़ा न रहना पड़े उसके लिए गूगल प्लेटफार्म और वाट्सएप का उपयोग किया। वाट्सएप पर नियमित ग्राहकों का एक ग्रुप बनाया। यह जरूरत के दवा की सूची भेजते थे। जिसे पहले से निकाल कर रख दिया जाता था। इसके बाद इन्हें एक निर्धारित समय दे दिया जाता रहा। जैसे वह आते उनका पैकेट उन्हें दे दिया जाता। इससे सभी को सुविधा होती थी। नए प्रोडक्ट और आफर के बारे में वाट्सएप और गूगल के माध्यम से जानकारी साझा करते रहे। लाकडाउन के दौरान बाजार के साथ कहीं भी आनेजाने पर पाबंदी रही। ऐसे में जरूरतमंदों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए दवाओं का पर्याप्त स्टाक रखने की कोशिश की गई। दवा की मांग बढ़ने से कभी-कभी आपूर्ति करने में परेशानी भी आई। इसे भी ध्यान में रखते हुए निरंतर कार्ययोजना तैयार होती थी। सबकी मांग को पूरा करना था। किसी को परेशानी का सामना न करना पड़े। कोशिश रहती थी कि कोई जरूरतमंद वापस नहीं लौटे। संक्रमण काल के दौरान कोरोना से बचने की चुनौती थी। खुद को और परिवार को संक्रमण से बचाने की भी जिम्मेदारी को निभाया। सचेत रहने के कारण परिवार व कामगार सभी सुरक्षित रहे। शारीरिक दूरी के नियम का पालन किया गया। पौष्टिक आहार लेते रहे। इस दौरान जनसहयोग में भी हाथ बटाया। 40 से 50 जरूरतमंद परिवारों को रोजमर्रा का सामान व चावल-दाल भी दिया जाता रहा। बाजार खुलने के बाद भी ग्राहकों में कोरोना का भय व्याप्त है। संक्रमण से बचाव के लिए ग्राहकों को जागरूक करते रहते हैं। आज भी दुकान पर मास्क पहन कर आना अनिवार्य है। शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। बगैर मास्क के दुकान पर आने वाले ग्राहक को दवा नहीं दी जाती है।

संक्रमण के समय आई चुनौतियों को देख व्यापार में और मुनाफा की संभावना की तलाश की जा रही है। इसके लिए ई-कामर्स पर दवाओं के प्रोडक्ट लांच करने की तैयारी है। इसकी कार्ययोजना को मूर्त रूप देने की तैयारी शुरू हो गई है। वेबसाइट पर दवाओं के प्रोडक्ट को उपलब्ध करा कर डिजिटल मार्केटिग को बढ़ावा देना है। ताकि जिससे होम डिलीवरी भी कराई जा सके। इससे ग्राहकों को लाभ पहुंचने के साथ व्यापार भी ऊपर उठेगा।

ग्राहकों की सलाह पर लाकडाउन में शुरु की कार्य योजना

लाकडाउन के दौरान व्यापार को गति देने कार्ययोजना तैयार की। ग्राहकों से लगातार संवाद बनाये रखने का प्रयास किया। उनके सुझाव को मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया। ग्राहकों के सुझाव को मानकर डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिया। ज्यादा से ज्यादा डिजिटल पेमेंट पर जोर देने का काम चला।


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