अनोखी परंपराः दीपावली पर दीप जलाकर लक्ष्मी पूजन पर आतिशबाजी नहीं जलाता थारू समाज
थारु जनजाति अपने रीति-रिवाज और अनूठी परंपराओं के लिए जानी जाती है। दीपावली के दिन इस समाज के लोग लक्ष्मी पूजन, दीपोत्सव और आतिशबाजी नहीं करते हैं
श्रावस्ती (राजीव गुप्ता)। थारु जनजाति अपने रीति-रिवाज और अनूठी परंपराओं के लिए जानी जाती है। दीपावली के दिन इस समाज के लोग लक्ष्मी पूजन, दीपोत्सव और आतिशबाजी नहीं करते हैं। इस पर्व को इस समाज के लोग आज भी बेहद अनूठे अंदाज में मनाते हैं। दीप पर्व पर इस समाज के लोग तेरहवीं करते हैं।
दीपावली में एक ओर जहां गैर जनजातियों में लक्ष्मी पूजा, दीपोत्सव, आतिशबाजी का चलन है, वहीं थारू समाज में दीपावली की जगह दीवारी मनाने का रिवाज है। इस दिन जनजाति के लोग अपने मृत परिजन की याद में उसका पुतला बनाकर पूजा अर्चना के जरिये श्रद्धांजलि देते हैं। इस दिन थरुवाट में बड़ी रोटी अर्थात खाने का कार्यक्रम होता है जिसमें निकट संबंधियों सहित परिवार के लोग शामिल होते हैं।
थारू समाज के बुजुर्ग प्रताप नरायण और अयोध्या प्रसाद राना बताते हैं कि संचार क्रांति के साथ ही थारू समाज के रीति रिवाजों में भी बदलाव आ रहा है। लेकिन दशकों बाद भी इस समाज में तमाम परंपराएं आज भी कायम है। राम करतार राना और ईश्वर दीन चौधरी ने बताया कि थारू समाज में जब किसी की मृत्यु होती थी तो उसके शव को चारपाई पर श्मशान तक ले जाया जाता था। मृतक को कंधा देने वालों को शवदाह के अगले शनिवार को रोटी दी जाती थी। इस परंपरा के अनुसार इन लोगों को खाना खिलाया जाता है। इसके बाद कार्तिक माह की अमावस्या (दीपावली के दिन) को बड़ी रोटी दी जाती है। इस मौके पर परिवार के सभी लोग और रिश्तेदार एकत्र होते हैं। इस मौके पर सभी लोग मृतक का पुतला बनाते हैं, और शाम को पुतले के सामने कए दीपक जलाकर शोक व्यक्त करते हैं। इसके अगले दिन सुबह के समय भोज होता है। जिसमें मीट, मुर्गा, मछली, दाल, चावल, गुलगुला, कतली आदि थारू समाज के सभी व्यंजन बनाए जाते हैं। मृतक आत्मा को भोग लगाने के बाद सभी लोग इस भोज में शामिल होते हैं।