डाक्टर न दवा, फिर भी निश्शुल्क इलाज का दावा
क्षेत्र के नव्वा गांव में करीब आठ वर्ष पहले करोड़ों की लागत से बना न्यू प्राथमिक स्वास्थ केंद्र वर्तमान में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। इस अस्पताल पर न तो किसी डाक्टर की तैनाती है और न ही मरीजों के लिए पर्याप्त दवाएं उपलब्ध हैं।
सिद्धार्थनगर : क्षेत्र के नव्वा गांव में करीब आठ वर्ष पहले करोड़ों की लागत से बना न्यू प्राथमिक स्वास्थ केंद्र वर्तमान में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। इस अस्पताल पर न तो किसी डाक्टर की तैनाती है और न ही मरीजों के लिए पर्याप्त दवाएं उपलब्ध हैं। इकलौते फार्मासिस्ट सारी व्यवस्था देख रहे हैं, जो अक्सर ड्यूटी से गायब ही रहते हैं। केंद्र की बदहाल स्थिति सरकार के उस दावे को हवा-हवाई साबित कर रही है, जिसमें सरकारी अस्पतालों में बेहतर चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है।
अस्पताल का निर्माण वर्ष 2011-12 में हुआ था। निर्माण के समय मानक की अनदेखी की गई, नतीजा ये रहा कि निर्माण के कुछ ही महीनों बाद भवन से पानी टपकने लगा। यही नहीं आवास की स्थिति ये है कि बिना प्रयोग के ही एक तरफ की छत जर्जर होकर लटक गई है। जगह-जगह दीवारें भी फटने लगी है। अस्पताल में न बिजली है, न ही पानी का कोई इंतजाम है। गंदगी ऐसी, कि परिसर में बड़ी-बड़ी घास देखकर अंदर जाने में डर लग जाता है। करीब दो साल पहले एक चिकित्सक की यहां तैनाती थी, जिनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई। इसके बाद से आज तक इस अस्पताल में डाक्टर नसीब नहीं हे सका है। इलाज की जिम्मेदारी फार्मासिस्ट के कंधों पर है, परंतु वह भी केंद्र से आए दिन गायब ही रहते हैं। जब फार्मासिस्ट मौजूद रहते हैं, तो 20-25 मरीज आ जाते हैं, परंतु इनको दवाएं भी मिलना मुहाल रहता है। नाममात्र ही दवा यहां रहती है। स्थिति ये है कि इन दिनों सामान्य बुखार की दवा पैरासीटामोल की एक टेबलेट तक यहां उपलब्ध नहीं है। प्रेम शंकर पाण्डेय का कहना है कि जब सरकार डाक्टर, दवा की व्यवस्था नहीं कर पाती है, तो सरकारी अस्पताल का क्या मतलब रह जाता है। रामानंद ने कहा कि करोड़ों रुपये खर्च कर अस्पताल बन गया, परंतु जब चिकित्सक व दवाएं ही नहीं है, तो फिर भला क्या फायदा। ¨झकन ने कहा कि अस्पताल पर प्राथमिक उपचार तक की व्यवस्था नहीं रहती है। गौतम प्रसाद कहते हैं, कि सरकारी व्यवस्था बदहाल रहने से क्षेत्रीय मरीजों को इलाज के लिए या दूर जाना पड़ता है, अथवा झोलाछाप की शरण लेनी पड़ती है। सुमित्रा देवी, उर्मिला आदि का कहना है कि महिलाओं के इलाज के न तो नर्स की तैनाती है, न ही किसी एएनएम की। ग्रामीणों ने मुख्य चिकित्साधिकारी से इस दिशा में उचित कदम उठाए जाने की मांग की है।