धान की पैदावार हल्दिया रोग से हुई प्रभावित
लाख जतन के बाद धान की फसल कटकर घर तो आ गई लेकिन उत्पादन देखकर किसान सदमे में हैं। पहले जहां प्रति बीघे में पांच क्विंटल से अधिक की पैदावार मिलती थी इस बार तो चार क्विंटल से भी कम पैदावार मिली है।
सिद्धार्थनगर : लाख जतन के बाद धान की फसल कटकर घर तो आ गई, लेकिन उत्पादन देखकर किसान सदमे में हैं। पहले जहां प्रति बीघे में पांच क्विंटल से अधिक की पैदावार मिलती थी, इस बार तो चार क्विंटल से भी कम पैदावार मिली है। धान की फसल को अंतिम दौर में हल्दिया रोग ने प्रभावित किया जिसके चलते किसानों को आपेक्षित उत्पादन नहीं प्राप्त हो सका।
तहसील क्षेत्र में धान की कटाई शुरू हो चुकी है, लेकिन किसानों के चेहरे पर निराशा के भाव हैं। इस बार समय- समय पर मिली बारिश ने धान के फसल को संजीवनी दी। मानसून की मेहरबानी से किसानों को सिचाई से निजात मिली। फसल देखकर किसान उत्साहित थे कि इस बार भरपूर पैदावार मिलेगी। फसल कटाई के बाद सारा उत्साह फीका पड़ गया है। हालत यह है कि कंबाइन से कटाई के दौरान फसल से पीला पाउडर निकल रहा है। बालियों में धान की जगह पीला पाउडर निकल रहा है। कटाई से महज 20 दिन पहले यह रोग कुछ खेतों में दिखा तो किसानों ने दवा आदि का छिड़काव कराया, लेकिन लाभ नहीं मिला और यह तेजी से फैलता गया। सांभा मंसूरी, मंसूरी, नीलम, बासमती, संपूर्णा, गोल्डेन के अलावा पछेती प्रजातियों में इस रोग का प्रकोप अधिक हुआ है। खुनियांव, भनवापुर ब्लाक में हल्दिया रोग से किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। कृषि विज्ञानी डा. मारकंडेय सिंह ने कहा कि यह फफूंद जनित रोग है। समय रहते ही उपाय करना जरूरी होता है। किसानों को चाहिए कि बीजोपचार कर बोआई करें। लगातार एक तरह की फसल खेत में उगाने से बचने की जरूरत है।
सुनील ने बताया कि पिछले वर्ष कम बारिश में भी बेहतर पैदावार मिली, लेकिन इस बार लागत निकालना मुश्किल है। हल्दिया रोग ने सबकुछ चौपट कर दिया। सुराती ने बताया कि
पांच बीघा खेत में पिछली बार 26 क्विंटल धान पैदा हुआ था। इस बार 20 क्विंटल ही उपज मिली है, किसान उत्पादन देख आहत हैं। मनौव्वर कहते हैं कि लगभग तैयार होने के कगार पर खड़ी फसल में यह रोग लगा। फसल को बचाने का कोई मौका नहीं मिला। बालियों में धान की जगह पीला पाउडर भरा है। रामदास का कहना है कि कृषि विभाग की उपेक्षा से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है। समय रहते अगर किसानों को उपाय बताए जाते तो शायद उत्पादन इतने बुरी तरह प्रभावित न होता।