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मोहताजों की सौगात का नाम है मुमताज

सिद्धार्थनगर: नाम मुमताज अहमद। उम्र 56 वर्ष। विधि स्नातक। खुदा के करम से किसी भी तरह की जरूरत के मोह

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 10:01 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:01 PM (IST)
मोहताजों की सौगात का नाम है मुमताज
मोहताजों की सौगात का नाम है मुमताज

सिद्धार्थनगर: नाम मुमताज अहमद। उम्र 56 वर्ष। विधि स्नातक। खुदा के करम से किसी भी तरह की जरूरत के मोहताज नहीं है। और इसी वजह से वे मोहताजों की मदद करते हैं। इस इमदाद के बदले उन्हें शोहरत की ख्वाहिश नहीं रहती। खुदा की बंदगी और दान के धर्म का शिद्दत से अनुपालन करने का नतीजा उन्हें आइएएस व डाक्टर दामाद के रूप में मिला है। सौ घर की हिन्दू-मुस्लिम आबादी वाला उनका पैतृक गांव महदेइया सरकारी कर्ज से मुक्त होने वाला संभवत: जनपद का इकलौता गांव भी बन चुका है। तालीम, खाना-खुराकी, कर्ज से मुक्ति दिलाने का संकल्प सिर्फ उनका ही मिशन नहीं है, ऐसा करने की विरासत पुरखों से मिली है। उनके बड़े भाई सुल्तान भी मदद के मामले में यथा नाम तथा गुण हैं। मुमताज की कोशिश रोटी बैंक स्थापित करने की है, जिसे बहुत जल्द साकार करने का संकल्प वे ठाने हुए हैं।

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संपन्न परिवार में जन्म लेने का असर रहा कि अब्बा ने कायदे से तालीम दिलाई। पैतृक संपत्ति भरपूर थी सो नौकरी की चाह रही नहीं। हाथ में खुद की कमाई आनी शुरू हुई तो उन्हें परवरिश के दौरान मिले उन संस्कारों ने बड़ा बना दिया जिसमें जरूरतमंद की मदद को खुदा का इबादत का अंश माना गया था। मुस्लिम धर्म में निहित प्रावधानों का पालन करते हुए उन्होंने हर साल, सालाना कमाई का ढाई फीसद लोक कल्याण के कार्यों में खर्च करना शुरू कर दिया। यहीं कोई सन 82-83 की बात है जब उन्होंने किसी की पहली बार मदद की थी। अब तक 25-30 बेटियों के हाथ पीले कराने में उन्होंने पूरा खर्च उठाया। उनके पास किसी भी तरह का कोई विवरण इसलिए नहीं है कि उन्हें पुरखों ने नसीहत दी थी कि बेटा, जब किसी की मदद करना तो मदद करने वाले हाथ की जानकारी दूसरे हाथ को भी न होने पाए। और इसी वजह से उन्होंने किसी भी समारोह की न तो फोटो ¨खचाई न ही किसी का लिखा-पढ़ी में ब्यौरा रखा।

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कराते हैं कारागार की सेहरी-अफ्तार

बकौल मुमताज, वर्ष 2010-11 से जिला कारागार में निरुद्ध कैदियों को अनवरत पूरे रमजान की सेहरी और अफ्तार का प्रबंध करते हैं। याद करते हुए बताया कि पहली बार कैदियों की संख्या करीब डेढ़ सौ की थी। पूरे रमजान की सामग्री वे जेल प्रशासन से पूछ कर उपलब्ध करा देते हैं।

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बाबा ने खोला प्राथमिक, पोते ने डिग्री कालेज

बताया कि बाबा ने गांव के करीब अपनी जमीन पर जलालुल उलूम की स्थापना की। इसका मकसद गांव के प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा देना था। इस स्कूल को आज भी सरकारी सहायता नहीं मिलती है। बाद में अब्बा ने एक इंटर कालेज की स्थापना में भरपूर योगदान दिया और जब वो संसाधन संपन्न हो गया तो उसे एक प्रबंध कमेटी के हवाले कर दिया गया। इसके बाद की कड़ी उन्होंने 2009 में करौंदा मसिना में स्ववित्त पोषित डिग्री कालेज खोलकर जोड़ी।

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बेटे कारोबारी, बेटियां उच्च शिक्षित

बड़े भाई सुल्तान की कोई कोई संतान नहीं है। जबकि मुमताज अहमद के दो बेटे, दो बेटियां हैं। बेटियां ससुराल में हैं। एक दामाद आइएएस तो दूसरा प्रख्यात चिकित्सक है। एक बेटे ने इंजीनिय¨रग में स्नातक किया है तो दूसरा भी उच्च शिक्षित है। दोने बेटे पारिवारिक कारोबार का संचालन करते हैं।

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प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर दो कैदियों का दिया तोहफा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं पता कि 17 सितंबर को उन्हें अप्रत्यक्ष तोहफा देने वाले जनपद के इकलौते शख्स बन गए मुमताज अहमद। हुआ यूं कि 16 सितंबर की शाम को स्थानीय जेल प्रशासन के पास शासन का फरमान आया कि अर्थदंड अदा न करने के एवज में सजा काट रहे कैदियों को अगले रोज रिहा कराने का प्रबंध करें। जेल प्रशासन ने तुरंत मुमताज अहमद से संपर्क किया। बताया गया कि 4900 रुपये जमा करने पर दो कैदी छोड़े जा सकते हैं, मदद कर दीजिए। मुमताज फट से तैयार हो गए। सुबह जेल पहुंचे, रुपये जमा किए और जब कैदी रिहा हुए तब वे उनका चेहरा देख पाए जो उनकी वजह से रिहा हुए थे।

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कोशिश रोटी बैंक बनाने की

अगला पड़ाव रोटी बैंक स्थापित करने का है। कोशिश यही है कि ऐसा प्रबंध करें ताकि किसी भी सूरत में यह बैंक कभी बंद न हो। इसके लिए उपयुक्त भूमि तलाशी जा रही है। इस बैंक का उद्?देश्य हर भूखे को निवाला मुहैय्या कराना होगा।

मुमताज अहमद


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