गीता संसार के लिए भारत का गुरु मंत्र
अब से 5 हजार वर्ष पूर्व भक्तों के पुकार पर मानवता के कल्याण हेतु भारत की पावन भूमि पर अवतरित हुए योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ही संसार के पहले जगत गुरू हैं। इनके मुख से निकली श्रीमद् भगवत गीता ही उनका गुरुमंत्र है।
सिद्धार्थनगर : अब से 5 हजार वर्ष पूर्व भक्तों के पुकार पर मानवता के कल्याण हेतु भारत की पावन भूमि पर अवतरित हुए योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ही संसार के पहले जगत गुरू हैं। इनके मुख से निकली श्रीमद् भगवत गीता ही उनका गुरुमंत्र है।
उक्त बातें वाराणसी से पधारे योगेश शास्त्री जी महराज ने कहीं। वह शुक्रवार को क्षेत्र के कुनौना ग्राम में आयोजित सप्त दिवसीय भागवत कथा के समापन अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। योगेश महाराज के कहा कि जिस कर्मवाद के सिद्धांत को अपनाकर दुनिया नित नई बुलंदियों पर पहुंच रही है। मानव के हाथ पृथ्वी से चंद्रमा व मंगल तक पहुंच रहे हैं। प्रकृति के रहस्य को भी हम सुलझा रहे हैं। यह सब भगवान कृष्ण के कर्मवाद के उपदेश का ही प्रतिफल है। भले ही महाभारत युद्ध के बाद आताताइयों द्वारा लगातार हमारी सभ्यता व प्राचीन ज्ञान को नष्ट करने का शताब्दियों तक प्रयास किया गया हो फिर भी हमारा अस्तित्व बना हुआ है। उसी के अनुसरण से विश्व विकसित हो रहा है। सच्चे अर्थो में भगवान श्री कृष्ण ने ही हमें विश्व गुरु बनाने का दर्जा प्रदान किया। योगेश जी ने यह भी बताया कि अनाचार, व्यभिचार जब भी बढ़ेगा भगवान पृथ्वी पर आएंगे और सत्य पथ को मजबूत करेंगे। यह वादा उन्होंने अद्वितीय व अद्भुत ग्रंथ गीता में ही किया है। शास्त्री जी ने मानव जीवन की भारतीय प्राचीन पद्धति परिवार को मजबूत करने का भी उपदेश दिया। संबंधों के जाल को मजबूती देकर ही समाज को मजबूत किया जा सकता है। महाभारत का जिक्र करते हुए नसीहत दी के पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर जब भी परिवार में टकराव होगा तो उस समय महाभारत होना निश्चित हो जाएगा। राम प्रसाद त्रिपाठी, जगदीश पांडेय, विशंभर, राम नाथ यादव, गायत्री, सुशीला, गीता देवी, जनकनंदिनी, किशलावती, शांती, प्रेमा देवी, कांती मिश्रा आदि मौजूद रहे।