रेल किराया न देने वाले श्रमिक उपभोक्ता नहीं
कोरोना संकट काल में दूसरे प्रांत में फंसे मजदूरों को ट्रेन के माध्यम से लाया जा रहा है। सरकार ने इनकी मजबूरी को समझा और ट्रेन का किराया भी माफ कर दिया है। लेकिन ट्रेन संचालन में भी मानवीय भूल सामने आई। एक ट्रेन रास्ता भटक कर सैकड़ों किमी दूर पहुंच गई।
सिद्धार्थनगर : कोरोना संकट काल में दूसरे प्रांत में फंसे मजदूरों को ट्रेन के माध्यम से लाया जा रहा है। सरकार ने इनकी मजबूरी को समझा और ट्रेन का किराया भी माफ कर दिया है। लेकिन ट्रेन संचालन में भी मानवीय भूल सामने आई। एक ट्रेन रास्ता भटक कर सैकड़ों किमी दूर पहुंच गई। वहीं अधिकांश ट्रेन अपने निर्धारित समय से देरी से चल रही हैं। ऐसे में रेल किराया न देने वाले श्रमिक उपभोक्ता की श्रेणी में आएंगे या नहीं यह सवाल खड़ा हो रहा है। इस मुद्दे पर अधिवक्ताओं ने अपनी राय प्रस्तुत की।
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ट्रेन का विलंब से चलना स्वाभाविक प्रक्रिया में है। यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन रास्ता भटक जाना, रेलवे का विभागीय मामला है। इसकी जांच होनी चाहिए। श्रमिकों के टिकट के मूल्य का अगर प्रदेश सरकार ने किया है तो वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं। अगर किसी श्रमिक ने टिकट के मूल्य का भुगतान किया है तो वह उपभोक्ता फोरम में अपने हक को पाने के लिए जा सकता है।
शशिकांत उपाध्याय
अधिवक्ता कुछ समय के लिए ट्रेन के समय में विलंब होना स्वाभाविक है। लेकिन रास्ता भटक जाना, यह समझ से परे है। इसकी पूरी जिम्मेदारी रेलवे की बनती है। प्रवासी श्रमिकों को इस दौरान शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति हुई है। इन सबकी जिम्मेदारी रेलवे को उठानी चाहिए। प्रभावित श्रमिक अपने हक को पाने के लिए उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटा सकते हैं। न्याय पाना सबका मौलिक अधिकार है।
राधेश्याम मिश्रा
अधिवक्ता
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