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मोम दीपकों से रोशन होगी यह दीपावली

स्वदेशी उत्पादों की ठसक त्योहार में बरकरार रहे इसके लिए तहसील क्षेत्र के चार कुंभार अनूठा प्रयोग कर रहे हैं। मिट्टी के परंपरागत दीपकों को मोम दीपकों में तब्दील कर उसे सप्लाई करने का काम हो रहा है। जिले के विभिन्न तहसीलों के अलावा बलरामपुर, गोंडा तक मोमदीपकों की सप्लाई छह सौ रुपया सैकड़ा के हिसाब से हो रही

By JagranEdited By: Published: Mon, 05 Nov 2018 09:26 PM (IST)Updated: Mon, 05 Nov 2018 09:26 PM (IST)
मोम दीपकों से रोशन होगी यह दीपावली
मोम दीपकों से रोशन होगी यह दीपावली

सिद्धार्थनगर: स्वदेशी उत्पादों की ठसक त्योहार में बरकरार रहे इसके लिए तहसील क्षेत्र के चार कुंभार अनूठा प्रयोग कर रहे हैं। मिट्टी के परंपरागत दीपकों को मोम दीपकों में तब्दील कर उसे सप्लाई करने का काम हो रहा है। जिले के विभिन्न तहसीलों के अलावा बलरामपुर, गोंडा तक मोमदीपकों की सप्लाई छह सौ रुपया सैकड़ा के हिसाब से हो रही है। इटवा तहसील क्षेत्र के मोमदीपकों की बढ़ी डिमांड के चलते इस बार चाइनीज झालरों व रंग बिरंगे मोमबत्तियों का कारोबार धीमा है।

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इस बार की दीपावली मोमदीपकों से रोशन होगी। तहसील क्षेत्र के चार कुंभारों ने अनूठा प्रयोग करते हुए मोम दीपकों का निर्माण प्रारंभ किया है जिनकी डिमांड क्षेत्र में तो है ही पड़ोसी जनपद के लोग भी इन दीपकों की खरीद के लिए आर्डर बुक करा रहे हैं। अबतक लगभग चालीस हजार के मोम दीपकों की सप्लाई हो चुकी है और कुंभारों के पास आर्डर पर आर्डर आ रहे हैं।चाइनीज झालरों और रंग बिरंगी मोमबत्तियों के दौर में परंपरागत मिट्टी के दीपकों की बिक्री का ग्राफ गिरता जा रहा था। लोग मिट्टी के दीपकों की खरीदारी नाममात्र करते थे मुंबई कमाने गए अमौना निवासी मो. अली ने मुंबई में रहकर मोम दीपक बनाने की कला अंधेरी के ट्रें¨डग इनोवेशन से सीखा और वापस गांव आ गए। अमौना में अली के अलावा तीन और लोगों का परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करता था। दो माह पहले गांव आए मो. अली ने अजय कुमार, संतराम और बुझावन को ट्रेंड किया कि मिट्टी के दीपक भी आधुनिकता के दौर में नये लुक के साथ अपनी पहचान बना सकते हैं। फिर क्या था अमौना गांव के चार कुंभार मिलकर मोमदीपकों के निर्माण में जुट गए। दीपावली के त्योहार के मद्देनजर मोम दीपकों की डिमांड भी खूब देखने को मिल रही है। तहसील क्षेत्र के अलावा विभिन्न जिलों के व्यापारी इन्हें मोमदीपकों के निर्माण का आर्डर दे रहे हैं और यह लोग अबतक चालीस हजार रुपया का उत्पाद व्यापारियों को हस्तांतरित भी कर चुके हैं। मोम दीपक बनाने वाले अजय कुमार का कहना है कि निर्माण में थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। लेकिन तैयार माल के बिकने में कोई झंझट नहीं है क्योंकि पहले व्यापारियों से बातचीत करके आर्डर बुक कराया जाता है। इस नये ट्रेंड का नतीजा चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में परंपरागत उत्पादों का यह अनूठा संगम है। ग्राम प्रधान राजकुमार कहते हैं कि उनके गांव में जो अनूठे दीपक बन रहे हैं वह स्वदेशी उत्पाद को बढ़ावा देने का काम करेंगे। कारीगरों का वह उत्साहवर्धन करते रहते हैं तथा संपर्क में आने वाले व्यापारियों को इस नये उत्पाद को खरीदने के लिए आमंत्रित भी करते हैं। उनके गांव में हर दिन दूर दूर से बाहरी व्यापारी मोम दीपकों का डेमो देखने के लिए आते हैं और आर्डर बुक करके ही वापस जाते हैं यह गांव कि विशेष उपलब्धि है। इनसेट-थोक में छह सौ रूपया सैकड़ा पर होती है बिक्री-

मोम दीपकों की बिक्री इस वक्त अमौना से छह सौ रुपया सैकड़ा की दर से थोक में होती है। मो. अली ने बताया कि तीन सौ रुपया प्रति किलो मोम व पैंतिस रुपया रोल धागे से पौने दो सौ मोमदीपक तैयार होते हैं। मोम को पिघलाने व दीपक में बाती के रूप में धागा डालने का काम घर की महिलाएं कर देती हैं। मिट्टी के दीपक तैयार करना व मोम उनमें निर्धारित मात्रा में डालना और सुखाने के बाद पैक करने का काम पुरुषों के जिम्मे रहता है। सौ मोमदीपकों की बिक्री के बाद प्राफिट डेढ़ सौ रुपया तक मिल जाता है।

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इस बार सिर्फ आर्डर पर हो रहा काम

मोमदीपकों के कारीगर अजय कुमार कहते हैं कि जमा पूंजी न फंसे इसके लिए इस बार सिर्फ आर्डर लेकर ही काम हो रहा है। अगले वर्ष से इनका निर्माण वृहद स्तर पर करते हुए प्रमुख बाजारों में अपनी दुकान लगाने की योजना है।


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