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पर्यावरण की नसों में जहर घोल रहा है पॉलीथिन

श्रावस्ती : जिले के शहरी इलाके ही नहीं बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी पॉलीथिन व प्लास्टिक का उपयोग धड़ल्

By JagranEdited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 11:26 PM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 11:26 PM (IST)
पर्यावरण की नसों में जहर घोल रहा है पॉलीथिन
पर्यावरण की नसों में जहर घोल रहा है पॉलीथिन

श्रावस्ती : जिले के शहरी इलाके ही नहीं बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी पॉलीथिन व प्लास्टिक का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। निकायों के हालात तो बेहद खराब हैं। सूबे की सरकार ने 15 जुलाई से प्रदेश के सभी निकायों में पॉलीथिन के निर्माण, भंडारण और उसकी बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। जिले के दोनों निकायों में प्रतिदिन कई कुंतल पॉलीथिन की खरीद-फरोख्त हो रही है। उपयोग के बाद कूड़े की शक्ल में फेंकी गई यह पॉलीथिन पर्यावरण को असंतुलित करने का एक बड़ा कारक बन रही है। पॉलीथिन मानव और मवेशी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने के साथ ही भू-जल को रीचार्ज करने में भी बाधक बनी हुई है।

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भिनगा नगर पालिका क्षेत्र में लगभग ढ़ाई क्विंटल तथा इकौना नगर पंचायत क्षेत्र में डेढ़ क्विंटल पॉलीथिन का कचरा प्रतिदिन निकलता है। आज हर एक दुकान पर भारी मात्रा में पॉलीथिन का प्रयोग होता है। पॉलीथिन में पैक गर्म खाद्य पदार्थ मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, इसके बाद भी लोग पॉलीथिन का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं।

स्वास्थ्य के लिए घातक है पॉलीथिन

पॉलीथिन कचरे से हर साल बड़ी संख्या में मवेशियों की मौत हो रही है। लोगों में बीमारिया फैल रही हैं, जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है तथा भू-जल दूषित हो रहा है। जिला अस्पताल डॉ. एमएल वर्मा कहना है कि प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है। इससे महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है। पॉलीथीन कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाई ऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सास, त्वचा संबंधी बीमारिया होने की आशका बढ़ जाती है।

क्यों पड़ी प्रतिबंध की जरूरत

चिकित्सक डॉ. एफ के तिवारी ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण, भूजल के स्रोतों को संरक्षित करने, खेतों की उर्वरा शक्ति को बचाने और मानव व मवेशी स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ ही साफ-सफाई के लिए एक लंबे समय से इस पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत थी। ऐसे में सरकार का यह फैसला सराहनीय है।

जनसहयोग से हो सकता है बदलाव

सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र मणि त्रिपाठी का कहना है कि न्यायालय की ओर से पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे में पर्यावरण के हितों को देखते हुए और भविष्य के संकट का अनुमान लगाते हुए हमें इस प्रतिबंध के साथ खड़े होने की जरूरत है। पवन त्रिपाठी कहते हैं कि हम अपनी आदतों में थोड़ा बदलाव लाकर इस प्रतिबंध को सफल कर सकते हैं। दुकानों पर सामान यदि पॉलीथिन में मिले तो हमें पॉलीथिन दुकान पर ही वापस कर देना होगा। एक-एक कर जब बड़ी संख्या में समाज के लोग पॉलीथिन लेने से मना कर देंगे तो दुकानदार पॉलीथिन खरीदना ही बंद कर देगा। ऐसे में पॉलीथिन का प्रयोग आसानी से थम जाएगा।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

जिला अस्पताल के फिजीशियन डॉ. एनएन पांडेय का कहना है कि पॉलीथिन के जलने पर इससे जहरीले तत्व निकलते हैं। यह कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बनता है। पशु चिकित्सक डॉ. आलोक शर्मा कहते हैं कि हम अपने घर का कूड़ा-करकट अथवा बची हुई खाद्य सामग्री व सब्जी काटने के बाद बचा हुआ हिस्सा पॉलीथिन में भरकर कूड़े में फेंक देते हैं। कूड़े के ढेर में मवेशी खाद्य पदार्थो को खाने के चक्कर में पॉलीथिन भी खा जाते हैं। इससे उनमें गंभीर बीमारियां हो जाती है और कम समय में ही उनकी मौत हो जाती है।

हम शपथ लेते हैं

पॉलीथिन वर्तमान में सुविधा है, लेकिन भविष्य का गंभीर संकट है। हम सिर्फ अपनी आदतों में थोड़ा बदलाव लाकर इसके प्रयोग को पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं। ऐसे मामले में न्यायालय के दखल से पहले ही हमें सचेत होना चाहिए था। देर आए दुरुस्त आए। मैं आज से संकल्प लेता हूं कि खरीदारी के लिए बाजार जाने पर झोला साथ लेकर जाऊंगा और पॉलीथिन का प्रयोग नहीं करूंगा।

-ताहिर हुसैन, दवा व्यापारी भिनगा -पॉलीथिन के नुकसान के बारे में हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति भलीभांति जानता है। इसके बावजूद पॉलीथिन व प्लास्टिक का प्रयोग थम नहीं रहा है। अब जब न्यायालय ने इस पर प्रतिबद्ध लगाया है तो हमें जिम्मेदारी के साथ इस प्रतिबंध का अनुपालन करना है। मैं शपथ लेता हूं कि अब से अपने घर में पॉलीथिन का प्रयोग न खुद करूंगा और न ही परिवार के लोगों को करने दूंगा।

-राजा सोनी, सराफा व्यापारी, भिनगा


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