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-..तो क्या नया सियासी ठिकाना ढूंढ रहे निलंबित बसपा विधायक

विजय द्विवेदी श्रावस्ती राज्यसभा चुनाव के बहाने बागी हुए भिनगा के बसपा विधायक को पार्टी सुप्री

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 12:09 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 12:09 AM (IST)
-..तो क्या नया सियासी ठिकाना ढूंढ रहे निलंबित बसपा विधायक
-..तो क्या नया सियासी ठिकाना ढूंढ रहे निलंबित बसपा विधायक

विजय द्विवेदी, श्रावस्ती : राज्यसभा चुनाव के बहाने बागी हुए भिनगा के बसपा विधायक को पार्टी सुप्रीमो ने गुरुवार को निलंबित कर दिया। विधानसभा चुनाव का फासला भी कम है। ऐसे में बसपा विधायक ने पार्टी से बगावत का बिगुल बजाकर जिले की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। निलंबित विधायक क्या हाथी छोड़कर साइकिल पर सवार होंगे या फिर पार्टी सुप्रीमो उन्हें बसपा में ही तरजीह देंगी। इसको लेकर दिनभर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। वैसे तो अपने साथी विधायकों के साथ बसपा विधायक सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से मिल कर सियासी ठिकाने का गुणा-भाग कर रहे हैं, लेकिन विधायक इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं।

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वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मुहम्मद असलम राइनी पहली बार भिनगा विधानसभा से चुनाव जीते हैं। चुनाव जीतने के बाद जब योगी की सरकार बनी तो उनके तेवर बदल गए। नीले झंडे के नीचे रहकर उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यशोगान करने का मौका भी नहीं छोड़ा। यह तक कि खुले मंच से उन्होंने मुख्यमंत्री को अब तक का सर्वश्रेष्ठ सीएम घोषित कर दिया था। इस बयान के बाद वह चर्चा में आ गए। साथ अपने समर्थकों को यह भी संदेश दे दिया कि अब वह सियासत की कोई नहीं पारी शुरू करने वाले हैं। इस पारी में उनके साथ न नीला झंडा होगा और न ही हाथी निशान होगा। ऐसे में इस सवाल का उठना लाजमी है कि क्या वह बदलती राजनीति के साथ कदम ताल की कवायद है। राजनीतिक गलियारे हों या प्रशासनिक विथिकाएं हर कहीं इन दिनों बसपा विधायक के नए सियासी ठिकाने की ही चर्चा हो रही है। सियासी जमात में बसपा विधायक अपने सौम्य व्यवहार के लिए जाने जाते हैं, लेकिन बुधवार को राजधानी लखनऊ में पार्टी से बगावत का स्वर बुलंद कर एक बार फिर अपने समर्थकों को संदेश दे दिया है कि अब धारणाएं बदल रही हैं। बसपा विधायक के सियासी सफर पर गौर करें तो मुहम्मद असलम राइनी वर्ष 2002 में बसपा से पहला चुनाव लड़े थे, लेकिन भाजपा ने इन्हें पराजित कर दिया था। चुनाव हारने के बाद इन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2007 में कांग्रेस से चुनाव लड़े और 91 मतों से पीछे रह गए। बसपा प्रत्याशी की यहां जीत हुई। 2012 में एक बार फिर कांग्रेस से चुनाव लड़े, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। 2017 में हाथी पर सवार होकर उन्होंने चुनाव लड़ा और बसपा का परचम भी लहराया। विधायक बनने के बाद इनके तेवर और कलेवर बदलते रहे। निलंबित बसपा विधायक राइनी ने बसपा कोआर्डिनेटर राजकुमार कुरील को कटघरे में खड़ा कर उपेक्षा का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि कोआर्डिनेटर द्वारा प्रताड़ित व अपमानित किया जाता था। कोआर्डिनेटर ने बसपा विधायक के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। कोआर्डिनेटर का कहना है कि कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना चाहिए, लेकिन विधायक उनकी उपेक्षा करते हैं, जबकि कार्यकर्ताओं के बल पर चुनाव जीता गया है।


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