सर्वोत्तम आहार पर भी मिलावट की मार
सिद्धार्थनगर : पशुपालन में गिरावट से सर्वोत्तम आहार कहे जाने वाले दूध के उत्पादन का ग्राफ गिरता ही ज
सिद्धार्थनगर : पशुपालन में गिरावट से सर्वोत्तम आहार कहे जाने वाले दूध के उत्पादन का ग्राफ गिरता ही जा रही है। बढ़ रही आबादी से दूध की मांग भी बढ़ी है। ऐसे में कम उत्पादन अधिक डिमांड के चलते दूध का काला कारोबार तेजी से चल रहा है। अधिक मुनाफे के चक्कर में इन कारोबारियों को मासूमों के जान तक की परवाह नहीं है। आलम है केवल नगर क्षेत्र में ही बड़ों के साथ करीब दो हजार से अधिक मासूम भी हर दिन मीठा जहर पीने को मजबूर है।
तहसील के 785 राजस्व गांवों में रहने वाली करीब सात लाख की आबादी में लगभग दो लाख मासूमों के लिए उनके परिजन हर दिन दूध खरीदते हैं। शुद्ध दूध सिर्फ उन्हीं बच्चों व घरों को नसीब होता है, जिनके पास खुद गाय या भैंस है। दूध की जरूरत वैसे तो हर किसी को होती है, लेकिन बच्चों को इसकी जरूरत अधिक होती है। पशुपालन से ग्रामीणों का मोह भंग होने के चलते इसमें मिलावट का खेल शुरू हुआ। उत्पादन तो बढ़ा नही मांग निरंतर बढ़ती गई। नतीजतन दूध के काले कारोबारी पानी के साथ अब इसमें झाग व दूध को गाढ़ा करने के लिए आरारोट, सर्फ, चाक, आदि मिलाना शुरू कर दिए। घर से लेकर नगर, गांव, कस्बों में हर जगह यह खेल जारी है। मुंह मांगा दाम देने पर भी शुद्धता की गारंटी नही है। एक अनुमान के मुताबिक नगर, कस्बों, चौराहों के अलावा तहसील के गांवों में प्रतिदिन दो लाख लीटर के आसपास दूध की खपत है। उत्पादन पर गौर करें तो एक गांव में औसतन दस लोग पशुपालन करते है। ऐसे में दूध की किल्लत से मिलावटखोरों की पौ-बारह हो गई है।
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''किसी भी तरह के खाद्य पदार्थो में मिलावट करने वालों के विरूद्ध अक्सर कार्रवाई होती है। रही बात दूध में मिलावट की तो इसके लिए फूड विभाग के स्थानीय निरीक्षक से कहता हूं की वह ऐसे लोगों की जांच करके कार्रवाई करें।''
प्रबुद्ध ¨सह
एसडीएम