कागज में शौचालय, खुले में फैल रही गंदगी
सिद्धार्थनगर : स्वच्छ भारत मिशन का सपना कैसे साकार होगा, जब जिम्मेदार ही योजना को पलीता लगाने में जु
सिद्धार्थनगर : स्वच्छ भारत मिशन का सपना कैसे साकार होगा, जब जिम्मेदार ही योजना को पलीता लगाने में जुटे हैं। ओडीएफ घोषित हो चुके गांवों में तो हालत इस कदर खराब है कि सड़कों पर शौचालय के कारण पैर रखना तक मुश्किल है। इसे जागरुकता की कमी कहें या फिर जिम्मेदारों की अनदेखी, तस्वीर तो कुछ ऐसी ही है। ओडीएफ गांव में कुछ शौचालय अधूरे हैं। जो बने भी हैं वह कबाड़ रखने के काम में आ रहे हैं। आखिर कब तक?
ओडीएफ घोषित गांव जोगिया विकास खंड के ग्राम सभा पकड़ी लाला में 150 शौचालय का निर्माण कराया गया है। जबकि 400 सौ परिवार आज भी खुले में शौच जाने पर मजबूर हैं। ग्राम सभा में 50 शौचालय बीते पंचवर्षीय काल के है। वर्तमान में 100 नए शौचालय का निर्माण कराया गया है। जिसमें 75 का निर्माण पूर्ण हो गया है। जबकि 25 अधर में लटका है। यह ग्राम पंचायत पकड़ी, लालपुर, छोटकी पकड़ी, डफाली डीह मिला कर चार टोले में विभक्त है। ग्राम पंचायत में सभी टोला मिलाकर 550 घर है। जिसकी आबादी करीब तीन हजार है। लालपुर में 20, पकड़ी में 30, डफाली डीह 10 छोटकी पकड़ी 10 एवं पकड़ी चौराहे पर 80 शौचालय का निर्माण कराया गया है। सभी 100 परिवार में जो शौचालय बनवाया गया है, उनको अभी तक केवल पहली किस्त ही दी गयी है। दूसरी ़िकस्त धन के अभाव में फंसा हुआ है। कुछ शौचालय अधूरे हैं, जिनमें लकड़ी कंडा आदि रखने का प्रयोग किया जा रहा है। इस हिसाब से ग्राम पंचायत में अभी दो तिहाई घर शौचालय से वंचित हैं। गांव में शौचालय के लिए मारामारी मची हुई है, लेकिन वाहवाही लेने के लिए गांव को ओडीएफ घोषित कर दिया गया।
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सुनिए ग्रामीणों का दर्द लालपुर के सुरेश गुप्ता आंख से दिव्यांग हैं। कहा कि हम जैसे लोगों को प्रधान के द्वारा शौचालय नहीं दिया गया। दिन रात कभी शौच के लिए खुले मैदान में जाना पड़ता है। सोचा था कि सरकार से बारह हजार मुझे मिल जाएंगे तो मैं भी एक शौचालय बनवा लूंगा, लेकिन किसी तो तरस भी नहीं आया। प्रधान से जब बात हुई तो कहे कि पूरा पैसा लगा कर बनवा लो बाद में दिलवा दूंगा। न पैसा हुआ न शौचालय बना।
............ वृद्धा सावित्री देवी ने सरकार के इस कार्य को बहुत सराहनीय बताया । कहा कि घर-घर में शौचालय बनने से हम बुजुर्गों को दूर नहीं जाना पड़ता। घर पर शौचालय बनवाने की इच्छा है। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। प्रधान पैसे की समस्या बताते हैं। योजना का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। जिसके चलते खुले में शौच जाने की मजबूरी है।
.............. सुकदेव का कहना है कि मेरे घर शौचालय नहीं बनवाया गया। धन मिला होता तो मैं खुद बनवा लेता। शौचालय नहीं होने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गांव की सड़कों और गलियों में गंदगी पसरी रहती है। गंदगी के कारण सांस लेना भी दुश्वार है। जिस समय खेतों में फसल की बोआई हो जाती है और उसमें पानी चल जाता है, उस दौरान लोग सड़क को शौचालय बना लेते हैं।
........... जगदीश कहते हैं कि कई बार प्रधान और सेक्रेटरी से शौचालय के लिए कहा पर हर बार धन नहीं होने की बात कह दिया जाता है। शौचालय न बन पाने से घर की बहन- बेटियां व महिलाएं खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं। कम से कम जिले पर बैठे जिम्मेदार अधिकारियों को भी गांव की सत्यता जान लेनी चाहिए। सफाई पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
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पहले 50 शौचालय के लिए तीन लाख मिले थे। उसके बाद तीन लाख रुपये दोबारा मिले। जिसमें 50 लोगों का शौचालय बनवाया गया। इधर चार-पांच महीने से शासन से कोई धन नहीं आया। इसलिए शौचालय निर्माण का काम नहीं हो पा रहा है।
अंग्रेज, ग्राम प्रधान
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अभी शौचालय का पैसा फंसा है। सचिव से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। प्रधान को बाद में मिले तीन लाख में पहले निर्मित 50 शौचालय की दूसरी किस्त फाइनल कर देनी चाहिए थी। जिनके पास शौचालय नहीं है, उनके बारे में उच्च अधिकारी को पत्र लिखा जाएगा।
सभय राज यादव, एडीओ पंचायत