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करवा चौथ : अ‌र्घ्य तोहार..अहिबात बना रहै हमार

महाभारत काल से है करवा चौथ की परंपरा पति की लंबी उम्र के लिए गौरी-गणेश की पूजा करती हैं सुहागिनें

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Nov 2020 05:33 PM (IST)Updated: Tue, 03 Nov 2020 05:33 PM (IST)
करवा चौथ :  अ‌र्घ्य तोहार..अहिबात बना रहै हमार
करवा चौथ : अ‌र्घ्य तोहार..अहिबात बना रहै हमार

विजय द्विवेदी, श्रावस्ती : करवा चौथ का पर्व नारी शक्ति व अखंड सुहाग का प्रतिमान है। पौराणिक काल से करवा चौथ के व्रत की परंपरा रही है। महाभारत काल में अर्जुन की सलामती के लिए द्रोपदी ने करवा चौथ का व्रत रख कर उनकी लंबी उम्र की कामना की थी। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति के लंबी उम्र के लिए गौरी-गणेश की पूजा करती हैं। सुहागिन महिलाएं बुधवार को करवा चौथ का व्रत रखेंगी। विश्वास व समर्पण की भावना हो संजोए करवा चौथ भारत का अनूठा पर्व है। गौरी-गणेश की पूजा के बाद सुहागिन महिलाएं भगवान रजनीश (चंद्रमा) को अ‌र्घ्य देकर मांगती हैं कि अ‌र्घ्य तोहार..अहिबात हमार बना रहे।

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कार्तिक कृष्ण पक्ष के चौथ को मनाया जाने वाला यह पर्व आस, विश्वास, प्रेम, आस्था, निष्ठा व भारतीय संस्कृति का एक सोपान है। इस दिन सुहागिन महिलाएं निराजल व्रत रख कर रात को चंद्रमा का चलनी से निहार कर पूजन करती हैं और पति के हाथों पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं। उनका मानना है कि इस व्रत से उनके सुहाग को लंबी उम्र मिलती है। महिलाएं इसे मनाने के लिए सहेलियों व रिश्तेदारों के घरों पर एकत्र होती हैं। पूरी भव्यता के साथ त्योहार मनाती हैं। इस दिन विभिन्न पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें फरा (पीठा) व चावल के ऑटे की चंद्रमा अवश्य बनाई जाती है।

सुहागिन महिलाएं ऐसे करती हैं पूजन-अर्चन

पूजन के सबसे पहले गौरी-गणेश की पूजा की जाती है। सुहागिन महिलाएं दो जोड़ी फरा गाय के गोबर से लिपे स्थान पर रखती हैं। इसके बाद बाएं पैर के अंगूठे से चावल के ऑटे से बनी चंद्रमा को दबा कर बाएं तरफ के लट को सोने की नथुनी से लगाकर चंद्रमा को चलनी से देखते हुए चार बार अ‌र्घ्य देती हैं। अ‌र्घ्य देते समय अ‌र्घ्य तोहार..अहिबात तोहार की महिलाएं कामना करती हैं। इसके बाद अक्षत, घी से मां गौरी की पूजा कर भोग लगाती हैं और प्रसाद ग्रहण करती हैं। गेडुआ का होता है विशेष आकर्षण

इस पूजन का विशेष आकर्षण लोटा (गेडुआ) होता है। यह मायके से आता है। यही वह मौका है। जब मायके वाले अपनी बहन-बेटियों के लिए परंपरागत करवा भेजने के साथ परंपराओं का पालन करते हैं। कहीं-कहीं मिट्टी के गेडुआ हर साल नैहर से आने से की परंपरा है। इसमें लाई, खील व पताशा भर कर लाया जाता है। वास्तव में करवा चौथ का पर्व भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है जो पति-पत्नी के बीच होता है। महाभारत काल से चली आ रही परंपरा

इस व्रत को महाभारत काल से जोड़ा जा रहा है। पांडवों के वनवास के समय जब अर्जुन तप करने के लिए नील पर्वत की ओर चले गए और बहुत दिनों तक वापस नहीं लौटे तो द्रोपदी को चिता हुई। इस दौरान कृष्ण ने द्रोपदी की चिता दूर करते हुए करवा चौथ का व्रत बताया था। तब से महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को धारण करती चली आ रही हैं। कुछ लोग सावित्री व सत्यवान तो कुछ लोग कारावती की कथा से जोड़कर इसे देखते हैं।

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ये है शुभ मुहूर्त

पंडित प्रकाश नारायण पाठक बताते हैं कि चंद्रोदय का समय रात 7.57 बजे है। समय चक्र की गणना के अनुसार यहां चंद्रमा रात 8 बजकर 3 मिनट पर दिखेगा। यही समय महिलाओं के पूजन के लिए सबसे शुभ है। करवा चौथ को लेकर बाजारों में रौनक है। जगह-जगह मिट्टी के गेडुआ, लाई, खील, बताशे की दुकाने सजी रहीं। सराफा व कपड़ा की दुकानों पर महिलाओं की भीड़ लगी है।


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